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जयंती विशेष: बिहार के गौरव रामधारी सिंह दिनकर, जिन्होंने संसद में नेहरू को ललकारा था

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Published : Sep 23, 2020, 8:42 AM IST

ramdhari singh dinkar
ramdhari singh dinkar

1962 में चीन से हार के बाद संसद में रामधारी सिंह दिनकर ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ संसद में कुछ पंक्तियां सुनाई थी, जिससे देश में भूचाल मच गया था. यह घटना आज भी भारतीय राजनीति के इतिहास की चुनिंदा क्रांतिकारी घटनाओं में से एक है.

बेगूसराय: आज रामधारी सिंह दिनकर की जन्मतिथि है. बिहार के बेगूसराय जिले के रहने वाले रामधारी सिंह दिनकर हिंदी भाषा के प्रमुख रचनाकारों में से एक हैं. उनकी कविताओं ने आजादी के पहले अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देशवासियों की आवाज बुलंद की. यहां तक कि दिनकर आजादी के बाद सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुक्मरानों की गलत नीतियों का भी विरोध करने से नहीं चुके.

यही कारण है कि उन्होंने पंडित नेहरू के खिलाफ देश की संसद में कविता सुनाई थी, जिससे भूचाल आ गया था. उनके इन्हीं गुणों की वजह से उन्हें राष्ट्रकवि का दर्जा हासिल हुआ था.

विद्यापति की भूमि पर उनके बाद बड़े विद्वान
दिनकर से जुड़ी कई यादों को अपने दर्शकों तक पहुंचाने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने बिहार के बेगूसराय जिले में उनके पैतृक गांव सिमरिया का दौरा किया. वहां कुछ ऐसे भी ग्रामीणों से मुलाकात की जो राष्ट्रकवि के जीवन काल में उनके खास करीबी रहे थे. उन्हें अपने जीनव में कवि और उनकी रचनाएं खुद उनकी जुबानी सुनने का मौका मिला. ग्रामीण रामाशीष सिंह बताते हैं कि दिनकर का जन्म बेगूसराय के लिए अभूतपूर्व था. विद्यापति की इस भूमि पर उनके बाद अगर किसी विद्वान ने जन्म लिया तो वह रामधारी सिंह दिनकर थे.

कविता सुनने के लिये लोगों की लगती थी भीड़
कवि दिनकर के करीबी लोग कहते हैं कि वे ज्यादातर वे घर पर नहीं रहते थे. राज्यसभा सदस्य बनने के बाद उनका ज्यादातर समय दिल्ली में ही बीतता था. इसके बाद भी जब भी वे गांव आते, तो दूर-दराज के गांव और जिलों से हजारों की संख्या में लोग उनके घर इकट्ठा होते थे. सब की एक ही मांग होती थी की दिनकर कोई एक कविता सुना दें और लोग तब तक उठकर नहीं जाते थे जब तक उनकी जुबानी कोई कविता या दोहा न सुन लें.

स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे रामधारी सिंह दिनकर
राष्ट्रकवि को सुनने का मौका जिन्हें मिला उन्होंने अपनी यादें साझा करते हुए बताया कि रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे. लेकिन जब बात देश के हित-अहित की आती थी तो वह बेबाक टिप्पणी करने से कतराते नहीं थे. आजादी के पहले भी उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए वीर रस की कविताएं और ग्रंथ लिखे, जिससे प्रेरणा लेकर आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों में जोश भर गया.

'सीढ़ियां चढ़ते हुए नेहरू के पैर लड़खड़ा तो...'
एक बार दिल्ली में हो रहे कवि सम्मेलन में पंडित नेहरू पहुंचे. सीढ़ियां चढ़ते हुए उनके पैर लड़खड़ा गए तो दिनकर ने उन्हें संभाला. नेहरू ने उन्हें धन्यवाद कहा तो इस पर दिनकर ने कहा, 'जब जब सत्ता लड़खड़ाती है तो सदैव साहित्य ही उसे संभालती है.'

जब नेहरू को भरी संसद में अपनी कविता से लगाई लताड़
रामधारी सिंह दिनकर ने ये तीन पंक्तियां पंडित जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ संसद में सुनाई थी, जिससे देश में भूचाल मच गया था. दिलचस्प बात यह है कि राज्यसभा सदस्य के तौर पर दिनकर का चुनाव पंडित नेहरु ने ही किया था. इसके बावजूद नेहरू की नीतियों की मुखालफत करने से वे नहीं चूके.

"देखने में देवता सदृश्य लगता है

बंद कमरे में बैठकर गलत हुक्म लिखता है

जिस पापी को गुण नहीं गोत्र प्यारा हो

समझो उसी ने हमें मारा है"

1962 में चीन से हार के बाद संसद में दिनकर ने इस कविता का पाठ किया जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू का सिर झुक गया था. यह घटना आज भी भारतीय राजनीती के इतिहास की चुनिंदा क्रांतिकारी घटनाओं में से एक है.

"रे रोक युद्धिष्ठिर को न यहां जाने दे उनको स्वर्गधीर

फिरा दे हमें गांडीव गदा लौटा दे अर्जुन भीम वीर"

हिंदी साहित्य को दिया स्वर्णिम युग
रामधारी सिंह दिनकर के लिखे कई काव्य, ग्रंथ और रचनाएं इतनी प्रसिद्ध हुई की देशभर में बच्चे से लेकर बूढ़े तक अपनी बोलचाल की भाषा में भी दिनकर की कविताएं और दोहे दोहराया करते हैं. हिंदी की कविताएं और ग्रंथों को लिखकर रामधारी सिंह दिनकर ने बिहार के छोटे से गांव सिमरिया से राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रकवि तक की उपाधि अर्जित की. राष्ट्रकवि दिनकर जब पूरी लय में थे, उस समय के दौर को भारतीय इतिहास में हिंदी साहित्य का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है.

हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान
हिंदी भाषा के जरिए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को जो उपलब्धियां मिली, उसके बदले उन्होंने देश में हिंदी के विकास के लिए अघोषित मुहिम छेड़ रखी थी. दिनकर को आदर्श मानकर कई कवि और साहित्यकार आगे आए. ऐसा नहीं था कि उन्हें दूसरी भाषाएं नहीं आती थी. उन्हें बांग्ला, उड़िया, भोजपुरी और अंग्रेजी में खासी महारत हासिल थी. बावजूद इसके उन्होंने हिंदी को ही आत्मसात किया. हिंदी लेखन के जरिए ही अपने सर्वोच्च को प्राप्त किया. निश्चित रूप से रामधारी सिंह दिनकर का भारत में हिंदी साहित्य के क्षेत्र में किया गया योगदान अद्वितीय और अतुलनीय है.

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