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बिहार में पौराणिक धरोहरों की कमी नहीं, लेकिन देखरेख के अभाव में मिट रहा इतिहास - world heritage day

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Apr 18, 2024, 10:47 AM IST

वर्ल्ड हेरिटेज डे
वर्ल्ड हेरिटेज डे

Bihar Architectural Heritage: आज पूरा विश्व, वर्ल्ड हेरिटेज डे मना रहा है. बिहार में भी धरोहरों की कमी नहीं है. लेकिन यहां के कई ऐसे पौराणिक धरोहर हैं, जिन्हें नई पहचान देनी चाहिए लेकिन वह देखरेख में लापरवाही की वजह से इतिहास के पन्नों में सिमटती चली जारही हैं. पढ़ें वर्ल्ड हेरिटेज डे पर विशेष रिपोर्ट.

प्रोफेसर इम्तियाज अहमद, इतिहासकार

पटना: हर साल 18 अप्रैल को वर्ल्ड हेरिटेज डे मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य पूरे दुनिया में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और संस्कृत स्थल, भवन, कला को संरक्षित किया जाना है ताकि आने वाली पीढ़ी अपने इतिहास को बेहतर तरीके से जान सके. बिहार क्रांति की धरती है, ऐसे में यहां कई सारे ऐतिहासिक धरोहर हैं, जिन्हें संजोए रखना बेहद जरूरी है लेकिन हम विकास की अंधाधुंध दौड़ में दौड़ते हुए अपने हेरिटेज का क्षरण (जंग लगाना) कर रहे हैं.

वर्ल्ड हेरिटेज डे
सदियों पुराना पटना म्यूजियम

बिहार के धरोहरों की अनदेखी: बिहार ने देश को बहुत कुछ दिया है. यहां पौराणिक धरोहरों की कोई कमी नहीं है. धरोहरों को संरक्षित रखने का नियम यह है कि उसके मूल आकृति और प्रकृति में बिना परिवर्तित किए उसे संरक्षित किया जाए. लेकिन बिहार में उचित देखभाल नहीं होने की वजह से वह नष्ट होने के कगार पर हैं. वहीं सरकार व प्रशासन भी लापरवाह नजर आती है.

वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल हैं बिहार के धरोहर: पटना और देश के जाने-मानें इतिहासकार प्रोफेसर इम्तियाज अहमद ने बताया कि बिहार में आर्किटेक्चर विरासत बहुआयामी है. गया का विष्णुपद मंदिर और नालंदा विश्वविद्यालय का अवशेष, यह दो ऐसे धरोहर हैं, जिसे यूनेस्को ने भी वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया है.

वर्ल्ड हेरिटेज डे
बिहार के धरोहरों की देखरेख में कमी

बिहार के धरोहर की विश्व स्तरीय पहचान: उन्होंने बताया कि 'उनकी रुचि मध्यकालीन इतिहास में अधिक है, तो मध्यकालीन समय के भी कई आर्किटेक्चर हैं, जो अपने आप में नायब हैं. शेरशाह का मकबरा, अफगान आर्किटेक्चर का एक नायाब उदाहरण है जो पूरे दक्षिण एशिया में ऐसा कहीं नहीं मिलेगा. इसके अलावा मनेर शरीफ का दरगाह पूर्वी भारत में मुगल आर्किटेक्चर का खूबसूरत उदाहरण है.'

अकबर के जमाने का पटन देवी मंदिर: प्रो. इम्तियाज अहमद ने बताया कि राजधानी पटना में छोटी पटन देवी का जो मंदिर है, जिसे अकबर के जमाने में महाराजा मानसिंह ने बनवाया था, यह भी अपने आप में बेहद खूबसूरत है और अभी तक बचा हुआ है. इसके अलावा पटना सिटी में मीर अशरफ अली की मस्जिद है, जो संरक्षित धरोहर है. यहां आम लोगों का आना-जाना नहीं होता. यह मस्जिद नक्काशी और काशी का बेहद खूबसूरत उदाहरण है. रंगीन टाइल्स की कारीगरी से कलाकारी काशी कही जाती है, जो इस मस्जिद की यही खासियत है.

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पटना का प्रसिद्ध गोलघर

देशभर में प्रसिद्ध है पटना का गोलघर: प्रोफेसर इम्तियाज अहमद ने बताया कि इसके बाद कोलोनियल पीरियड का गोलघर एक महत्वपूर्ण धरोहर है. गोलघर कभी पटना का पहचान हुआ करता था, लेकिन अभी इसके मेंटेनेंस में काफी कमी है. बताया कि बंगाल से बिहार जब अलग हुआ तो प्रशासनिक कार्यों के लिए जो भवन बनाए गए जैसे की राजभवन, पुराना सचिवालय, सिविल कोर्ट, यह सभी कॉलोनियल आर्किटेक्चर के खूबसूरत उदाहरण हैं.

विकास के नाम पर नष्ट धरोहर: उन्होंने कहा कि कई सारे धरोहर हैं, जिन्हें विकास के नाम पर नष्ट कर दिया गया. पटना का पुराना कलेक्टरेट बिल्डिंग जो टच आर्किटेक्ट का बेहद नायाब नमूना था, उसे ध्वस्त कर दिया गया और अब बहुमंजीरा इमारत बनाया जा रहा है. अंजुमन इस्लामिया हॉल, जहां आजादी के जमाने में मीटिंग हुआ करती थी और पटना का पहला सभागार हुआ करता था. उसे ध्वस्त करके नया भवन बना दिया गया.

बिहार परिवहन विभाग
बिहार परिवहन विभाग

"सुल्तान पैलेस जो मुस्लिम और डच आर्किटेक्चर का एक खूबसूरत उदाहरण है उसे तोड़कर बहुमंजिला होटल बनाने की तैयारी चल रही है. पटना का पुराना म्यूजियम जो पटना म्यूजियम है उसके मूल रूप से छेड़छाड़ करके उसके दोनों तरफ से नया निर्माण किया जा रहा है."- प्रो. इम्तियाज अहमद, इतिहासकार

'देश के धरोहर को बचाने के लिए संवेदनशील नहीं': प्रोफेसर इम्तियाज अहमद ने बताया कि आर्किटेक्चर हेरिटेज के मामले में दुनिया में भारत के पास जितना कुछ है, उसके करीब में सिर्फ चीन में है. बाकी किसी देश में भारतीय धरोहर का 20% भी धरोहर बचा हुआ नहीं है. लेकिन हम अपने धरोहरों को बचाने के लिए संवेदनशील नहीं है और लोगों में इसके प्रति जानकारी की कमी है, ज्ञान का अभाव है. शासन प्रशासन भी धरोहरों को बचाने के लिए संवेदनशील नहीं है.

"विकास बाधक नहीं है, विकास होना चाहिए. नए भवन बनने चाहिए, लेकिन जो पुराने विशेष महत्व के नायाब आर्किटेक्चर के भवन हैं, उसे संरक्षित भी रखा जाना चाहिए. ताकि आने वाली पीढ़ी यह जान सकें कि उनके पुरखों ने अपने जमाने में क्या-कुछ किया है. अपने समय में वह काफी ज्ञान रखते थे. धरोहर नष्ट होंगे तो इतिहास भी नष्ट होगा, इसलिए धरोहरों को नष्ट करने की कीमत पर विकास नहीं होना चाहिए."- प्रो. इम्तियाज अहमद, इतिहासकार

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