बिहार में शराबबंदी कानून: 6 साल में 3 लाख से ज्यादा केस दर्ज, सिर्फ 1200 लोगों को सजा, जानें वजह..

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Published : Jan 20, 2022, 5:47 PM IST

बिहार में शराबबंदी कानून

बिहार में शराबबंदी कानून अप्रैल 2016 में लागू है. इसके बाद से बिहार पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के मुताबिक अब तक मद्य निषेध कानून उल्लंघन से जुड़े करीब 3 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं. लेकिन अब तक मात्र 1200 आरोपियों को बिहार पुलिस सजा दिलवा पायी है. पढ़ें पूरी खबर..

पटना: बिहार में शराबबंदी कानून अप्रैल 2016 से लागू है. वहीं, बिहार पुलिस मुख्यालय के मुताबिक कानून लागू ( Liquor Ban Law In Bihar ) होने के बाद से अब तक 4 लाख से ज्यादा लोग कानून उल्लंघन में जेल जा चुके हैं. लेकिन बिहार पुलिस अभी तक महज 1200 आरोपियों को ही कानून के तहत सजा दिलवा पायी है. दरअसल, बिहार पुलिस के अनुसंधान में कमियों की वजह से शराबियों को या तस्करों को आसानी से जमानत मिल जा रही है.

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बिहार में शराबबंदी काननू को सख्ती से लागू करने को लेकर बिहार पुलिस और उत्पाद विभाग लगातार कार्रवाई कर रही है. लेकिन इस बेहद सख्त कानून के जरिए आरोपियों को सजा दिलाने की रफ्तार काफी धीमी है. ऐसे में पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास की मानें तो सजा के दर में कमी का कारण अनुसंधान में तकनीकी कमियों का रहना है. जिसका फायदा आरोपी को मिल जाता है. जिससे वो कोर्ट से आसानी से बेल ले लेते हैं. अधिकांश मामलों में पुलिस वालों को तकनीकी बातों की जानकारी नहीं होने के कारण आरोपी छूट जाते हैं.

पूर्व आईपीएस अमिताभ दास ने कहा कि, इस कानून के तहत सजा की दर कम होने का मुख्य कारण है कि पुलिस अपनी अच्छी छवि को कायम रखने के लिए जबरदस्ती मामले दर्ज कर लेती है. बाद में बिना साक्ष्य और सबूत के अभाव में आरोपियों को आराम से बेल मिल जाता है. बिहार पुलिस की जांच का स्तर काफी गिर गया है. बिना साक्ष्य और सबूत के एफआईआर दर्ज कर जेल भेज दिया जाता है.

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'जब मामला कोर्ट में जाता है तो पुलिस द्वारा जमा किया गया साक्ष्य बहुत ही निचले स्तर के निकलते हैं. आईओ यानी इनवेस्टिगेशन ऑफिसर केस को कमजोर बना देते हैं. जिसका फायदा उठाते हुए अपराधी आसानी से छूट जाते हैं. दूसरा बड़ा मामला ये है कि पुलिस जबरदस्ती गवाह बना लेती है. ज्यादातर गवाह न्यायालय में पलट जाते हैं. जिसके आधार पर आरोपी को बेल मिल जाता है.' - अमिताभ दास, पूर्व IPS

पूर्व आईपीएस अमिताभ दास ने बताया कि, दूसरा सबसे बड़ा कारण ये है कि जब्त की गई शराब को मालखाने में रखा जाता है. मालखाने की स्थिति ऐसी है कि शराब की बोतल फूट जाती है या फिर चूहे पी जाते हैं. जिस वजह से कोर्ट के समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं. आरोपियों को आसानी से कोर्ट में बेल मिल जाता है. एक और बड़ा कारण है कि जब शराब जब्त की जाती है, तो उसकी रिपोर्ट बनाने के लिए FSL को भेजा जाता है. वहीं, कोर्ट में FSL की ओरिजनल रिपोर्ट को नहीं जमा करने पर भी आरोपी को बेल मिल जाता है. पुलिस FSL रिपोर्ट को मेल के माध्यम से प्राप्त कर प्रिंट आउट निकाल कर जमा करती है.

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उन्होंने बताया कि, शराबबंदी कानून के तहत पिछले 5 सालों में 3 लाख 54 हजार से ज्यादा एफआईआर दर्ज हो (more than 3 lakh cases registered in liquor ban law) चुकी है. पुलिस की कमी के वजह से कहीं ना कहीं हाईकोर्ट से लेकर निचली अदालत में सुनवाई के लिए सवा 2 करोड़ मामले लंबित पड़े हुए हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मक्खन लगाने के लिए जिलों की पुलिस थोक के भाव में केस दर्ज कर रही है. जिसकी गुणवत्ता नहीं होने के कारण आसानी से कोर्ट से आरोपी छूट रहे हैं.

पूर्व आईपीएस अमिताभ दास ने कहा कि, नीतीश कुमार को प्रोफेशनल तरीके से पुलिस को काम करने देना चाहिए. बिहार पुलिस के ऊपर किसी तरह का राजनीतिक दबाव नहीं होना चाहिए, तभी पुलिस अच्छे से काम कर पाएगी. CM नीतीश ने इस काननू को कहीं ना कहीं अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है. पुलिस के पास सिर्फ और सिर्फ शराबबंदी कानून को पालन करवाने के अलावा कोई और कार्य नहीं बचा है. पुलिस अगर अच्छे से चार्जशीट दाखिल करे तो उन्हें साक्ष्य को बचाकर रखना होगा. इसके अलावे गवाहों को प्रोटेक्शन भी देना होगा. तभी गवाह कोर्ट तक जाकर गवाही दे सकता है, नहीं तो ज्यादातर मामलों में गवाह पलट जाते हैं.

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