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बनारस में 25 फीसद मुस्लिम, जानिए क्यों एक बार भी नहीं जीता बिरादरी का नेता - Varanasi Lok Sabha Seat

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 20, 2024, 4:39 PM IST

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Lok Sabha Election 2024: आंकड़े बताते हैं कि एक ओर जहां राजनीतिक दलों ने सीट देने में कंजूसी की है, तो वहीं पब्लिक ने भी मुस्लिम उम्मीदवारों को नापसंद किया है.

वाराणसी: Lok Sabha Election 2024: वाराणसी लोकसभा सीट पूर्वांचल की सबसे अहम सीट बन चुकी है. इस सीट से लगातार दो बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद रहे हैं. तीसरी बार फिर से वे इसी सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

मगर इस बार से लेकर बीते कई चुनाव में जो एक बात देखने को मिलती है वह है मुस्लिम उम्मीदवारों की कमी. चुनावी दलों ने हिन्दू-मुस्लिम एक करने की बात तो बहुत की, लेकिन टिकट देने की बारी आने पर जिताऊ प्रत्याशी पर ही भरोसा जताया.

वहीं अगर जिताऊ कंडीडेट मिला भी तो उस पर जनता ने भरोसा नहीं जताया. ऐसे में अगर इतिहास देखें तो 7 दशक में पूर्वांचल से सिर्फ 11 बार 8 मुस्लिम प्रत्याशी संसद पहुंचे हैं.

मौजूदा समय में हर सियासी दल मुस्लिम वोटों को साधने में जुटा हुआ है. मुस्लिम चेहरे को भी चुनावी मैदान में उतरा जा रहा है. बनारस की बात करें तो बसपा ने मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाया है. अगर बनारस में सीटों के आंकड़े पर नजर डालें तो यहां पर राजनीति में मुस्लिम समाज का पिछड़ापन नजर आता है.

आंकड़े बताते हैं कि एक ओर जहां राजनीतिक दलों ने सीट देने में कंजूसी की है, तो वहीं पब्लिक ने भी मुस्लिम उम्मीदवारों को नापसंद किया है. अबनारस में कभी भी कोई मुस्लिम चेहरा नहीं जीत सका है, जबकि 2014 और 2019 दोनों चुनाव में मुस्लिम कैंडिडेट निर्दलीय मैदान में उतरे भी थे.

वाराणसी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान वाला शहर है. यहां पर मुस्लिम समाज की भी संख्या ठीक-ठाक है, लेकिन चुनाव में जीत दर्ज करने वाले मुस्लिम प्रत्याशी की संख्या न के बराबर है. अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, सलमान बशर, अतहर जमाल लॉरी, स्वालेह अंसारी, सुन्नत अंसारी के साथ ही कई मुस्लिम नेताओं ने वाराणसी सीट से कोशिश की.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उस्मान (राष्ट्रीय अपना दल), अहमद सोहेल सिद्दीकी (निर्दलीय), इफ्तेखार कुरैशी (निर्दलीय) ने चुनाव लड़ा था. साल 2019 में हीना शाहिद (JHBP), अतीक अहमद (निर्दलीय), सुन्नत अंसारी (निर्दलीय) ने चुनाव लड़ा था. लेकिन, जीत हासिल नहीं हो सकी.

चंदौली, रॉबर्ट्सगंज, बलिया, लालगंज, घोषी लोकसभा क्षेत्र से अब तक कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर लोकसभा नहीं पहुंचा है. वहीं, गाजीपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़ और जौनपुर की जनता ने 8 मुस्लिम सांसद चुनकर संसद में भेजे हैं.

बात अगर गाजीपुर सीट की करें तो यहां से 1980 और 1984 में कांग्रेस के टिकट पर जैनुल बसर ने चुनाव जीता था. 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर अफजाल अंसारी ने जीत दर्ज की थी.

मुस्लिम वोटर्स की संख्या

  • आजमगढ़- लगभग 2.15 लाख वोटर्स
  • चंदौली- करीब 1,30,00 वोटर्स
  • बलिया- करीब एक लाख वोटर्स
  • घोषी- 3,15,000 वोटर्स
  • रॉबर्ट्सगंज- करीब 80 हजार वोटर्स

इसके बाद साल 2019 के चुनाव में भी सपा के टिकट से अफजाल को इस सीट से जीत मिली थी. अगर यहां के मुस्लिम वोटरों की संख्या की बात करें तो इनकी संख्या 15 फीसदी है. वहीं वाराणसी में मुस्लिम वोटर्स की संख्या 22 फीसदी है.

आजमगढ़ की बात करें तो यहां आजमगढ़ और लालगंज सीट लगती है. आजमगढ़ से मोहसिना किदवई ने 1978 में कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की. फिर अकबर अहमद बसपा के टिकट पर साल 1988 में संसद पहुंचे. इसके बाद से अब तक यहां से मुस्लिम प्रत्याशी ने जीत दर्ज नहीं की है.

वहीं लालगंज सीट से कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं जीता है. अगर मुस्लिम वोटरों की बात करें तो आजमगढ़ में लगभग 2.15 लाख वोटर्स हैं, जबकि लालगंज सीट पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब 2 लाख है. आजमगढ़ की सीट पर बीते कई टर्म से मुलायम सिंह यादव के परिवार का कब्जा रहा है. इस बार सांसद दिनेश लाल यादव हैं.

जौनपुर सीट से साल 1980 में जनता पार्टी के टिकट पर अजीजुल्लाह ने चुनाव जीता था. यही हाल मछलीशहर का भी है. जौनपुर सीट की बात करें तो यहां पर मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 3 लाख 25 हजार है. वहीं मछलीशहर में ये संख्या करीब 1 लाख 60 हजार है.

वहीं अगर मिर्जापुर सीट का इतिहास देखें तो साल 1971 में मिर्जापुर-भदोही क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर अजीज इमाम ने जीत दर्ज की थी. 1977 में जनता पार्टी के फकीर अली अंसारी, 1980 में कांग्रेस के अजीज इमाम, 1889 में जनता दल से यूसुफ बेग ने जीत दर्ज कर संसद का रास्ता तय किया था. मिर्जापुर और भदोही में मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब एक लाख है.

लोकसभा चुनाव-2024 का आगाज हो चुका है. लोगों ने जमकर मतदान भी किया है. पूर्वांचल में इस बार के चुनाव में मतदान में काफी अंतर देखने की भी उम्मीद की जा रही है. इस बार अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन भी हुआ है तो काशी में ज्ञानवापी के तहखाने में पूजा शुरू हुई है.

विपक्षी पार्टियां भाजपा पर हिंदू-मुस्लिम का आरोप लगा रही हैं तो भाजपा उनपर तुष्टिकरण का आरोप लगा रही है. इन सभी आरोपों के बीच बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर पार्टियों ने लोकसभा चुनावों में कितना मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा किया और कितने ही उम्मीदवारों पर जनता ने भरोसा जताया, जिन लोगों ने चुनाव लड़ा था.

राजनीतिक विश्लेषक आरपी पांडेय कहते हैं कि वाराणसी हमेशा से ही संस्कृति और धर्म का साथ देने वालों के साथ रही है. वे पार्टियां जिन्होंने आस्था और भगवान पर प्रहार करने की कोशिश की है उनका बुरा हाल रहा है. कई पार्टियों ने अपने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे और चुनाव लड़ाया है.

बसपा ने मुख्तार अंसारी को भी बनारस से टिकट दिया था. मुख्तार ने उस समय मुरली मनोहर जोशी को कड़ी टक्कर भी दी थी, लेकिन जीत नहीं सके थे. सीधे शब्दों में कहें तो बनारस ने मुस्लिम उम्मीदवारों को सिरे से नकार दिया है. हर चुनाव में यही हाल रहा है. बीते तीन टर्म से लगातार भाजपा ही जीत रही है.

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