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CAR टी-सेल थेरेपी से आसान हुआ ब्लड कैंसर का इलाज, जानें किस हॉस्पिटल में उपलब्ध है इलाज

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 8, 2024, 8:15 PM IST

Cancer treatment: ब्लड कैंसर के इलाज के लिए आई नई सीएआर टी सेल थेरेपी काफी कारगर मानी जा रही है. इस थैरेपी से अपोलो कैंसर सेंटर द्वारा अभी तक ब्लड कैंसर के 16 मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा चुका है.

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CAR टी-सेल थेरेपी से आसान हुआ ब्लड कैंसर का इलाज

नई दिल्ली: भारत सहित पूरी दुनिया में हर तरह के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इन मामलों की रोकथाम के लिए सभी देशों के द्वारा इलाज की नई-नई तकनीकें विकसित की जा रही है. इन्हीं तकनीकों में से एक तकनीक सीएआर टी सेल थेरेपी है. यह थैरेपी ब्लड कैंसर के तीन प्रकारों पर इलाज के लिए कारगर मानी जा रही है. आईआईटी मुंबई ने इस तकनीक को विकसित करके अब अस्पतालों को इलाज के लिए देना शुरू कर दिया है.

अपोलो कैंसर सेंटर में पेडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी एंड हेमेटोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ अमिता महाजन ने बताया कि ब्लड कैंसर के मरीज की सेल से ही सीएआर टी सेल थेरेपी दी जाती है. यह थैरेपी ब्लड कैंसर के ऐसे मरीजों पर भी कारगर साबित हो रही है जिन पर सभी तरह के इलाज फेल हो गए हैं. इसलिए अब दूसरी इलाज देने की बजाय अब सीधे इसी थेरेपी से इलाज किया जा रहा है.

अपोलो समूह के सभी अस्पतालों द्वारा अभी तक 16 मरीजों को सीएआर टी सेल थेरेपी दी गई है. डॉ महाजन ने बताया कि 17वें मरीज को थेरेपी देने की प्रक्रिया अभी चल रही है. सबसे पहले अपोलो द्वारा जिस मरीज को सीएआर टी सेल थेरेपी दी गई थी. उस मरीज को अब 18 महीने का समय बीत चुका है. आगे भी उस मरीज के स्वस्थ रहने की उम्मीद है. कैंसर के अन्य प्रकारों पर भी इस थेरेपी के इस्तेमाल के लिए शोध की प्रक्रिया चल रही है.

डॉक्टर अमिता ने कहा कि यह पड़ाव कैंसर के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक नए अध्याय का प्रतीक है, जो इन बीमारियों से जूझ रहे लोगों को नई आशा और संभावनाएं प्रदान करता है. सीएआर टी सेल थेरेपी का सफल कार्यान्वयन भारत में कैंसर उपचार की प्रगति में एक मील का पत्थर है. इस क्रांतिकारी थेरेपी से विश्व भर में 25 हजार से अधिक मरीजों को लाभ प्राप्त हुआ है. यह थेरेपी 15 वर्ष से अधिक उम्र के मरीजों में लिंफोमा और एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के उपचार के लिए कारगर थेरेपी है.

अभी महंगा है इलाज, आगे होगा सस्ता: डॉ महाजन ने बताया कि वर्ष 2012 में सबसे पहले अमेरिका में इस थैरेपी से एक मरीज का इलाज किया गया था, जो सफल रहा. इसके बाद 2014 में इंडिया में इस तकनीक को विकसित करने का काम आईआईटी मुंबई ने शुरू किया. यह तकनीक अमेरिका के मुकाबले भारत में अमेरिका के खर्च के दसवें हिस्से में ही उपलब्ध है. हालांकि, आम लोगों के लिए यह महंगी है. एक मरीज के इलाज में सीएआर टी सेल थेरेपी का खर्चा 75 से 80 लाख रुपए का आता है. थेरेपी देने के बाद मरीज को 1 से 2 सप्ताह तक भर्ती भी रखना पड़ता है, जिससे उसकी अच्छे से देखभाल किया जा सके और होने वाले साइड इफेक्ट का भी उपचार किया जा सके.

कैसे दी जाती है सीएआर टी सेल थेरेपी: सीएआर-टी सेल थेरेपी, जिसे अक्सर ‘लिविंग ड्रग्स’ के रूप में जाना जाता है. इसमें एफेरेसिस नामक प्रक्रिया के माध्यम से रोगी की टी-कोशिकाओं (एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिकाएं जिनका कार्य कैंसर कोशिकाओं से लड़ना है) को निकालना शामिल है. फिर इन टी-कोशिकाओं को एक नियंत्रित प्रयोगशाला सेटिंग के अधीन एक सुरक्षित वाहन (वायरल वेक्टर) द्वारा आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है, ताकि वे अपनी सतह पर संशोधित कनेक्टर्स को अभिव्यक्त कर सकें जिन्हें काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (सीएआर) कहा जाता है. इन सीएआर को विशेष रूप से एक प्रोटीन को पहचानने के लिए डिज़ाइन किया जाता है, जो कुछ कैंसर कोशिकाओं पर असामान्य रूप से अभिव्यक्त होता है. फिर उन्हें वांछित खुराक तक बहुत्पादित किया जाता है और सीधे रोगी को लगा दिया जाता है.

CAR टी-सेल थेरेपी से आसान हुआ ब्लड कैंसर का इलाज

नई दिल्ली: भारत सहित पूरी दुनिया में हर तरह के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इन मामलों की रोकथाम के लिए सभी देशों के द्वारा इलाज की नई-नई तकनीकें विकसित की जा रही है. इन्हीं तकनीकों में से एक तकनीक सीएआर टी सेल थेरेपी है. यह थैरेपी ब्लड कैंसर के तीन प्रकारों पर इलाज के लिए कारगर मानी जा रही है. आईआईटी मुंबई ने इस तकनीक को विकसित करके अब अस्पतालों को इलाज के लिए देना शुरू कर दिया है.

अपोलो कैंसर सेंटर में पेडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी एंड हेमेटोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ अमिता महाजन ने बताया कि ब्लड कैंसर के मरीज की सेल से ही सीएआर टी सेल थेरेपी दी जाती है. यह थैरेपी ब्लड कैंसर के ऐसे मरीजों पर भी कारगर साबित हो रही है जिन पर सभी तरह के इलाज फेल हो गए हैं. इसलिए अब दूसरी इलाज देने की बजाय अब सीधे इसी थेरेपी से इलाज किया जा रहा है.

अपोलो समूह के सभी अस्पतालों द्वारा अभी तक 16 मरीजों को सीएआर टी सेल थेरेपी दी गई है. डॉ महाजन ने बताया कि 17वें मरीज को थेरेपी देने की प्रक्रिया अभी चल रही है. सबसे पहले अपोलो द्वारा जिस मरीज को सीएआर टी सेल थेरेपी दी गई थी. उस मरीज को अब 18 महीने का समय बीत चुका है. आगे भी उस मरीज के स्वस्थ रहने की उम्मीद है. कैंसर के अन्य प्रकारों पर भी इस थेरेपी के इस्तेमाल के लिए शोध की प्रक्रिया चल रही है.

डॉक्टर अमिता ने कहा कि यह पड़ाव कैंसर के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक नए अध्याय का प्रतीक है, जो इन बीमारियों से जूझ रहे लोगों को नई आशा और संभावनाएं प्रदान करता है. सीएआर टी सेल थेरेपी का सफल कार्यान्वयन भारत में कैंसर उपचार की प्रगति में एक मील का पत्थर है. इस क्रांतिकारी थेरेपी से विश्व भर में 25 हजार से अधिक मरीजों को लाभ प्राप्त हुआ है. यह थेरेपी 15 वर्ष से अधिक उम्र के मरीजों में लिंफोमा और एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के उपचार के लिए कारगर थेरेपी है.

अभी महंगा है इलाज, आगे होगा सस्ता: डॉ महाजन ने बताया कि वर्ष 2012 में सबसे पहले अमेरिका में इस थैरेपी से एक मरीज का इलाज किया गया था, जो सफल रहा. इसके बाद 2014 में इंडिया में इस तकनीक को विकसित करने का काम आईआईटी मुंबई ने शुरू किया. यह तकनीक अमेरिका के मुकाबले भारत में अमेरिका के खर्च के दसवें हिस्से में ही उपलब्ध है. हालांकि, आम लोगों के लिए यह महंगी है. एक मरीज के इलाज में सीएआर टी सेल थेरेपी का खर्चा 75 से 80 लाख रुपए का आता है. थेरेपी देने के बाद मरीज को 1 से 2 सप्ताह तक भर्ती भी रखना पड़ता है, जिससे उसकी अच्छे से देखभाल किया जा सके और होने वाले साइड इफेक्ट का भी उपचार किया जा सके.

कैसे दी जाती है सीएआर टी सेल थेरेपी: सीएआर-टी सेल थेरेपी, जिसे अक्सर ‘लिविंग ड्रग्स’ के रूप में जाना जाता है. इसमें एफेरेसिस नामक प्रक्रिया के माध्यम से रोगी की टी-कोशिकाओं (एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिकाएं जिनका कार्य कैंसर कोशिकाओं से लड़ना है) को निकालना शामिल है. फिर इन टी-कोशिकाओं को एक नियंत्रित प्रयोगशाला सेटिंग के अधीन एक सुरक्षित वाहन (वायरल वेक्टर) द्वारा आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है, ताकि वे अपनी सतह पर संशोधित कनेक्टर्स को अभिव्यक्त कर सकें जिन्हें काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (सीएआर) कहा जाता है. इन सीएआर को विशेष रूप से एक प्रोटीन को पहचानने के लिए डिज़ाइन किया जाता है, जो कुछ कैंसर कोशिकाओं पर असामान्य रूप से अभिव्यक्त होता है. फिर उन्हें वांछित खुराक तक बहुत्पादित किया जाता है और सीधे रोगी को लगा दिया जाता है.

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