26 साल पहले 950 करोड़ का फर्जीवाड़ा, जानें कैसे हुई थी बिहार के कोषागारों से लूट

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Published : Sep 25, 2022, 3:04 PM IST

चारा घोटाले

बिहार का प्राचीन इतिहास बेहद गौरवशाली है. यहां मौर्य, गुप्त और मुगल शासकों ने राज किया. सिपाही विद्रोह, सत्याग्रह से संपूर्ण क्रांति तक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कभी शिक्षा के क्षेत्र में दुनियाभर में अलख जगाने वाले इसी प्रांत के वैशाली में सबसे पहले लोकतंत्र की शुरुआत हुई थी. बिहार संतों और महापुरुषों की भूमि रही है. आजादी के बाद कई घोटालों के कारण बिहार का गौरव धूमिल हाेता गया. Etv bharat आपके लिए बिहार को बदनाम करने वाले घोटालों की एक सीरीज ला रहा है. हर रविवार आपकाे बिहार के चर्चित घोटालाें के बारे में A to Z तक बताएंगे. आज हम यहां बात करेंगे 90 के दशक के चर्चित चारा घोटाले की.

पटनाः बिहार में घोटालों की लंबी परंपरा रही है. कुछ चर्चित घोटालों की गूंज तो विदेशों तक सुनाई दी. इससे बिहार की छवि दागदार हुई. चारा घोटाला स्वतंत्र भारत के बिहार राज्य का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार था, जिसमें पशुओं को खिलाये जाने वाले चारे के नाम पर 950 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से फर्जीवाड़ा करके निकाल लिये गये. सरकारी खजाने की इस चोरी में अन्य कई लोगों के अलावा बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र पर भी आरोप लगा था. इस घोटाले के कारण लालू यादव को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. (Two chief ministers involved in fodder scam)

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चारा घोटाला के बारे में जानें कैसे हुई थी कोषागारों से लूट?

अमित खरे ने की थी छानबीनः अखंड बिहार में 80 के दशक में ही चारा घोटाला (Bihar fodder scam)की नींव पड़ गयी थी. 90 के दशक की शुरुआत में इसका स्वरूप बड़ा होता गया. वर्ष 1992-93 में पशुपालन विभाग में होने वाली भारी-भरकम अधिक निकासी की चर्चा होने लगी. कोषागार से करोड़ों की फर्जी निकासी ने लोगों का इस ओर ध्यान खींचा. सिर्फ नेताओं और अफसरों के बड़े वर्ग ने इस घोटाले को रोकने की बजाए बहती गंगा में जमकर हाथ धोया. तत्कालीन वित्त आयुक्त बीएस दुबे के प्रयास से इस घोटाले से पर्दा हटना शुरू हुआ. उनके निर्देश पर ही चाईबासा के तत्कालीन डीसी अमित खरे ने छानबीन की और मामला पकड़ में आया.



सीबीआई जांच की अनुशंसाः 1996 में हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने जांच शुरू की, लेकिन इसके ठीक चार साल पूर्व तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने विधानसभा में इस घोटाले की व्यापकता की जानकारी दी थी. उस समय सीबीआई जांच की अनुशंसा की थी लेकिन लालू प्रसाद यादव ने ना सिर्फ इसकी अनदेखी की, बल्कि किसी तरह की कोई कार्रवाई भी नहीं की. उल्टे घोटाले के किंगपिन माने जाने वाले श्याम बिहारी सिन्हा को सेवा विस्तार भी दे दिया. साथ ही लालू प्रसाद यादव ने सीबीआई जांच को लेकर दायर लोकहित याचिका का पटना हाई कोर्ट में विरोध भी किया. यहां तक कि हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में लालू सुप्रीम कोर्ट तक चले गए. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले को सही माना और उसके बाद 950 करोड़ से अधिक की फर्जी निकासी के मामले की जांच शुरू हुई.

अस्तित्व विहीन कंपनियों के माध्यम से हेराफेरीः चारा घोटाला दरअसल फर्जी और अस्तित्व विहीन कंपनियों के माध्यम से अरबों रुपए की हेराफेरी का घोटाला है. इन कंपनियों ने बिना पशुओं के दवा, चारे की आपूर्ति कर करोड़ों डकार गए बल्कि विभागीय अफसरों और नेताओं ने गाय, भैंस, सुअर आदि छोटे-बड़े पशुओं की खरीद और उनके पोषण के नाम पर करोड़ों का गबन किया. एजी की जांच में यह पाया गया कि स्कूटर मोपेड के नंबरों पर भी सांडों, सूअर, गाय आदि की ढुलाई दिखा दी गई. कागजों पर ही सैकड़ों पशुओं की खरीद फिर उनकी मौत दिखाई गई. असली खेल निरीह पशुओं के भोजन के लिए चारे और दवाओं की खरीद में हुआ.

घोटाला का उजागर करने वाले अधिकारीः तत्कालीन वित्त आयुक्त बीएस दुबे के प्रयास से इस घोटाले से पर्दा हटना शुरू हुआ. उनके निर्देश पर ही चाईबासा के तत्कालीन डीसी अमित खरे ने छानबीन की और मामला पकड़ में आया. 1995 में फाइनेंस कमिश्नर बीएस दुबे ने विभागों की समीक्षा के दौरान पाया और शुरुआती समीक्षा में 410 करोड़ रुपये की हेरा फेरी का अनुमान लगाया गया. बाद में 950 रुपये करोड़ से ज्यादा का मिला.


चारा घोटाला के याचिकाकर्ताः चारा घोटाला की सीबीआई जांच के लिए पटना हाईकोर्ट में जिन लोगों ने पहल की उनमें आज आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी, वर्तमान में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, बीजेपी के सांसद सुशील मोदी, उस समय बीजेपी के नेता सरयू राय, आरजेडी के नेता वृषिण पटेल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद्र मिश्रा शामिल हैं.



53 अलग-अलग केस दर्जः 1996 में सीबीआई ने इस घोटाले काे लेकर 53 अलग-अलग केस दर्ज किए. कुल 170 आरोपी बनाए गए थे. 55 आरोपियों से अधिक की मौत हो चुकी है. 24 बरी हो चुके हैं. 75 को दोषी करार दिया गया था. 34 अपनी सजा काटकर बाहर आ चुके हैं. कई अभी भी जेल में बंद हैं. इसमें सात सरकारी गवाह भी बने थे. छह अभी फरार हैं.

पांच मामले में हो चुकी है सजाः

1. चाईबासा कोषागार से निकासीः 2013 में लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र को पहली बार सजा हुई. 3 अक्टूबर 2013 को लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र को सजा सुनाई सीबीआई के विशेष न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने 37.70 करोड़ की फर्जी निकासी के मामले में लालू प्रसाद यादव को 5 साल की कैद और 25 लाख का जुर्माना भी लगाया था. जुर्माना नहीं देने पर 6 महीने अतिरिक्त सजा काटने का आदेश दिया था. वहीं जगन्नाथ मिश्र को 4 साल की कैद और दो लाख का जुर्माना लगाया था.

2. देवघर कोषागार से निकासीः इसमें आरोपियों की संख्या 38 थी. जिसमें से सुनवाई के दौरान 11 की मौत हो गई. दो सरकारी गवाह बन गए. दो ने सजा से पहले ही दोष स्वीकार कर लिया. 313 लोगों की गवाही हुई थी. जिसमें अभियोजन गवाही 208 और बचाव गवाही 22 था. इसमें लालू प्रसाद यादव को साढ़े तीन साल की सजा हुई थी. 10 लाख का जुर्माना भी लगाया गया था. कुल 15 आरोपियों को सजा सुनाई गई जिसमें पूर्व सांसद जगदीश शर्मा, पूर्व मंत्री आरके राणा, आपूर्तिकर्ता त्रिपुरारी मोहन प्रसाद, पूर्व पशुपालन सचिव जूलियस, पूर्व सचिव महेश प्रसाद, पूर्व वित्त आयुक्त फूलचंद सिंह भी शामिल थे. इसमें जगन्नाथ मिश्रा समेत छह को कोर्ट ने बरी कर दिया था.

3. केस नंबर 68/96ः यह मामला भी चाइबासा कोषागार से संबंधित थे. पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को 5 -5 साल की सजा और 10 -10 लाख जुर्माना हुआ था. इस मामले में कुल 50 आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई गई. 6 को बरी कर दिया गया. इसमें जगदीश शर्मा, विद्यासागर निषाद, ध्रुव भगत और आरके राणा को भी सजा हुई.

4. दुमका कोषागार से 3.13 करोड़ की निकासीः सीबीआई के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत ने लालू प्रसाद यादव और पशुपालन विभाग के तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक ओपी दिवाकर को 14- 14 साल की सजा सुनाई थी. 60 -60 लाख रुपए जुर्माना भी किया गया. डॉक्टर और अधिकारियों के साथ 17 दोषियों को भी सीबीआई की विशेष अदालत ने सजा सुनाई जिसमें कैद और जुर्माना शामिल था.

5. डोरंडा कोषागार से 140.35 करोड़ की निकासीः सीबीआई के विशेष जज एसके शशि की अदालत ने लालू प्रसाद के साथ 74 आरोपियों को सजा दी. लालू प्रसाद यादव को 5 साल की कैद और 60 लाख रुपए जुर्माना लगाया गया. 35 अभियुक्तों को 3-3 साल की सजा सुनाई गई. 50 हजार से दाे लाख तक का जुर्माना किया गया. 24 आरोपियों को जिसमें 7 महिला शामिल थी, कोर्ट ने बरी कर दिया. इसमें कुल 99 आरोपी बनाए गए थे.

भागलपुर बांका कोषागार से 46 लाख की निकासी का मामला पटना की सीबीआई अदालत में चल रहा है. लालू प्रसाद यादव को 5 मामलों में अब तक 1.65 करोड़ रुपए का जुर्माना हो चुका है और 32 साल से अधिक की सजा हो चुकी है. फिलहाल जमानत पर लालू प्रसाद यादव बाहर हैं.

चारा घोटाला में सात बार जेल जा चुके हैं लालू

क्रम कब
पहली बार30 जुलाई 1997
दूसरी बार28 अक्टूबर 1998
तीसरी बार 5 अप्रैल 2000
चौथी बार28 नवंबर 2000
पांचवी बार26 नवंबर 2001
छठी बार30 सितंबर 2013
सातवीं बार23 दिसंबर 2017

चारा घोटाला से जुड़े कुछ दिलचस्प घटनाक्रमः

1. सीबीआई ने मांगी थी सेना की मददः बिहार में 1997 में चारा घोटाला मामले में सीबीआई को लालू प्रसाद यादव की गिरफ्तारी करनी थी. लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे. सरकार का सहयोग सीबीआई को नहीं मिल रहा था. सीबीआई के सह निदेशक यू एन विश्वास चारा घोटाला की जांच कर रहे थे. उन्हें घोटाले के मुख्य आरोपी मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को गिरफ्तार करना था, उनके खिलाफ वारंट भी था. लेकिन बिहार पुलिस ने गिरफ्तार करने से साफ इनकार कर दी. यू एन विश्वास ने तब सेना से मदद की गुहार लगाई थी. हालांकि सेना की तैनाती तो नहीं हुई. सीबीआई को यही डर था कि लालू प्रसाद यादव की गिरफ्तारी होने पर हंगामा हो सकता है, ऐसे सेना की मदद मांगने से पहले यूएन विश्वास ने मुख्य सचिव और डीजीपी से बात करने की कोशिश की थी. मुख्य सचिव से उनकी बात नहीं हुई. डीजीपी ने मामले को टालने की कोशिश की. सीबीआई ने इसको लेकर हाई कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया. कोर्ट ने असहयोग के लिए डीजीपी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था. हालांकि जब लालू प्रसाद को लग गया कि गिरफ्तारी तय है तो लालू प्रसाद यादव ने राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया. सरेंडर करने पर भी सहमति बन गयी. लालू प्रसाद 30 जुलाई, 1997 को दोपहर गाजे-बाजे और समर्थकों के काफिले के साथ सीबीआई के विशेष अदालत में सरेंडर कर दिया जहां से 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

2. बेल इसलिए दे दी जाए कि हाथी पर चढ़कर शहर घूमेः चारा घोटाला मामले में लालू यादव पटना के बेउर जेल में जब बंद थे. उन्हें जमानत मिली तो 9 जनवरी 1999 को जेल से बाहर निकले थे और हाथी पर बैठकर हजारों समर्थकों के साथ अपने आवास पहुंचे थे. बाद में डोरंडा मामले में सुनवाई के दौरान जज शिवपाल सिंह इसका जिक्र भी किया. कहा- कि आप को बेल इसलिए दे दी जाए कि हाथी पर चढ़कर शहर घूमे.

3. लालू की तत्कालीन पीएम से हुई थी बहसः जब 2002 में चारा घोटाला के मामले में रांची के स्पेशल कोर्ट में पेश होना था. तब गरीब रथ नाम देकर गाड़ी निकाली पर सवार होकर गए थे उनके साथ करीब 1000 गाड़ियों का काफिला था और उसमें भी हाथी घोड़े शामिल थे हालांकि लालू यादव को बेल नहीं मिली और न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.लालू प्रसाद यादव और प्रधानमंत्री देवगौड़ा के बीच बहस की भी खूब चर्चा होती है. सीबीआई निदेशक जोगिंदर सिंह कर्नाटक कैडर के थे. देवगौड़ा ने ही उन्हें लाया था. वो सख्ती से मामले की जांच करवा रहे थे. इसी बात से लालू प्रसाद नाराज थे.

सजा के कारण सदस्यता गंवाने वाले पहले नेताः चारा घोटाला में मिली सजा के कारण लालू प्रसाद यादव देश के पहले सांसद बने जिन्हें 10 साल के लिए अयोग्य ठहराया गया. जगदीश शर्मा दूसरे सांसद थे. कुल मिलाकर देखें तो 6 मामले में से 5 में सीबीआई की विशेष अदालत ने सजा सुना दी है और एक मामला पटना के सीबीआई कोर्ट में चल रहा है. हाई कोर्ट की निगरानी में सीबीआई ने पूरे मामले की जांच की जिस पर सियासत भी हुआ कई तरह के आरोप भी लगे. कहा जाता है कि सीबीआई पहली बार किसी घोटाले में शामिल लोगों को इतने बड़े पैमाने पर सजा दिलाने में कामयाब हुई.

चारा घोटाले को याद कर क्या कह रहे हैं नेता, पुलिस और राजनीतिक विश्लेषकः

"हम लोगों को लगा था कि गड़बड़ी हुई है और इसीलिए जांच के लिए याचिका दायर की थी. सभी लोगों ने अलग-अलग याचिका दायर की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने सबको क्लब कर सुनवाई की. जिस मकसद से हम लोगों ने याचिका दायर की थी वह सही दिशा में गई, लेकिन बीजेपी ने इसका राजनीतिकरण कर दिया और राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की जो गलत है" -प्रेमचंद मिश्रा, कांग्रेस नेता


"लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे और जब राज्य का मुख्यमंत्री अभियुक्त हो तो स्वाभाविक है किसी भी राज्य की पुलिस के लिए मुश्किल तो होगी ही. कई तरह की मुश्किल उस समय भी आई थी. लालू प्रसाद यादव को 1997 में सीबीआई गिरफ्तार करना चाहती थी. सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर यूएन विश्वास दानापुर स्थित भारतीय सेना के अधिकारियों को जरूरत पड़ने पर मदद के लिए पत्र भी लिख दिया था जो काफी विवाद में रहा. मैं बाढ़ में डीएसपी था. पुलिस पर काफी दबाव था. सीबीआई पर भी दबाव था, क्योंकि लालू प्रसाद यादव के समर्थक जगह-जगह रोड जाम कर रहे थे" -अमिताभ दास, पूर्व आईपीएस अधिकारी


"चारा घोटाले की चर्चा हमेशा होती रहेगी, क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों ने ही जिस प्रकार से अपने पद का दुरुपयोग किया और उसको लेकर सीबीआई की विशेष कोर्ट ने सजा सुनाई. पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी रही. देश में पहला मामला था जिसमें लालू प्रसाद यादव जो उस समय सांसद थे को सजा के बाद लोकसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी. बड़ी संख्या में नेताओं और अधिकारियों तक को सजा हुई. अभी एक मामला बचा है जो पटना में चल रहा है"- अरुण पांडे, राजनीतिक विश्लेषक








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