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कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के खिलाफ केस वापस लेगी सरकार, हाईकोर्ट ने हलफनामा मांगा - High court News

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 9, 2024, 10:31 PM IST

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राज्य सरकार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के खिलाफ मुकदमा वापसी के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है. हाई कोर्ट ने इस संबंध में सरकार से हलफनामा मांगा है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के खिलाफ मुकदमा वापसी के मामले में राज्य सरकार से एक सप्ताह में हलफनामा मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने दिया है. साथ ही याचिका को अगली सुनवाई के लिए 19 अप्रैल को पेश करने का निर्देश दिया है. याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता पीसी श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में 82 अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है. जिसमें से राज्य सरकार ने सीआरपीसी की धारा 321 की प्रक्रिया के तहत 81 अभियुक्तों के खिलाफ केस वापस लेने का निर्णय लिया है. अजय राय के संबंध में बताया कि यह सरकारी नीति का मामला है, जिस पर राज्य सरकार लोकसभा चुनाव के बाद फैसला लेगी. इस पर कोर्ट ने सरकार को एक सप्ताह में इस आशय का हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है.

अध्यापिका का इंक्रीमेंट रोकने पर जवाब तलब
वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई का मौका दिए बगैर नैसर्गिक न्याय का उल्लघंन कर सहायक अध्यापिका का एक इंक्रीमेंट रोकने के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका पर राज्य सरकार व शिक्षा बोर्ड से चार सप्ताह में जवाब मांगा है. यह आदेश न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने नलिनी मिश्रा की याचिका पर अधिवक्ता अनुराग त्रिपाठी को सुनकर दिया है. याची उच्च प्राथमिक विद्यालय गुलचपा ब्लाक सैदाबाद प्रयागराज में सहायक अध्यापिका है. बीएसए ने याची का तीन अक्टूबर 2018 से वार्षिक इंक्रीमेंट रोकने का आदेश दिया था. बेसिक शिक्षा बोर्ड ने भी याची को कोई राहत नहीं दी. याची का कहना है कि 25 जुलाई 2018 को तत्कालीन बीईओ सैदाबाद ने प्राथमिक विद्यालय गुलचपा का औचक निरीक्षण किया था. उस दिन याची 10 मिनट लेट पहुंची थी. बीईओ की रिपोर्ट पर बीएसए प्रयागराज ने कार्यवाही की और वार्षिक बेसिक वेतन वृद्धि रोकने का आदेश कर दिया. सचिव बेसिक शिक्षा बोर्ड ने याची का प्रत्यावेदन खारिज कर दिया. याची के अधिवक्ता अनुराग त्रिपाठी का कहना था कि आदेश करने से पूर्व याची को कोई नोटिस नहीं दिया गया और न ही सुनवाई का मौका दिया गया. ऐसे में आदेश नैसर्गिक न्याय के विपरीत होने के कारण रद्द किया जाए.

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