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लालू यादव दोषी करारः वशिष्ठ नारायण सिंह बोले- कोर्ट का फैसला सर्वोपरि, टिका-टिप्पणी ठीक नहीं

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Published : Feb 15, 2022, 7:41 PM IST

चारा घोटाले के एक और मामले में लालू यादव को दोषी करार (CBI Court Convicted Lalu Yadav) दिए जाने के बाद जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा (Vashistha Narayan Singh on Conviction of Lalu Yadav) कि कोर्ट का फैसला सर्वमान्य है. इसपर टिका टिप्पणी करना उचित नहीं है. हालांकि उन्होंने कई बड़ी बातें कही है. आगे पढ़ें पूरी खबर...

JDU नेता वशिष्ठ नारायण सिंह
JDU नेता वशिष्ठ नारायण सिंह

पटनाः राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (RJD Chief Lalu Prasad Yadav) को डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी मामले में सीबीआई की विशेष कोर्ट ने दोषी करार दिया है. इस मामले में 21 फरवरी को सजा का ऐलान किया जाएगा. इधर, लालू के दोषी पाए जाने के बाद सियासी बयानबाजी तेज हो गई है. इस फैसले से जहां राजद खेमे में निराशा है, वहीं सत्तापक्ष के लोग जैसी करनी, वैसी भरनी सहित अन्य कई तरह के बयान दे रहे हैं.

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इस कड़ी में जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करना उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि कोर्ट का फैसला सर्वोपरि है. लंबे समय से चारा घोटाला का मामला चल रहा है. कानून की नजर में किसी भी हैसियत का कोई भी व्यक्ति हो, सब समान होता है.

विपक्षी नेताओं के द्वारा साजिश के तहत फंसाए जाने के आरोप पर जदयू नेता ने कहा कि जब मामला कोर्ट में होता है तो आरोपी की तरफ से वकील पक्ष रखते हैं. इसलिए पक्षपात हुआ है, कहना सही नहीं है. बता दें कि राजद सुप्रीमो को दोषी करार दिए जाने के बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा कि हमें न्याय मिलने की उम्मीद है. वहीं तेजस्वी यादव ने कहा कि एक ही केस को बांट दिया गया और फिर अलग-अलग सजा सुनाई गई है. यह पूरा देश देख रहा है. लेकिन इन आरोपों पर वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि यदि उनके पास सबूत है तो उन्हें दिखाना चाहिए, जिससे कि कोर्ट अंतिम फैसला ले सके. ऐसे ही न्यायालय के फैसले पर टिका-टिप्पणी करना गलत है.

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दरअसल, डोरंडा कोषागार से 139.35 करोड़ की अवैध निकासी की यह मामला है. बहुचर्चित चारा घोटाले के इस पांचवें मामले में रांची के डोरंडा थाने में वर्ष 1996 में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी. बाद में सीबीआई ने यह केस टेकओवर कर लिया. मुकदमा संख्या आरसी-47 ए/96 में शुरूआत में कुल 170 लोग आरोपी थे. इनमें से 55 आरोपियों की मौत हो चुकी है, जबकि सात आरोपियों को सीबीआई ने सरकारी गवाह बना लिया. दो आरोपियों ने अदालत का फैसला आने के पहले ही अपना दोष स्वीकार कर लिया. छह आरोपी आज तक फरार हैं.

मुकदमे की सुनवाई के दौरान सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में अभियोजन की ओर से कुल 575 लोगों की गवाही कराई गई, जबकि बचाव पक्ष की तरफ से 25 गवाह पेश किये गये. इस मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने कुल 15 ट्रंक दस्तावेज अदालत में पेश किये थे. पशुपालन विभाग में हुए इस घोटाले में सांढ़, भैस, गाय, बछिया, बकरी और भेड़ आदि पशुओं और उनके लिए चारे की फर्जी तरीके से ट्रांसपोर्टिंग के नाम पर करोड़ों रुपये की अवैध रूप से निकासी की गयी. जिन गाड़ियों से पशुओं और उनके चारे की ट्रांसपोर्टिंग का ब्योरा सरकारी दस्तावेज में दर्ज किया था, जांच के दौरान उन्हें फर्जी पाया गया. जिन गाड़ियों से पशुओं को ढोने की बात कही गयी थी, उन गाड़ियों के नंबर स्कूटर, मोपेड, मोटरसाइकिल के निकले.

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चारा घोटाले के ये मामले 1990 से 1996 के बीच के हैं. बिहार के सीएजी (मुख्य लेखा परीक्षक) ने इसकी जानकारी राज्य सरकार को समय-समय पर भेजी थी लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया. सीबीआई ने अदालत में इस आरोप के पक्ष में दस्तावेज पेश किये कि मुख्यमंत्री पर रहे लालू यादव ने पूरे मामले की जानकारी रहते हुए भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की. कई साल तक वह खुद ही राज्य के वित्त मंत्री भी थे, और उनकी मंजूरी पर ही फर्जी बिलों के आधार पर राशि की निकासी की गयी. चारा घोटाले के चार मामलों में सजा होने के चलते राजद सुप्रीमो को आधा दर्जन से भी ज्यादा बार जेल जाना पड़ा. इन सभी मामलों में उन्हें हाईकोर्ट से जमानत मिली है.

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