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जिन भूमिहारों का लालू से रहा छत्तीस का आंकड़ा, क्या सच में तेजस्वी के लिए बदल रहा उनका मन!

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Published : Apr 19, 2022, 9:01 PM IST

भूमिहार और राजद का समीकरण
भूमिहार और राजद का समीकरण

राजद नेता तेजस्वी यादव (RJD leader Tejashwi Yadav) अपनी पार्टी को ए टू जेड वाली पार्टी बनाना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने भूमिहार समेत सवर्ण समुदाय को अपनी तरफ करना शुरू कर दिया है, इसका असर भी दिखने लगा है. हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि क्या तेजस्वी का नया दांव सटीक बैठेगा? क्योंकि यह वही राज्य है, जहां कभी राजद की तरफ से कथित तौर पर 'भूरा बाल साफ करो' का नारा लगाने का राजनीतिक आरोप विरोधी दल लगाते रहे हैं. पढ़ें ये रिपोर्ट..

पटना: बोचहां उपचुनाव (Bochaha By Election) में धमाकेदार जीत दर्ज करने वाली राष्ट्रीय जनता दल अब अपने विस्तार पर ध्यान दे रही है. विरोधी पार्टियों द्वारा इस पार्टी पर जातिवाद राजनीति करने का आरोप लगता रहा है, लेकिन हालिया विधान परिषद चुनाव में राजद के टिकट पर तीन भूमिहार समाज के विधान पार्षद चुने गए हैं. वहीं, भूमिहार बहुल बोचहां विधानसभा में भी भूमिहार समाज ने राजद को खुलकर सपोर्ट किया. ऐसे में माना जा रहा है कि भूमिहार समाज राजद के साथ आ रहा है. खुद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सूबे की राजनीति में एक नये समीकरण को धार देने में लगे हैं.

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कितनी है भूमिहारों की ताकत: अगर वर्तमान बिहार विधानसभा में तमाम पार्टियों द्वारा जीते गए सीटों को देखें तो इस बार विधानसभा में सवर्ण जातियों के 64 विधायक चुनकर आए हैं. इनमें सबसे ज्यादा 28 राजपूत, 21 भूमिहार, 12 ब्राह्मण और तीन कायस्थ जाति से हैं. सवर्ण जातियों में राजपूत व भूमिहार समाज दबंग माने जाते हैं. दरअसल, बिहार राजनीति की ऐसी प्रयोगशाला है, जिसमें जाति की राजनीति करने वाले अपने अनुसार प्रयोग करते रहते हैं.

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19 प्रतिशत हैं अगड़ी जातियां: जानकारी के अनुसार राज्य की कुल आबादी में अगड़ी कही जाने वाली जातियां सबसे ज्यादा भूमिहार समाज की आबादी का प्रतिशत है. इस समाज का करीब 6 प्रतिशत वोट है. जबकि इसके बाद ब्राह्मण, राजपूत व कायस्थ का स्थान है. राजनीतिक जानकारों की माने तो करीब 17 प्रतिशत मुस्लिम और 12 प्रतिशत यादव वोट के दम पर 15 सालों तक बिहार में शासन करने वाला राजद अगर 6 प्रतिशत भूमिहार समाज को अपने साथ करने में सफल हो जाता है तो यह वोट बैंक का कुल 35 प्रतिशत हो जाता है, जो सत्ता के दरवाजे को खोलने में काफी हद तक निर्णायक हो जाता है.

जाति आबादी (%) ध्यान देने योग्य:

  • ओबीसी/ईबीसी 46%
  • यादव 12%
  • कुर्मी 4%
  • कुशवाहा (कोइरी) 7%
  • (आर्थिक रूप से पिछड़े 28% जिसमें 3.2% तेली भी आएंगे)
  • महादलित/दलित (अनुसूचित जातियां) 15% (इस श्रेणी में चमार 5%, दुसाध/पासवान 5% और मुसहर 1.8% समुदाय आते हैं)
  • मुस्लिम 16.9% (इसमें सुरजापूरी, अंसारी, पसमांदा, अहमदिया जैसे कई समुदाय आते हैं, लेकिन टिकट अधिकतर शेखों को मिलते रहे हैं.)
  • तथाकथित अगड़ी जातियां 19%
  • भूमिहार 6%
  • ब्राह्मण 5.5%
  • राजपूत 5.5%
  • कायस्थ 2%
  • अनुसूचित जनजातियां 1.3%
  • अन्य 0.4% सिक्ख, जैन और ईसाई

पिछली विधानसभा से अभी ज्यादा भूमिहार विधायक: बिहार विधानसभा की बात करें तो इस बार कई दलों को मिलाकर 21 भूमिहार विधायकों ने जीत दर्ज की थी. जबकि 2015 में यह संख्या 17 थी. इस बार सबसे ज्यादा भूमिहार विधायक बीजेपी से जीतकर आए हैं. बीजेपी के 14 भूमिहार प्रत्याशियों में से 8, जेडीयू के 8 उम्मीदवारों में से 5 और हम पार्टी से एक भूमिहार प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी. यानी एनडीए की तरफ से 14 भूमिहार विधायक बने. वहीं, महागठबंधन की बात करें तो 6 भूमिहार ने जीत दर्ज की. इनमें कांग्रेस के 11 भूमिहार प्रत्याशियों में से 4, जबकि राजद व सीपीआई से एक-एक चुने गए थे. जबकि 2015 में बीजेपी के टिकट पर 9, जेडीयू के टिकट पर 4 और कांग्रेस के टिकट पर तीन भूमिहार विधायक चुने गए थे.

ऊंची जाति के नेताओं को शीर्ष पद: देर से सही लेकिन राजद भी लोगों के बीच यह धारणा बनाने की कोशिश कर रहा है कि पार्टी ऊंची जाति के अनुकूल है. यही कारण हो सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में राजद ने ऊंची जाति के नेताओं को शीर्ष पद और प्रतिनिधित्व की पेशकश की है. राजद अब ऊंची जाति के लोगों का दिल जीतना चाहता है और एमवाई (मुस्लिम-यादव) वाले गुणक से बाहर आकर भू-माय समीकरण (BMY Equation in Bihar) को साधना चाहता है. लेकिन, राजद ने आर्थिक रूप से पिछड़ी सवर्ण जातियों को 10 फीसदी आरक्षण देने के राजग सरकार के कदम का जिस तरह से विरोध किया, राजद के लिए उनका विश्वास हासिल करना कठिन है.

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'भू-माय समीकरण को स्वीकृति नहीं':बिहार की बहुचर्चित सेनाओं में से एक रणवीर सेना के मुखिया बरमेश्वर सिंह के पोते व अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष चंदन सिंह कहते हैं कि चुनाव में भूमिहार समाज किसके साथ जाएगा यह समाज तय करेगा ना कि कुछ नेता. पूरे बिहार में भू माय समीकरण (भूमिहार-मुस्लिम-यादव) का शोर मचाया जा रहा है. जबकि भूमिहार समाज की तरफ से इसकी स्वीकृति नहीं मिली है. जब तक समाज की स्वीकृति नहीं होगी, दो-चार लोगों के कहने से समीकरण नहीं बन जाएगा.

''हमें 1990 और उसके पहले की घटनाएं याद हैं, जब सूनी मांग थी और सूने खेत. केवल अगड़ा जानकर लोगों को छह इंच छोटा कर दिया जाता था. यह सब राजद के ही शासन काल में होता था. हम यह कभी भूल नहीं सकते क्योंकि हमने अपना पूरा बचपन और जवानी दहशत के साए में काटा है. हमारे बाबा ने नौ साल भूमिगत और नौ साल जेल में रहकर लड़ाई लड़ी थी. उसके बाद अगर आप यह उम्मीद करते हैं कि यह समीकरण बिहार में रूप ले रहा है तो मुझे यह हास्यास्पद लगता है.''- चंदन सिंह, रणवीर सेना के मुखिया बरमेश्वर सिंह के पोते

भूमिहार और लालू का समीकरण: दलित समूह के नेतृत्व में नक्सलियों और रणवीर सेना (स्वर्गीय ब्रह्मेश्वर मुखिया द्वारा स्थापित एक भूमिहारों का एक प्रतिबंधित संगठन) के बीच नरसंहारों का सिलसिला चला. इसने दोनों के बीच तनाव और बढ़ गया. जहानाबाद जिले के सेनारी गांव में मार्च 1999 में 34 भूमिहारों की एमसीसी (माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर) ने हत्या कर दी. बिहार के भूमिहार अब भी राजद को निशाना बनाने के लिए उस घटना को लालू से जोड़कर देखते हैं क्योंकि लालू ने कभी भी नरसंहार वाले उन स्थलों का दौरा नहीं किया जहां ऊंची जाति के लोग मारे जाते थे.

लालू पर लगा था गंभीर आरोप: बिहार में ऊंची जाति वास्तव में तभी से लड़ाई लड़ रही हैं, जब 90 के दशक में लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बने थे. ऊंची जाति और राजद के बीच तनाव तब और बढ़ गया जब लालू ने कथित तौर पर भू-रा-बा-ल साफ करो का आह्वान किया था. बदनामी वाले इस नारे से ऊंची जाति के बीच एक धारणा बनाई गई कि लालू भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला (कायस्थ) को दरकिनार करने की कोशिश कर रहे हैं. लालू ने सार्वजनिक सभाओं में कई बार इस तरह की बातें कहने से इनकार किया था, लेकिन यह संदेश जंगल की आग की तरह फैल गई.

रक्त रंजित रहा है गुजरा हुआ कल: दरअसल, बिहार ने एक लंबे वक्त तक कई नरसंहार को देखा है. 80 व 90 के दशक में कई ऐसे नरसंहार हुए जिसने पूरी दुनिया को सन्न कर दिया था. अगड़े बनाम पिछड़े की इस लड़ाई में अगड़ी जातियों में सबसे ज्यादा भूमिहार समाज को ही झेलना पड़ा था. सबसे पहले 1979-80 में परसविघा व दोहिया नरसंहार की घटना हुई थी. इसके बाद 1992 में बारां नरसंहार की घटना हुई, जिसमें 37 भूमिहारों की हत्या कर दी गई थी, जिसका आरोप एमसीसी पर लगा था.

इसके बाद सेनारी नरसंहार हुआ, इसमें 34 भूमिहारों की हत्या की गई थी, इसका आरोप भी एमसीसी पर लगा था. इस घटना में पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार रहे पद्मनारायण सिंह की भी मौत हो गई थी. दरअसल, तब घटना की जानकारी मिलने के बाद सेनारी गए पद्मनारायण सिंह ने अपने परिवार के आठ लोगों के शव को देखा और उनको दिल का दौरा पड़ गया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई.

RJD के खिलाफ रहे हैं भूमिहार: बिहार की राजनीतिक परिदृश्य पर गहरी पकड़ रखने वाले संजय उपाध्याय कहते हैं कि ''केवल पांच प्रतिशत मत की क्षमता रखने वाली भूमिहार जाति को तेजस्वी यादव ने एक नये समीकरण के तहत मिलाने की कोशिश की है. राजद द्वारा विधान परिषद में 24 सीटों में सवर्णों को 10 टिकट दिया गया था. इसमें पांच भूमिहार जाति से थे. राजद के इतिहास में यह पहला मौका था जब करीब 40 प्रतिशत टिकट सवर्णों को दिया गया, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि यही भूमिहार जाति राजद के खिलाफ आक्रामक रूप से एनडीए के लिए गोलबंद होती रही है. यह समीकरण आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनाव में कितना सफल होगा. कहना मुश्किल है.''

इस मसले पर कुछ कहना सही नहीं: इस पूरी कवायद पर राजद के एक प्रदेश प्रवक्ता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, पार्टी पूरी तैयारी से इस नये दांव पर कार्य कर रही है, हालांकि हमें इस टॉपिक पर कुछ भी कहने या बोलने से मना किया गया है.

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