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स्वाति मालीवाल ने धारा 164 के तहत दर्ज कराया बयान, जानें कब और किन परिस्थितियों में होता है इसका इस्तेमाल? - Swati Maliwal Assault Case

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : May 17, 2024, 4:44 PM IST

AAP की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने शुक्रवार को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में अरविंद केजरीवाल के पीए बिभव कुमार द्वारा कथित मारपीट के मामले में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत अपना बयान दर्ज कराया.

स्वाति मालीवाल ने तीस हजारी कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराया
स्वाति मालीवाल ने तीस हजारी कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराया (ETV BHARAT)

नई दिल्ली : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पीए बिभव कुमार द्वारा कथित मारपीट के मामले में आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने तीस हजारी कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराया है. मालीवाल ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कात्यायनी शर्मा कंडवाल के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत अपना बयान दर्ज कराया. स्वाति मालीवाल ने अपने बयान में बताया कि वह 13 मई को अरविंद केजरीवाल से मिलने उनके आवास पर गई थीं.

इस दौरान विभव कुमार ने उनके साथ मारपीट और बदतमीजी की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली पुलिस को 112 नंबर पर कॉल किया था. दिल्ली पुलिस ने 16 मई को स्वाति मालीवाल की शिकायत पर बयान दर्ज किया था. बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 323, 506 और 509 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली. एफआईआर दर्ज करने के बाद 17 मई को तीस हजारी कोर्ट में स्वाति मालीवाल का बयान दर्ज कराया गया.

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अपराध केस में धारा 164 को क्यों मिला हैं खास दर्जा

पुलिस के द्वारा किसी भी आपराधिक घटना के बाद पीड़ित का बयान दर्ज किया जाता है. इस बयान के आधार पर अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत आगे की कार्रवाई होती है. बताया गया है कि पुलिस के समक्ष दिए गए बयान से एफआईआर तो दर्ज हो जाता है लेकिन वह बयान कोर्ट में ट्रायल के समय बतौर साक्ष्य वैल्यू नहीं रहता है. इसलिए अगर गंभीर अपराध घटित होता है तो पुलिस अभियोजन का पक्ष मजबूत करने के लिए जल्द से जल्द अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बयान दर्ज करवाती है. धारा 164 के तहत दर्ज बयान किसी न्यायिक अधिकारी के समक्ष दर्ज किया जाता है.

इस समय ये सुनिश्चित करता है कि जिसका बयान दर्ज हो रहा है वो किसी दबाव में बयान न दें. न्यायिक अधिकारी के सुनिश्चित होने के बाद पीड़ित या पीड़िता अपना बयान दर्ज करवाते हैं. ट्रायल के दौरान न्यायिक अधिकारी के समक्ष धारा 164 के तहत दिया गया बयान उत्कृष्ट दर्जे के साक्ष्य के रूप में माना जाता है, लेकिन धारा 161 के तहत पुलिस के समक्ष दिए गए बयान को उत्कृष्ट दर्जे का बयान नहीं माना जाता है. यहीं वजह है कि पुलिस किसी पीड़ित का बयान दर्ज करने के तुरंत बाद ही उसका मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज कराती है ताकि ट्रायल के समय अभियोजन पक्ष का केस मजबूत हो और आरोपी को जल्द से जल्द सजा मिल सकें.

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