8 साल पुराना गांधी मैदान का वो खौफनाक मंजर, आज भी सिहर जाती है रूह

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Published : Oct 26, 2021, 11:08 PM IST

Gandhi Maidan Blast

27 अक्टूबर 2013 को पटना के गांधी मैदान समेत अन्य कई स्थानों पर बम धमाके हुए थे. इन धमाकों में 6 लोगों की जान गयी थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले दहशतगर्दों को बुधवार को सजा सुनाई जायेगी.

पटना: 27 अक्टूबर 2013 बिहार के इतिहास में ऐसी कहानी लिख गया, जितने लोकतांत्रिक मूल्यों पर आरोपों में ही सही राजनीतिक विरोध का ऐसा ताना-बाना खड़ा किया जो पूरे विश्व को लोकतंत्र देने वाली धरती को दागदार कर गया. गांधी मैदान में सिलसिलेवार बम धमाकों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसा परमो धर्म के मूल सिद्धांत को मटिया मेटकर गया.

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27 अक्टूबर 2013 को पटना के गांधी मैदान में भाजपा की हुंकार रैली थी. भाजपा ने नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर रखा था. 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए पूरी रणभेरी बजा रखी थी. बिहार के सभी बड़े नेता गांधी मैदान के मंच पर मौजूद थे. सभी लोग नरेंद्र मोदी और देश में चल रही सरकार के बारे में बातें रख रहे थे. काला धन, भ्रष्टाचार, अच्छे दिन आने वाले हैं, देश मोदी जी को लाने वाला हैं, जैसे तमाम नारे गांधी मैदान में गूंज रहे थे.

यह भी सही है कि बीजेपी में उत्साह इसलिए भी था की पूरा गांधी मैदान नरेंद्र मोदी को सुनने के लिए खचाखच भरा हुआ था. हालांकि इस बात का अंदाजा किसी को नहीं था कि अगले पल जो होने वाला है वह इतना भी विभत्स होगा, हम अपनों की जान गंवा बैठेंगे. उसके बाद जब गांधी मैदान में बम धमाकों का सिलसिला शुरू हुआ तो बिहार ही नहीं पूरा देश हिल गया.

पटना की पश्चिमी उत्तरी कोने पर नरेंद्र मोदी का मंच बना हुआ था. उसके बगल में ही बापू की विशाल प्रतिमा लगी हुई है. सुरक्षा घेरे के बाद मीडिया कर्मियों के लिए कुल 7 लेयर का सीढ़ीनुमा मंच बनाया गया था. जिस पर बिहार सहित पूरे देश की मीडिया विराजमान थी. चर्चा अलग-अलग तरह की थी क्योंकि बहुत सारे लेखक-विचारक-समीक्षक समालोचक पूरे देश से वहां पहुंचे हुए थे. मीडिया के बीच कौतूहल का विषय भी था और उन्हीं लोगों की चर्चा भी मंच पर कई नेता भाषण तो दे रहे थे लेकिन उनको सुनने की इच्छा फिलहाल मीडिया कर्मियों को भी नहीं थी. लोग अपने में मशगूल थे और मैं भी उन्हीं लोगों में एक था.

पटना में नरेंद्र मोदी के आने को लेकर तैयारी जोरों पर थी. गांधी मैदान में लगभग एक हफ्ता पहले से ही सुरक्षा-व्यवस्था सहित तमाम चीजें काफी चाक-चौबंद कर ली गई थीं. नरेंद्र मोदी उस समय प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे लेकिन नरेंद्र मोदी जिस तरीके से सभाओं में भीड़ बटोर रहे थे और बीजेपी के लिए जिस तरीके से माहौल बन रहा था संभव था कि गांधी मैदान में भी वह माहौल दिखेगा. बीजेपी का दावा था कि अब तक गांधी मैदान में जितनी बड़ी रैली नहीं हुई है, उससे बड़ी रैली होगी. लोगों की भीड़ भी खूब होगी. यह देखने के लिए सभी मीडिया कर्मियों के भीतर कोतुहल भी था कि जो भीड़ हो रही है वह है कितनी. गांधी मैदान कितना बड़ा है. उसमें प्रति स्क्वायर फीट कितने लोग आ सकते हैं. जब 27 अक्टूबर 2013 को घड़ी में लगभग 10:30 बज रहे थे, कहा यह भी जा रहा था कि गांधी मैदान में जितनी भीड़ है, उतनी सड़कों पर है. चाहे वह एग्जिबिशन रोड हो, फ्रेजर रोड हो, अशोक राजपथ की बात हो, सरपेंटाइन रोड, बेली रोड, कंकड़बाग रोड, कदमकुआं रोड की बात हो या फिर उत्तर बिहार से आने वाले लोगों की गाड़ियों के बाईपास में फंसे होने की बात हो. पत्रकारों की जुबान पर लगभग इसी तरह की चर्चा थी.

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लगभग 1 घंटे बाद यह तय हो गया कि नरेंद्र मोदी के आने का समय पूरा हो गया है. अब महज आधे घंटे बचे हैं. जब नरेंद्र मोदी गांधी मैदान पहुंचेंगे 12:00 नरेंद्र मोदी को गांधी मैदान पहुंचना था. उसी तरह की सब की तैयारी भी थी लेकिन उसके बाद जो हुआ वह किसी के भी लिए उनके जीवन का वह पल जरूर रहा होगा. जिसमें जो लोग बम धमाके की चपेट में आए थे उनकी जिंदगी बचेगी कि नहीं पहला सवाल और बम धमाके और कितने होंगे. उसमें अपनी जिंदगी कैसे बचेगी, यह दूसरा सवाल था. इसी के बीच गांधी मैदान में खबर खोजी जा रही थी लेकिन उस घटना से सभी लोग अनजान थे जो पटना जंक्शन पर हो चुकी थी. पहला धमाका 27 अक्टूबर 2013 को गांधी पटना जंक्शन के बाथरूम में हुआ जहां मानव बम बनने के क्रम में गलती से बम विस्फोट हो गया और वहां की सुरक्षा एजेंसियों ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया.

पटना जंक्शन पर जो धमाका हुआ और उसके बाद जिस तरीके का खुलासा जंक्शन पर किया गया, सभी जांच एजेंसियों के साथ पुलिस अधिकारियों के होश फाख्ता हो गए. यह सभी चीजें गांधी मैदान में लोग मौजूद लोगों को नहीं पता थी बताया यह गया कि गांधी मैदान में सीरियल ब्लास्ट होगा. जब तक इस चीज की सूचना पहुंचती, पहला धमाका गांधी मैदान के पूर्वी किनारे के उद्योग भवन के थोड़ा पहले हो गया. उसके बाद दूसरा धमाका, तीसरा धमाका, चौथा धमाका, पांचवा धमाका और छठवां धमाका भी हुआ. लगभग 12 मिनट के बीच गांधी मैदान में कुल 6 धमाके हुए. उसके बाद जो गांधी मैदान में हुआ उसमें सिर्फ अफरा-तफरी का माहौल था.

उस भीड़ में मौजूद मैं भी इस चीज का गवाह हूं कि धमाके हो रहे थे लेकिन यह पता नहीं चल रहा था कि किस छोर पर हुआ है क्योंकि भीड़ इतनी ज्यादा थी कि सिर्फ आवाज आ रही थी. धुंए का गुबार दिख रहा था. उस दौरान मैं भी पुलिस के साथ ही था. उसमें जो लोग घायल हुए थे उनको उठाने में मैं लगा रहा. उस समय इस बात का अहसास भी नहीं था कि मीडिया कर्मी के तौर पर मेरी भूमिका चैनल में ब्रेकिंग लिखवाने की है या फिर पहले लोगों को अस्पताल पहुंचाने की. शायद यही वजह थी कि लोगों को अस्पताल पहुंचाने में मैं भी लगा रहा.

11:45 से लेकर 12:20 तक सभी धमाके हो चुके थे. गांधी मैदान का पूरा रुख ही बदल चुका था. मंच पर मौजूद नेता इस बात को जरूर कह रहे थे किसी को भागने की जरूरत नहीं है. किसी को दौड़ने की जरूरत नहीं है लेकिन इस विकराल कांड के बाद जिस तरीके से लोगों के मन में गुस्सा बढ़ रहा था और एक डर पनप रहा था. उसे रोक पाना बड़ा मुश्किल था. हालांकि इसमें भी सबसे बड़ी बात यह थी कि जो भीड़ थी वह गांधी मैदान से हटी ही नहीं और वही जमा रही. नरेंद्र मोदी को 12:00 बजे मंच पर आना था लेकिन बम धमाकों के बाद उनके आने में देरी हुई और लगभग 2:00 बजे नरेंद्र मोदी मंच पर पहुंचे. राजनीतिक भाषण चाहे जो दिया गया हो लेकिन एक बात जरूर कहा कि ना तो डरना है ना और ना ही घबराना है.

गांधी मैदान में जब बम धमाके हुए थे तो उस समय पटना में सीनियर एसपी मनु महाराज हुआ करते थे. काफी परेशान मनु महाराज इस बात को लेकर के भी थे कि जो सुरक्षा इंतजाम गांधी मैदान में होना था उसकी तैयारी कैसे की गई. बहरहाल, नरेंद्र मोदी अपना भाषण देकर चले गए. गांधी मैदान को पूरे तौर पर सील कर दिया गया. केंद्र की सरकार ने एनआईए की टीम गांधी मैदान भेजी और जांच की दूसरी प्रक्रिया भी शुरू हो गई. एनआईए की जांच जब शुरू हुई तो पूरे तौर पर गांधी मैदान को सील कर दिया गया था. किसी को जाने की इजाजत नहीं थी. हालांकि जो जांच चल रही थी उसे बाहर से वीडियो बनाने की अनुमति मिली हुई थी. जब एनआईए ने जांच शुरू की तो 5 जिंदा हम गांधी मैदान से और बरामद किए गए. सबसे अहम बात की उनको जिस तरीके से डिफ्यूज किया गया, वह भी अनोखा था. बालू भर के घड़े के नीचे उन्हें दबा दिया गया. कागज में आग लगा दी गई. इन पांचों बमों को गांधी मैदान में ही डिफ्यूज किया गया. जिसको लेकर के भी सियासत खूब हुई कि अगर बड़े बम होते तो अगल-बगल नुकसान हो सकता था. जो तैयारी थी वह सिर्फ इसी रूप में थी कि बम धमाके से दहशत पैदा करना है. वास्तव में यह एक उस मानव बम को जगह देने की कवायद थी जो नरेंद्र मोदी की गाड़ी या नरेंद्र मोदी से टकरा कर उन्हें उड़ा देता लेकिन यह सौभाग्य की बात थी कि न तो गांधी मैदान में भगदड़ मची और न ही कोई ऐसी स्थिति बन पाई. इसके चलते आतंकी अपने मंसूबे में कामयाब नहीं पाये.

एनआईए की जांच का दायरा बढ़ा. 10 लोगों की गिरफ्तारी हुई और मास्टरमाइंड हैदर अली को गिरफ्तार किया गया. जब इस पूरे मामले की जांच पड़ताल शुरू हुई तो पाया यह गया कि गांधी मैदान में जो करना है उसकी पूरी देख की गई थी. रिहर्सल भी हुआ था. हैदर अली ने रांची में इस बात की पूरी तैयारी की थी. उसका रिहर्सल भी किया था कि किस तरीके से बम धमाके करने हैं. हालांकि जो बम गांधी मैदान में लगाए गए थे, उनकी क्षमता काफी कम थी नहीं तो मामला बड़ा हो जाता. उसके बाद भी गांधी मैदान में हुए बम धमाकों में हमने 6 लोगों की जान गंवाई और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए. हैदर अली के बारे में यह कहा गया को बम बनाने में माहिर था और बम चलाने के लिए किन-किन चीजों का ध्यान रखना है इसकी पूरी तैयारी की गई थी. खजूर के पेड़ में बैग को बांधकर रिमोट से उसे उड़ाया गया था ताकि मानव बम अगर गांधी मैदान में मोदी के पास तक पहुंच जाता तो रिमोट का उपयोग करना कैसे था. लेकिन यह भी सही है कि बुराई कितनी भी बड़ी हो अच्छाई से हार ही जाती है. पूरे देश का मन, पूरे बिहार का मन अहिंसा का था. मैदान बापू के नाम का था इसलिए इस मंसूबे को लोग अंतिम स्वरूप नहीं दे पाए. गांधी मैदान में जिस खामोशी से इस दर्द को सहा और जितने लोग वहां पर मौजूद थे, उन लोगों ने इस दर्द को देखा है. हमारी तरह जिया है. उनके मन में गुस्सा जरूर है कि आखिर यह दहशत गर्द मानवीय मूल्यों को तार-तार करने में क्यों लगे रहते हैं.

27 अक्टूबर 2013 बिहार के दामन पर दाग लगा गया. जिसमें कुछ लोगों की मानसिकता ने छह निरीह लोगों की जान ले ली. 27 अक्टूबर 2021 को गांधी मैदान बम धमाके का फैसला आने वाला है. माना जा रहा है कि जो दोषी हैं, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी और मिलनी भी चाहिए क्योंकि मानवीय मूल्यों को सिर्फ किसी जिद के आगे बेगुनाहों की जान ले लेना कहीं से सही नहीं कहा जा सकता. 27 अक्टूबर 2013 की उस घटना के बाद उन लोगों पर कानून का कड़ा चाबुक लगे, इस इंतजार में अपनों के खून से सने दामन को लिए सिसक रहा है गांधी मैदान. इंतजार इसी बात का है कि जिन लोगों ने इस नापाक हरकत को अंजाम दिया था, उन्हें कानून से इतनी कड़ी सजा मिले कि आगे ऐसा कोई सोचे भी तो उसकी रूह कांप जाए. इस बम धमाके में जिन लोगों ने अपनी जान गंवाई, ईटीवी भारत उन्हें शत-शत नमन करता है. अपनी श्रद्धांजलि देता है.

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भूपेंद्र दूबे, स्टेट हेड, ईटीवी भारत बिहार

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