कुल्लू: अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के चलते सैकड़ों देवी देवता जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर मैदान में विराजे हुए हैं और देवी देवताओं के शिविरों में भक्त दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं. इसी बीच उप मंडल आनी के शमशरी महादेव भी 10 साल के बाद ढालपुर मैदान पहुंचे हैं. जहां रोजाना हजारों श्रद्धालु उनके दर्शनों के लिए पहुंच रहे हैं. खास बात ये भी है कि आज भी मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर की तर्ज पर शमशरी महादेव की भस्म आरती होती है. उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में ही भस्म से भोलेनाथ की आरती होती है. ऐसे ही शमशरी महादेव का भी रोजाना शमशान की भस्म से श्रृंगार किया जाता है.
ढालपुर मैदान में 10 सालों के बाद शमशरी महादेव कुल्लू दशहरा में आए हैं. हालांकि इससे पहले देवता के मंदिर का निर्माण कार्य भी चला हुआ था और मान्यता है कि जब तक मंदिर का कार्य पूरा नहीं होता. तब तक देवता रथ के माध्यम से कहीं भी नहीं आते जाते हैं. इस साल दशहरा उत्सव समिति ने उन्हें विशेष रूप से आमंत्रण दिया था और देवता आज ढालपुर मैदान में विराज कर लोगों को दर्शन दे रहे हैं.
शमशरी महादेव के मंदिर का इतिहास टांकरी शैली में लिखा हुआ है. हिमाचल के प्रख्यात टांकरी विद्वान खूबराम खुशदिल ने टांकरी में लिखे अनुवाद के हिन्दी विवरण में बताया है कि, 'शमशरी देव परिसर का विक्रमी सम्वत के अनुसार सन 57 में पुनर्निमाण किया गया. इससे समझा जा सकता है कि यह मंदिर दो हजार साल पुराना है. शमशरी महादेव की कहानी भी उनके नाम को सार्थक करती है. 'शमशर' शब्द के सन्धि विच्छेद में 'शम' का अर्थ पहाड़ी भाषा में 'पीपल' के वृक्ष को कहते हैं, जबकि 'शर' या 'सर' का मतलब 'तालाब' होता है.'
मान्यताओं के अनुसार शमशर से कुछ दूरी पर प्राचीन गांव कमांद से एक ग्वाला प्रतिदिन अपने मालिक की दुधारू गाय को चराने शमशर गांव में आता था, लेकिन अक्सर सायंकाल के समय जब उसका मालिक उसे दुहने की कोशिश करता, लेकिन उसके थनों में दूध न पाकर निराश हो जाता और अपने नौकर को डांटता. एक दिन मालिक ने ग्वाले का पीछा किया तो पाया कि वो गाय एक पीपल के पेड़ के नीचे अपने थनों से दूध इस तरह से डाल रही थी मानों वो शिवलिंग पर दूध चढ़ा रही हो. उसी रात देवता ने उस ग्वाले के मालिक को दर्शन दे कर कहा कि जहां तुम्हारी गाय रोज मुझे दूध चढ़ाती है. उसी 'शम' यानि 'पीपल' के पेड़ के नीचे मेरा भू-लिंग है. उसे वहां से निकालकर पीछे की पहाड़ी पर स्थित गांव में स्थापित करो. उसके बाद मंदिर की स्थापना की गई.
शमशीरी महादेव के पुजारी घनश्याम ने बताया कि, 'देवता की पूरे इलाके में काफी मान्यता है और ढालपुर में भी हजारों लोग देवता के दर्शन कर रहे हैं. देवता सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर ढालपुर पहुंचे हैं और अनेक क्षेत्र के अलावा अन्य इलाकों में भी देवता धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होते हैं.'
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