पटना/बक्सर/भागलपुर: कल वृहस्पतिवार यानी 9 जून को गंगा दशहरा (Ganga Dussehra on 9th June) है. और हिन्दू धर्म को मानने वालों के लिए यह पर्व विशेष मायने रखता है. कहते हैं कि इस दिन गंगा में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है मोक्षदायनि गंगा का क्या हाल है. ये इतना प्रदूषित हो चुकी है कि कई घाटों पर स्नान करना वर्जित कर दिया गया है. आइए जानते हैं-गंगा कितनी मैली हो (Ganga River became Dirty) चुकी है. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने माना है कि गंगा का पानी इतना मैला हो चुका है कि पीना तो दूर नहाने लायक भी नहीं बचा है. पटना के कई घाटों से गंगा दूर भी हो गई है.
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'गंगा का पानी नहाने लायक नहीं बचा': पहले और अभी भी गंगाजल ही पूजा में उपयोग किया जाता है. पूजा-पाठ में लोग गंगाजल समर्पित करते हैं. लेकिन जिस तरह से गंगा में शहर का गंदा पानी गिराया जा रहा है. जिससे गंगा दूर होते जार रही है. अगर केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की माने तो बिहार में गंगा का पानी शुद्ध नहीं है. जल प्रदूषण इतना बढ़ गया है, कि उसमें नहाया तक नहीं जा सकता है. अब भी सीवेज का पानी बिना उपचार के सीधे गंगा में गिराया जाता है. बक्सर से लेकर सुल्तानगंज तक गंगा का पानी पीने और नहाने के लायक नहीं बचा है. कुछ जगह को छोड़ दें तो गंगा जल में मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक जीवाणुओं की संख्या इतनी बढ़ गई है कि उसे फिल्टर भी नहीं किया जा सकता है.
बक्सर में भी गंगा का हुआ बुरा हाल: जिले में जीवन दायिनी मां गंगा का हाल-बेहाल है. अब तक सैकडों बार गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों के द्वारा सैकड़ों बार कार्यक्रम का आयोजन हुआ, उसके बाद भी दिन-प्रतिदिन हालात बिगड़ते चले गए, आलम यह है कि गंगा नदी का जल पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका है. शहर की गंदे नाले का पानी, और पशुओं के शव से कराह रही है जीवन दायिनी मां गंगा, नमामि गंगे योजना के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च किए गए, फिर भी नहीं बदले हैं हालात. जिले के चौसा से बिहार में प्रवेश करती हैं मां गंगा, चौसा, बक्सर, सिमरी, ब्रह्मपुर, प्रखंड के दर्जनों गांव के लोगों के लिए यह रोजगार का साधन हैं.
नमामि गंगे योजना के नाम पर करोड़ो रूपये खर्च: शहर के गंदे नाली की पानी से कराह रही हैं मां गंगा. आलम यह है कि शहर की साफ, सफाई में नगर परिषद के अधिकारियों के द्वारा प्रत्येक महीने 45 लाख रुपये खर्च कर शहर के गंदगी को बाईपास नहर, सिंडिकेट नहर और ठोरा नदी में डम्प कर दिया जा रहा है. जो गंदे नालियों की पानी में बहते हुए गंगा नदी में जा रहा है. मोदी सरकार के द्वारा अब तक नमामि गंगे योजना के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च किया जा चुका है. उसके बाद भी अब तक गंगा घाटों पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ना तो कहीं घाटों पर शौचालय का निर्माण कराया गया है, और ना ही कपड़े बदलने के लिए चेंजिंग रूम बनाया गया है. जिसके कारण श्रद्धालु घाटों पर ही शौच करते हैं.
मिनी काशी में पूरे बर्ष होता है धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन: मिनी काशी के नाम से मशहूर बक्सर में पूरे वर्ष किसी न किसी दिन धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन होते रहता है. हजारों श्रद्धालु बिहार के अलावे उत्तर प्रदेश, झारखण्ड एवं दूसरे प्रदेश से बक्सर में आस्था की डुबकी लगाने के लिए विश्वामित्र की पावन भूमि बक्सर में आते हैं. उसके बाद भी सरकार की ध्यान यहां नहीं है.
भागलपुर में गंगा का हाल-बेहाल: भागलपुर जिले में करीब 6 से 7 किलोमीटर चौड़ा और 65 किलोमीटर तक लंबा गंगा का क्षेत्र है. यह क्षेत्र गंगेटिक डॉल्फिन के तौर पर जाना जाता है. इस वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में डॉल्फिन और कई तरह के जलीय जीव मौजूद हैं. कई दुर्लभ प्रजाति के कछुए भी इस सेंचुरी में मौजूद हैं. गंगा के जल की शुद्धता प्रभावित होने की वजह से डॉल्फिन और कछुओं की संख्या में कमी आई है. गंगा का जल कई बाहरी स्रोतों के द्वारा गंदा पानी, केमिकल और वेस्टिज और डिस्चार्ज आने से अशुद्ध होता जा रहा है.
'गंगा जल की शुद्धता काफी कम हो गई है. गंगा जल गंदा होने की वजह से गंगा पानी धुंधला पन, विषैला पन हो गया है. गंगा के जल को लोग सीधे तौर पर बिना फिल्टर किए हुए नहीं पी सकते हैं. गंगा का पानी सीधा पीने से लोग बीमार पड़ सकते हैं, उसकी खास वजह यही है की गंगा का पानी चारों तरफ से खुला हुआ है. कई जगह से केमिकल हार्मफुल मेटल गंगा के जल में तेजी से घुलते जा रहे हैं.' - पंकज कुमार सिंह, क्वालिटी मैनेजर, भागलपुर जल प्रयोगशाला
गंगा जल की गुणवत्ता हुई कम: गंगा के जल को शुद्ध करने के लिए नमामि गंगे परियोजना सरकार के द्वारा लाई गई है ताकि गंगा अपने अस्तित्व में वापस लौट सके और गंगा को संरक्षित और सुरक्षित करने के लिए लाई गई केंद्र सरकार की नमामि गंगे योजना धरातल पर नहीं दिख रही है गंगा दिन-ब-दिन से प्रदूषित होती जा रही है. और गंगा का अमृत पानी भी विषैला हो चुका है.
पटना में घाटों को आकर्षक बनाया जा रहा है: पटना में घाटों को आकर्षक बनाया जा रहा है. लेकिन इस बात पर बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है, कि शहर से कई किलोमीटरों गंगा दूर चली गई है. बढ़ते प्रदूषण और घटते जल स्तर के कारण पहले से ही गंगा विकट स्थिति में है. बिहार की राजधानी पटना में ये अपने किनारों से बहुत तेजी से दूर होती जा रही है. इतना ही नहीं, यातायात की समस्या को सुलझाने के लिए नदी के ऊपर 20.5 किलोमीटर एलिवेटेड सड़क बनाई जा रही है.गंगा-पाथवे प्रोजेक्ट नामक ये महत्वाकांक्षी परियोजना गंगा के लिए एक नया खतरा है. प्रदूषण बोर्ड के आंकड़े बता रहे हैं कि पटना के सभी घाटों पर गंगा जल नहाने और पीने के लायक नहीं रह गया है. बिहार में करीब 425 किलोमीटर की दूरी में सीवेज गंगा के पानी में जहर घोल रहा है.
'कलेक्ट्रेट घाट के मंदिर से धीरे-धीरे गंगा खिसकने से सभी चिंतित है. पिछले 49 वर्षों से कलेक्टर घाट पर रह रहे हैं, और इस समस्या के लिए विकास के नाम होने वाले हस्तक्षेपों को दोषी मानते हैं. अब गंगा के आस-पास केवल गंदगी, मलिनता और सूखी रेत मिलती है. मां गंगा के लिए यह एक बुरा संकेत है. 2007-2008 तक कलेक्टर घाट तक गंगा उत्तरायन बहती थी. कलेक्ट्रेट घाट पर नदी का प्रवाह था और श्रद्धालु गंगा में पवित्र स्नान करते थे. और मंदिर में शहर के नाले सीधे गंगा से जुड़े हैं.' - भगवान राम, महंत
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