पटना: राजधानी पटना में प्रदेश में इन दिनों इंडस्ट्री की बातें (Industry in Bihar) खूब हो रही है और नई इंडस्ट्री की स्थापना के बड़े दावे किए जा रहे हैं. बिहार में इंडस्ट्री का अच्छा माहौल (Good Industry Environment in Bihar) तैयार करने पर सरकार काम कर रही है और इसको लेकर सरकार की तरफ से बड़े दावे भी किए जा रहे हैं. लेकिन बिहार में शुरू से जो पुराना हथकरघा उद्योग रहा है वह अब हाशिए पर चला गया है (Bad Condition of Handloom Industry in Bihar) और इससे जुड़े लोग इस उद्योग के अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं.
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हथकरघा उद्योग का हाल खस्ताहाल: बिहार बुनकर समिति के सदस्य अलीम अंसारी का कहना है कि कोरोना के बाद के समय में बुनकरों की हालत काफी बदहाल हो गई है. उनके पास रॉ मटेरियल की काफी कमी हो गई है और महंगाई काफी बढ़ गए हैं. जिस वजह से मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट भी बढ़ गया है. ऐसे में आर्डर उन लोगों के पास काफी कम आ रहे हैं और इसका असर बुनकरों के जीवन यापन पर पड़ रहा है.
'उनकी पहल से प्रदेश के बुनकरों द्वारा तैयार चादर प्रदेश के अस्पतालों में दिखने शुरू हुए लेकिन इसी प्रकार उन्होंने प्रदेश के बुनकरों के बनाए कपड़ों को एक बाजार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री के पास एक प्रस्ताव की गुहार लेकर गए थे और यह प्रस्ताव था कि प्रदेश में जो पोशाक योजना चलाई जाती है तो पोशाक योजना में पोशाक प्रदेश के बुनकरों द्वारा तैयार की गई ही उपयोग की जाए. कैबिनेट से यह पास भी हो गया लेकिन अधिकारियों की फाइलों में ही यह प्रस्ताव अब तक लंबित है.' - अलीम अंसारी, सदस्य, बिहार बुनकर समिति
हथकरघा उद्योग हुआ चौपट: उन्होंने कहा कि प्रदेश के पुलिस कर्मियों को सिंथेटिक कपड़े की वर्दी दी जाती है और उन्होंने एक मॉडल तैयार किया था कि किस प्रकार खादी कपड़े का पुलिस वर्दी तैयार किया जा सकता है और यह पुलिस कर्मियों के लिए हर मौसम में आरामदायक भी होगा. यह प्रस्ताव काफी पसंद भी किया गया लेकिन इस पर आगे कुछ नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि प्रदेश के बुनकरों को उनके उत्पादों के बाजार नहीं मिल पा रहे हैं जिस वजह से वो हतोत्साहित हैं.
हथकरघा उत्पाद को नहीं मिल रहा बाजार: अलीम अंसारी ने कहा कि भागलपुर में टसर सिल्क उद्योग काफी फेमस है, इसके अलावा वहां कॉटन कपड़ों की भी बुनाई होती है. प्रदेश के कई जिलों में खादी कपड़े कॉटन कपड़े और सिल्क कपड़े तैयार किए जाते हैं लेकिन कोरोना के बाद से बुनकरों के पास फंड की घोर कमी हो गई है. सिल्क उद्योग पर आफत और बड़ी टूट पड़ी है कि महंगाई बढ़ने की वजह से जो रॉ मैटेरियल हैं जैसे कि कोकुन और मलबरी इनके दाम काफी बढ़ गए हैं.
सरकार रॉ मटेरियल उपलब्ध कराए: पहले 1kg कोकुन 3000 केजी था अब वह 6000 रुपये केजी हो गया है ऐसे में जो सिल्क की साड़ी 2000 से 2500 रुपये में तैयार होती थी वह अब 3000 से 3500 रुपये में तैयार हो रही है. उन्होंने कहा कि महंगाई बढ़ गई है, डिमांड कम हो गया है. ऐसे में बुनकरों का जीवन यापन पर आफत आ गयी है. ऐसे में बुनकर पलायन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को यदि प्रदेश में हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देना है और प्रदेश में बेहतर रोजगार का माहौल तैयार करना है तो बुनकरों को योजना बनाकर फंड उपलब्ध कराएं और उन्हें एक उचित दर पर भरपूर मात्रा में रॉ मटेरियल उपलब्ध कराएं. साथ ही साथ कपड़े तैयार होने के बाद उसकी मार्केटिंग भी कराए ताकि कपड़े बाजार में डिमांड के साथ बिकें.
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