बेगूसरायः खेल-खेल में दी जा रही नैतिक शिक्षा, चित्रकला के जरिए संदेश दे रहे हैं बच्चे

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Published : Nov 17, 2019, 12:37 PM IST

बेगूसराय का प्राथमिक विद्यालय सिंघोल डीह सीमित संसाधनों में बेहतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर मिशाल पेश कर रहा है. यहां खेल-खेल में बच्चों को नैतिक ज्ञान दिया जा रहा है.

बेगूसरायः "कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो " यही संदेश बेगूसराय के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक दे रहे हैं. जिला मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर स्थित प्राथमिक विद्यालय सिंघोल डीह सीमित संसाधनों में बेहतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर मिशाल पेश कर रहा है.

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चलो स्कूल चले की कलाकारी

स्कूल में महज दो कमरे
स्कूल में 160 बच्चे और 5 शिक्षक हैं. यहां महज दो कमरों में 5 वर्ग को संचालित किया जाता है. इसकी फर्श से लेकर दीवार तक एक किताब है. जहां पेंटिंग के जरिये बच्चों को ए से जेड तक का ज्ञान और 26 तरह के जानवरों की पहचान कराई जाती है.

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दीवारों पर किताब के अध्याय से जुड़ी चित्रकला

फर्श पर खेलने के लिए बनाया गया सांप सीढ़ी
फर्श पर खेलने के लिए सांप सीढ़ी बनाया गया है. जहां बच्चों को अच्छे और बुरे का नैतिक ज्ञान दिया जाता है. यह कुछ इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि अंकों के बीच सांप और सीढ़ी मौजूद रहता है. अगर 80 के अंक पर किसी को सांप ने काट लिया तो वह सीधे 8 नंबर पर पहुंच जाता है. हर सांप और सीढ़ी के पास कोई मैसेज रहता है.

खेल-खेल में दी जा रही नैतिक शिक्षा

चित्रकला के साथ अन्य विधाओं में हो रहे दक्ष
स्कूल की दीवारों पर किताब के अध्याय से जुड़ी कहानियों को चित्रकला के जरिए उकेरा गया है. बच्चे नई तकनीक से पढ़ाई कर काफी उतसाहित हैं. साथ ही वो चित्रकला से लेकर अन्य विधाओं में दक्ष हो रहे हैं.

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फर्श पर बना सांप-सीढ़ी

इच्छाशक्ति बुलंद हो तो सारे काम संभव
स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि के बच्चों को तकनीकी शिक्षा के साथ नैतिक ज्ञान देना भी आवश्यक है. बहरहाल, यह कहा जा सकता है कि इच्छाशक्ति बुलंद हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है. योग्य शिक्षक सरकारी स्कूलों में भी सीमित संसाधन के बावजूद बेहतर शिक्षा देकर निजी स्कूलों को चुनौती दे सकते हैं.

Intro:एंकर- "कौन कहता है कि आसमां में सुराग हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो "
शायद यही संदेश बेगूसराय के एक सरकारी विद्यालय के शिक्षक दे रहे हैं। वैसे तो आमतौर पर बिहार के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई नही होती है ऐसी आम धारणा लोग के मन मे होती है, लेकिन इसके ठीक विपरीत जिले में एक ऐसा भी स्कूल है जो सीमित संसाधनों में भी बेहतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर मिशाल पेश कर रहा है।


Body:vo- जिला मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर प्राथमिक विद्यालय सिंघोल डीह आज शिक्षा विभाग के लिए जिले में मिशाल बनकर उभरा है। कहने को तो यह भी एक सरकारी स्कूल है लेकिन सामने से देखने पर यह स्कूल एक खुली किताब है जो बच्चों को अपने पास बुलाती है ।विद्यालय में कुल 160 नामांकित बच्चे हैं ।5 शिक्षक भी पदास्थापित हैं ,लेकिन महज दो ही कमरे स्कूल के पास हैं ।,इन्हीं दो कमरों में स्कूल चलता है ।कमरों के अभाव के कारण एक कमरे में तीन और एक कमरे में 2 वर्ग एक साथ संचालित होते हैं लेकिन विद्यालय व्यवस्था ऐसी है कि सभी बच्चे एक साथ पढ़ाई कर सकते हैं। विद्यालय में फर्स से लेकर दीवार तक यहां तक की बाउंड्री वॉल भी एक किताब है और शिक्षक की भूमिका निभाता है। पेंटिंग के जरिये बच्चों को ए से जेड तक का ज्ञान 26 तरह के जानवरों की पहचान सिखाई जाती है। स्कूल की दीवार पर इस तरह से पेंटिंग उकेरी गई है जैसे लगता है कि लोग जंगल में खड़े हो। स्कूल की फर्श बच्चों को अच्छे और बुरे की नैतिक ज्ञान देता है। स्कूल में बच्चों को नैतिक शिक्षा देने के लिए एचएम के द्वारा स्कूल के बरामदे के फर्श पर खेलने के लिए सांप सीढ़ी बनाया गया है ,जहां बच्चे सांप सीढ़ी का खेल खेलते हैं। इस खेल में बच्चे सभी गुण सीखते हैं, जिससे उन्हें प्रारंभिक नैतिक शिक्षा दी जाती है ।खेल को कुछ इस प्रकार डिजाइन किया गया है जिसमें बच्चों को पहले 1 से 100 तक का ज्ञान होता है। इसके बाद अंकों के बीच में सांप और सीढ़ी मौजूद रहता है। खेल का नियम भी आकर्षक है अगर कोई बच्चा 80 के अंक पर होता है तो उसे सांप काटने के बाद सीधे 8 नंबर पर पहुंचा दिया जाता है ।यानी कि हर अच्छे काम करने पर सीढ़ी मिलती है और हर बुरे काम करने पर सांप डस लेता है। स्कूल की दीवारों पर किताब के अध्याय से जुड़ी कहानियों को चित्रकला के जरिए उकेरा गया है ।बच्चे नई तकनीक से पढ़ाई कर काफी उतसाहित हैं।बच्चे चित्रकला से लेकर अन्य विधाओं में दक्ष हो रहे हैं।
बाइट-प्रत्यूष कुमार,छात्र
बाइट-प्रीति कुमारी,छात्रा
vo-विद्यालय प्रधान के मुताबिक अभी के समय मे अगर आपको निजी विद्यालय को टक्कर देना है तो तकनीकी शिक्षा के साथ साथ नैतिक ज्ञान भी देना आवश्यक है।
वन टू वन विथ विशेश्वर कुमार,प्रधानाचार्य


Conclusion:fvo बहरहाल जो भी हो हम यह जरूर कह सकते हैं की अगर आदमी की इच्छाशक्ति बुलंद हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है।रही बात सरकारी और निजी विद्यालयों के शिक्षण पद्धति में अंतर का तो योग्य शिक्षक सरकारी विद्यालयों में भी सीमित संसाधन के बावजूद बेहतर शिक्षा देकर निजी विद्यालयों को चुनौती दे सकते हैं ,जरूरत है विभाग के अधिकारियों और अभिभावकों के सार्थक सहयोग की।
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