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बिहार ने लिखी बदलाव की कहानी, बेटियों का बढ़ा अनुपात

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Published : Nov 29, 2021, 7:32 AM IST

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की कम आबादी के कारण देश में कई तरह की परेशानियां आ रही हैं. इसीलिए विभिन्न राज्य सरकारों ने बेटियों की आबादी में इजाफा (Increase in the population of daughters)और उनके कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. बिहार में इसका काफी उत्साहजनक रिजल्ट देखने को मिला है. पढ़ें विशेष रिपोर्ट.

Daughters Population in Bihar
Daughters Population in Bihar

पटना: बिहार में बेटियों को लेकर जो रिपोर्ट (Daughters Population in Bihar) आई है, वह निश्चित तौर पर गर्व का विषय है. प्रति 1000 पुरुषों पर 1090 बेटियों (1090 Daughters per 1000 Men) का होना बिहार जैसे राज्य के लिए ही संभव है. इस आंकड़े को लाकर बिहार ने विश्व के फलक पर वह कीर्तिमान स्थापित कर दिया जो सृष्टि की संरचना का मूल आधार है. इसके बिना इस सृष्टि की संरचना भी नहीं की जा सकती चाहे वह संबंधों के जिस स्वरूप में हो.

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बेटियों पर बिहार के आंकड़े के आने के बाद निश्चित तौर पर बिहार में उत्साह मनाने का विषय है, उल्लास मनाने का विषय है, हर्ष से इतराने का विषय है. आबादी की जो लिस्ट महिलाओं की जारी हुई है, पहली बार ऐसा हो रहा है जिसके लिए उत्सव मनाने का सबका मन कर रहा होगा. इस बात में विभेद या गुरेज चाहे जो हो कि 2005 में नीतीश कुमार के गद्दी पर बैठने के बाद महिलाओं के लिए जो काम किए गए लड़कियों को लेकर जिस तरह की बातें की गईं, बिहार ने जिस तरीके से उसे अंगीकार किया.

सरकारी योजनाओं ने बनाया स्वावलंबी
उससे एक बात तो साफ है कि बिहार ने बदलाव की एक बड़ी कहानी लिख दी. विषय राजनीतिक संबंध से तो नहीं जुड़ा है लेकिन राजनीति इसलिए भी इसमें थोड़ी सी जगह पा रही है कि 2005 में जो बेटियां 7 साल की थी आज वह बिहार के लिए नीतियां बनाने लायक हो गई हैं. उनके लिए जिस शैक्षणिक आधार को रखा गया था, पढ़ाने की जिस बात को कहा गया था पढ़ने की जिस बात को कहा गया था साइकिल पोशाक योजना की जो बात कही गई थी, उसने उन बेटियों को एक स्वावलंबन दिया. आधार इतना मजबूत किया कि आज बिहार इस चीज को मानने लगा है कि बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं है. जिसका परिणाम सरकारी आंकड़ों में उस गणना के साथ आ गया जिसमें बिहार ने विश्व फलक पर कीर्तिमान स्थापित कर दिया.

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समाप्त हो रही दकियानूसी सोच
समाज का एक स्वरूप यह भी है और इससे इनकर नहीं किया जा सकता कि घर चाहे जितना पढ़ा लिखा हो, आर्थिक संपन्नता चाहे जितनी बड़ी हो लेकिन बेटियां घर में पैदा होती है तो बाप का कंधा झुक जाता है. समाज में उसे जिम्मेदार बना दिया जाता है कि उसके ऊपर बोझ है. बेटी का एक कर्ज है जो उसकी शादी तक इस रूप में रहता है कि कैसे भी करके उसे बेहतर जीवन मिले.

शादी के बाद बेटी की को घर इस रूप में मिले की उसका जीवन खुशियों से भरा रहे. यह बिहार ही है जो बदलाव की ऐसी कहानी भी लिख सकता है जिसमें बेटी के पैदा होने और बेटी के होने से बाप की चिंता अब बदल जाएगी. बेटियों की संख्या इसलिए नहीं बढ़ी है कि इस सरकार ने बहुत कुछ किया है. लेकिन सरकार ने जितना कुछ किया है, उसे बिहार ने अपने साथ जोड़ा है.

सरकार नीतियां जो बनाती है वह समाज के लिए निश्चित तौर पर आईना होती हैं. बिहार में बेटियों को पढ़ाने के लिए जितनी भी योजनाएं चलाई गईं, उसने निश्चित तौर पर एक दिशा दी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2016 में बिहार में शराबबंदी (Liquor ban in Bihar) और 2017 में दहेज बंदी कानून (dowry ban law) लाकर बिहार को एक ऐसे स्वावलंबी राज्य के तौर पर खड़ा किया जहां बेटियों के लिए बहुत कुछ होता दिखा.

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आरक्षण का भी मिला सहारा
सरकारी नौकरियों में बेटियों के लिए आरक्षण, पंचायतों में बेटियों के लिए 50 फीसदी आरक्षण, बेटियों को पढ़ाने के लिए खर्च सरकार द्वारा देना और यही वजह है कि बिहार की बेटियों ने पूरे भारत में अपने हुनर का लोहा मनवाया. इसका परिणाम हुआ कि वह बेटियां जो घर की दहलीज के भीतर इस आधार पर रुक जाती थीं उनके लिए चूल्हा-चौका ही अहम है. आज एयर फोर्स की पायलट बन आसमान में उड़ान भर रही हैं. बिहार की बेटी का पूरा देश इस्तकबाल कर रहा है.

बिहार में जिस आंकड़े को पाया है, जरूरी है कि यह गिरने ना पाए. बिहार बेटे-बेटी में कभी भी अंतर नहीं किया और ना आगे करेगा क्योंकि विदेह कि जिस धरती से सीता पैदा हुई है वह भारतीय नारी शक्ति का यह स्वरूप खड़ा कर सकता है. जो स्वरूप बिहार ने खड़ा किया है और जिस आबादी की तरफ आज इशारा हो रहा है, निश्चित तौर पर यह उत्सव मनाए जाने वाली आबादी है. आज यह कहा जा सकता है मेरे भारत के कंठ हार तुझ को शत-शत वंदन बिहार.

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