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बिहार चुनाव में आपराधिक पृष्टभूमि वाले उम्मीदवारों की लंबी फेहरिस्त, शीर्ष पर राजद

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Published : Oct 16, 2020, 10:37 PM IST

बिहार चुनाव के नजदीक आते ही सारी राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2005 से 2019 तक के आंकड़ों पर गौर करें तो बीजेपी से चुनाव लड़ने वाले 59% और राजद से चुनाव लड़ने वाले 56% उम्मीदवारों ने अपने आपराधिक मामलों की जानकारी दी है. इस मामले में जदयू 52% और कांग्रेस 43% के साथ थोड़े पीछे हैं लेकिन कोई किसी से कम नहीं.

criminal background candidates in bihar elections, बिहार चुनाव में आपराधिक पृष्टभूमि वाले उम्मीदवारों की लंबी फेहरिस्त
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पटना: चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल सुशासन और राजनीतिक शुचिता की बात करते हैं, लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है तो तमाम बातें हवा हो जाती हैं. एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2005 से 2019 तक के आंकड़ों पर गौर करें तो बीजेपी से चुनाव लड़ने वाले 59% और राजद से चुनाव लड़ने वाले 56% उम्मीदवारों ने अपने आपराधिक मामलों की जानकारी दी है. इस मामले में जदयू 52% और कांग्रेस 43% के साथ थोड़े पीछे हैं लेकिन कोई किसी से कम नहीं. सब एक दूसरे पर राजनीति में अपराध को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हैं, लेकिन पब्लिक को मूर्ख बनाने के लिए राजनीतिक दलों के बीच होड़ मची है.

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राजद शीर्ष पर

वर्ष 2015 में विधानसभा चुनाव के दौरान उम्मीदवारों ने जो नामांकन किया था उस आधार पर एडीआर की रिपोर्ट में कई खुलासे हुए. दागी विधायक एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एडीआर के मुताबिक बिहार में दागी विधायकों के मामले में सबसे आगे राष्ट्रीय जनता दल है जिसके 41 फीसदी विधायक दागी हैं. इस मामले में दूसरा नंबर कांग्रेस का है जिसके 40% नेताओं पर कोई ना कोई गंभीर आपराधिक मामला दर्ज है. वहीं जदयू के 38 फीसदी और भाजपा के 35% नेताओं पर कोई न कोई गंभीर आपराधिक मामला दर्ज है. यह दावा तो सभी पार्टियां करती हैं कि वह किसी दागी को टिकट नहीं देंगे, लेकिन चुनाव आते-आते उनके सारे दावे खोखले साबित होते हैं. हर पार्टी दावा करती है कि उनके उम्मीदवार दूसरी पार्टी के उम्मीदवार से कम दागी हैं, लेकिन असलियत यह है कि कोई किसी से कम नहीं है.

आपराधिक उम्मीदवारों की फेहरिस्त

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में उम्मीदवारों ने जो आंकड़ा चुनाव आयोग के पास दाखिल किया है उसके मुताबिक सभी पार्टियों में गंभीर मामलों के आरोपी शामिल हैं. यही नहीं यह आंकड़ा पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ता गया है. वर्ष 2005 में जहां महज 39 फीसदी दागी विधायक चुनकर आए थे. वहीं 2010 में यह संख्या बढ़कर 40% हो गई और 2015 में यह आंकड़ा 45% तक पहुंच गया. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी राजनीतिक दलों से दागियों को टिकट नहीं देने को लेकर निर्देश जारी किया था, लेकिन उसका कोई असर राजनीतिक दलों पर नहीं पड़ा. हाल में निर्वाचन आयोग ने सख्ती दिखाते हुए सभी उम्मीदवारों को अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए सख्त निर्देश जारी किए हैं. चुनाव आयोग की सख्ती का कितना होगा असर चुनाव आयोग ने इस बार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों को लेकर काफी सख्त प्रावधान किए हैं. नए दिशानिर्देशों के मुताबिक ऐसे प्रत्याशी को पहली बार नामांकन वापसी की अंतिम तारीख के 4 दिन के अंदर अपने ऊपर दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विज्ञापन प्रकाशित कराना होगा. दूसरी बार यह विज्ञापन नामांकन वापसी की तारीख के 5 से 8 दिन के भीतर देना होगा. वहीं तीसरी और आखिरी बार यह विज्ञापन नामांकन वापसी के नौवें दिन से लेकर कैंपेन के आखिरी दिन के बीच देना होगा.

अनंत से मुन्ना सब हैं प्रत्याशी

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि समय सीमा जो तय की गई है उससे वोटर्स को अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनने में मदद मिलेगी. आयोग के निर्देश के मुताबिक निर्विरोध उम्मीदवारों और उनके राजनीतिक दलों को भी आपराधिक ब्यौरे का विज्ञापन देना होगा. दागी उम्मीदवारों के मामले में सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में राष्ट्रीय जनता दल रहा है. हालांकि राष्ट्रीय जनता दल के नेता उल्टा जदयू-बीजेपी पर सवाल खड़े करते हैं और यह कहते हैं कि जब राजद ने इन नेताओं को टिकट दिया तो यह दागी कैसे हो गए. इससे पहले जब यह एनडीए का हिस्सा थे तो उस वक्त यह सवाल क्यों नहीं खड़े हुए. उनका इशारा अनंत सिंह और रामा सिंह से लेकर तमाम ऐसे बाहुबलियों पर है जो कभी न कभी एनडीए का हिस्सा रहे हैं. इनमें मुन्ना शुक्ला का नाम भी शामिल है.

मंजू वर्मा को भी टिकट

चुनाव आयोग ने जो सख्ती दिखाई है उसका असर हालांकि बिहार चुनाव में राजनीतिक दलों पर शायद ही पड़ा है. राष्ट्रीय जनता दल ने तो बाहुबलियों पर खासी मेहरबानी की है. चाहे मोकामा से अनंत सिंह हों या दानापुर से रीतलाल. दुष्कर्म के मामले में सजा काट रहे राजबल्लभ की पत्नी को भी टिकट दिया गया है तो दुष्कर्म के आरोप में फरार अरुण यादव की पत्नी को भी राजद ने अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं बाहुबली रामा सिंह की पत्नी को महनार से टिकट दिया है. इधर जदयू भी कोई पीछे नहीं रहा. जदयू ने कुचायकोट से पप्पू पांडे को टिकट दिया है जिन पर कई गंभीर आरोप हैं. इनके अलावा बाहुबली रहे बिंदी यादव की पत्नी मनोरमा देवी को टिकट दिया है. अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती भी जदयू की कैंडिडेट हैं. मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड मामले में चर्चा में रही और मंत्री पद से हटा दी जाने वाली मंजू वर्मा को भी जदयू ने टिकट दिया है.

बीजेपी ने अरवल से जिस दीपक शर्मा को टिकट दिया है उन पर भी कई आरोप हैं. कांग्रेस ने भी कई ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं जिन पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं इनके अलावा वामपंथी दलों के उम्मीदवार भी कहीं पीछे नहीं है. लोजपा और जाप में भी ऐसे कैंडिडेट की लंबी फेहरिस्त है. ऐसे में सवाल उठते हैं कि आखिर चुनाव आयोग की सख्ती किस काम की जब राजनीतिक दल राजनीति को अपराध से मुक्त नहीं कर पा रहे. जाहिर तौर पर राजनीतिक शुचिता और सुशासन का दंभ भरने वाले राजनीतिक दलों पर सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि तमाम दावों के बावजूद यह जनता पर ऐसे प्रत्याशी थोप रहे हैं जिन्हें समाज अपराधी के तौर पर जानता है.

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