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शहडोल की जनता का मिजाज है अलग, यहां दिग्गजों को भी झेलनी पड़ी हार, इस बार क्या होंगे समीकरण - shahdol lok sabha seat profile

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 26, 2024, 7:10 PM IST

एमपी को शहडोल लोकसभा सीट एक ऐसी सीट है. यहां की जनता का मूड कोई भांप नहीं सकता है. यह आदिवासी बाहुल्य सीट है. इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच उठापटक हमेशा जारी रही है. वर्तमान में इस सीट पर बीजेपी सांसद है. बीजेपी ने इस बार अपने पुराने प्रत्याशी हिमाद्री सिंह को ही उतारा है. जबकि हिमाद्री को टक्कर देने कांग्रेस ने आदिवासी कार्ड खेलते हुए विधायक फुंदेलाल मार्को को टिकट दिया है.

SHAHDOL LOK SABHA SEAT PROFILE
शहडोल की जनता का मिजाज है अलग, यहां दिग्गजों को भी झेलनी पड़ी हार, इस बार क्या होंगे समीकरण

शहडोल। लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है, चुनाव की तारीखों का भी ऐलान हो चुका है. मध्य प्रदेश में पहले ही चरण में जहां-जहां चुनाव होने हैं. उसमें शहडोल लोकसभा सीट भी शामिल है. शहडोल लोकसभा सीट एक ऐसी आदिवासी बाहुल्य सीट है. जिस पर सबकी नजर टिकी हुई है, क्योंकि इस लोकसभा सीट में कभी भी कोई भी उलटफेर हो जाते हैं. यहां की जनता का मूड कभी भी बदल जाता है. ये हम नहीं कह रहे, बल्कि इस लोकसभा सीट का इतिहास कह रहा है. मतलब साफ है कि शहडोल लोकसभा सीट में इस बार भी दिलचस्प मुकाबला होने की उम्मीद है, कांग्रेस के सामने बीजेपी के मोदी मैजिक की चुनौती रहेगी.

शहडोल लोकसभा सीट का क्षेत्र

कोई भी खेल हो या कोई भी चुनाव हो परिणाम कुछ भी आ सकते हैं. खेल हो या चुनाव हो विपक्षी को कभी कमजोर नहीं आंकना चाहिए शहडोल लोकसभा सीट में भी कुछ ऐसे ही हालात हैं. शहडोल लोकसभा सीट आदिवासी बाहुल्य सीट है. शहडोल लोकसभा सीट चार जिलों की आठ विधानसभा सीटों को मिलाकर बना हुआ है. जिसमें अनूपपुर जिले की तीन विधानसभा सीट आती हैं. जिसमें अनूपपुर, कोतमा और पुष्पराजगढ़ विधानसभा सीट शामिल है, तो वहीं शहडोल जिले की तीन विधानसभा सीटों में से दो विधानसभा सीट इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है. जिसमें जयसिंहनगर और जैतपुर विधानसभा सीट शामिल हैं.

वहीं उमरिया जिले की दोनों विधानसभा सीट शहडोल लोकसभा सीट के अंतर्गत आती हैं. जिसमें मानपुर और बांधवगढ़ विधानसभा सीट शामिल है. कटनी जिले की एक विधानसभा सीट शहडोल लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है. जिसमें बड़वारा सीट शामिल है और इस तरह से चार जिलों की आठ विधानसभा सीटों को मिलाकर बना हुआ है शहडोल लोकसभा सीट.

8 विधानसभा में कहां किसका कब्जा ?

शहडोल लोकसभा सीट चार जिलों की आठ विधानसभा सीटों को मिलाकर बना हुआ है. यहां पर अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो इन आठ विधानसभा सीटों में अनूपपुर जिले की पुष्पराजगढ़ एकमात्र ऐसी विधानसभा सीट है. जहां कांग्रेस ने जीत हासिल की है, तो वहीं बाकी के 7 विधानसभा सीटें ऐसी हैं. जहां पर भारतीय जनता पार्टी ने एक तरफा जीत हासिल की है. मतलब अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम से साफ नजर आ रहे हैं कि यहां भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व है. मोदी मैजिक अभी भी काम कर रहा है. ऐसे में अभी हाल ही में होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की चुनौती कम नजर नहीं आ रही है.

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शहडोल लोकसभा सीट रोचक जानकारी मुद्दे

किसका कब्जा, प्रत्याशी कौन-कौन ?

शहडोल लोकसभा सीट में वर्तमान में बीजेपी का कब्जा है. पिछले चुनाव में बीजेपी की ओर से हिमाद्री सिंह को मैदान पर उतारा गया था और हिमाद्री सिंह ने बड़ी जीत हासिल की थी. शहडोल लोकसभा सीट से पहली बार सांसद भी बनी थीं. इस बार भी बीजेपी ने अपने इस महिला आदिवासी नेता पर ही भरोसा जताया है, और एक बार फिर से उन्हें शहडोल लोकसभा सीट से टिकट दिया गया है. वहीं कांग्रेस ने भी शहडोल लोकसभा सीट पर अपनी ओर से एक मजबूत प्रत्याशी उतारने की कोशिश की है.

कांग्रेस ने शहडोल लोकसभा सीट से फुन्देलाल मार्को को चुनावी मैदान में उतार दिया है. बता दें की फुंदेलाल मार्को ने अभी हाल ही में मोदी मैजिक के बीच में ही बीजेपी सांसद हिमाद्री सिंह के गृह नगर वाले विधानसभा क्षेत्र से ही बड़ी जीत दर्ज की है. अब कांग्रेस ने अपने इस तुरुप के इक्के को भी इस आदिवासी बहुल इलाके में लोकसभा चुनावी मैदान में उतार दिया है. जहां अब शहडोल लोकसभा सीट पर बीजेपी की ओर से हिमाद्री सिंह तो वहीं कांग्रेस की ओर से फुन्देलाल सिंह मार्को के बीच सीधा मुकाबला है.

शहडोल लोकसभा कितने मतदाता

शहडोल लोकसभा सीट में टोटल मतदाताओं की संख्या पर नजर डालें तो शहडोल लोकसभा सीट में टोटल 78 लाख 4,944 मतदाता हैं. जिसमें से 39 लाख 9,692 महिला मतदाता हैं. 38 लाख 5,243 पुरुष मतदाता हैं, 9 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. 14,714 दिव्यांग मतदाता हैं. 80 से 85 वर्ष से ऊपर के मतदाता 3,023 हैं. इस तरह से देखा जाए तो शहडोल लोकसभा सीट पर भी महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. आधी आबादी का यहां वर्चस्व है.

बड़े-बड़े दिग्गजों को भी मिली हार

अभी शहडोल लोकसभा सीट में भले ही बीजेपी को मजबूत माना जा रहा है. मोदी मैजिक का असर बताया जा रहा है. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 8 विधानसभा सीटों में से सात विधानसभा सीटों पर एक तरफा जीत भी हासिल की है, लेकिन शहडोल लोकसभा सीट एक ऐसी सीट है, जहां पर लोकसभा चुनाव बिल्कुल अलग तरीके से होते हैं. यहां पर बड़े-बड़े दिग्गजों को भी समय-समय पर हार का सामना करना पड़ा है, ये हम नहीं कह रहे बल्कि शहडोल लोकसभा सीट का इतिहास कह रहा है.

शहडोल लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो पिछले 46 सालों में 13 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं. जिसमें सबसे ज्यादा पांच बार दलपत सिंह परस्ते अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर जीत कर लोकसभा पहुंचे हैं. कांग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री दलबीर सिंह तीन बार इस लोकसभा सीट से सांसद बने हैं, जबकि उनकी पत्नी राजेश नंदिनी सिंह ने एक बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता है. वर्तमान में दलबीर सिंह और राजेश नंदिनी की बेटी हिमाद्री सिंह भाजपा से यहां की सांसद हैं. इस बार भी भाजपा से ही चुनावी मैदान में हैं. भाजपा के ज्ञान सिंह भी यहां से दो बार सांसद रह चुके हैं.

इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि शहडोल लोकसभा सीट एक ऐसी लोकसभा सीट है. जहां की जनता समय-समय पर नेताओं को हासिए पर लाती रहती है. ये वही लोकसभा सीट है, जहां से अजीत जोगी और दलबीर सिंह जैसे कद्दावर नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा है. केंद्रीय राज्य मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे दलबीर सिंह को इसी लोकसभा सीट से राजनीति के हासिए पर पहुंचा दिया, तो अजीत जोगी शहडोल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. जहां उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था. आखिर में छत्तीसगढ़ का रुख करना पड़ा था और बाद में अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने.

शहडोल लोकसभा सीट की बात की जाए तो साल 1962 तक यहां समाजवादी विचारधारा के प्रत्याशियों का ही कब्जा रहा है. फिर 1962 के बाद कांग्रेस ने यहां अपनी पकड़ मजबूत बनानी शुरू कर दी थी. लंबे समय से जीत से वंचित रही भाजपा आखिर में इस लोकसभा सीट में 1996 में कांग्रेस का किला ढहाने में कामयाब हो पाई, हालांकि उसके बाद भी साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की राजेश नंदिनी सिंह ने भाजपा उम्मीदवार को हरा दिया था. एक बार फिर से कांग्रेस के कब्जे में यह सीट आ गई थी.

जानिए पूरा इतिहास, कब कौन सांसद बना ?

शहडोल लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो 1952 से 1957 के लिए जो लोकसभा चुनाव हुए. उसमें किसान मजदूर पार्टी के रणदमन सिंह सांसद रहे. 1957 से 1962 तक कांग्रेस के कमल नारायण सिंह सांसद रहे, फिर 1962 से 1967 तक सोशलिस्ट पार्टी के बुद्धू सिंह उटिये सांसद रहे, फिर 1967 से 1971 तक कांग्रेस की गिरजा कुमारी सांसद बनीं. फिर 1971 से 1977 तक निर्दलीय प्रत्याशी धन शाह सांसद रहे, फिर 1980 से 1984, 1984 से 1989 और 1991 से 1996 तक कांग्रेस के दलबीर सिंह सांसद रहे.

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शहडोल लोकसभा सीट 2019 के परिणाम

जब बीजेपी ने ढहाया कांग्रेस का किला

1996 में कांग्रेस के गढ़ में भाजपा ने सेंध लगा दी. बीजेपी ने कांग्रेस के किले को ध्वस्त कर दिया और बीजेपी के ज्ञान सिंह 1996 से 1999 तक इस लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद रहे. इसके बाद 1999 से 2004 में, 2004 से 2009 में बीजेपी के दलपत सिंह परस्ते सांसद रहे हैं.

उसके बाद 2009 में एक बार फिर से कांग्रेस ने इस लोकसभा सीट पर वापसी की. कांग्रेस नेता दलबीर सिंह की पत्नी राजेश नंदिनी सिंह ने एक बार फिर से कांग्रेस को इस लोकसभा सीट पर जीत दिलाई.

2014 में एक बार फिर से बीजेपी के दलपत सिंह परस्ते ने भारतीय जनता पार्टी की इस लोकसभा सीट पर वापसी कराई. फिर 2016 तक ये सांसद रहे.

2016 में जब उपचुनाव हुए तो वहां से एक बार फिर से बीजेपी के ज्ञान सिंह ने बीजेपी को जीत दिलाई. ज्ञान सिंह 2016 से 2019 तक यहां से सांसद रहे.

उसके बाद 2019 में बीजेपी ने हिमाद्री सिंह को चुनावी मैदान पर उतारा और हिमाद्री सिंह तब से यहां से सांसद हैं. एक बार फिर से बीजेपी ने हिमाद्री सिंह को ही टिकट दिया है.

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अब हिमाद्री-फुन्देलाल के बीच मुकाबला

शहडोल लोकसभा सीट का जिस तरह से इतिहास रहा है. समय-समय पर यहां की जनता ने जिस तरह से जनप्रतिनिधियों को बदला है. उसे देखकर इस लोकसभा चुनाव में भी अभी से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. हालांकि जो विधानसभा चुनाव का रिजल्ट सामने आया है. उसमें शहडोल लोकसभा सीट पर बीजेपी मजबूत नजर आ रही है. इस इस लोकसभा सीट पर मोदी मैजिक का भी असर देखने को मिल रहा है, लेकिन यहां की जनता के मूड का भी कुछ नहीं कहा जा सकता. बीजेपी की ओर से जहां एक बार फिर से हिमाद्री सिंह को ही चुनावी मैदान पर उतारा गया है, तो वहीं कांग्रेस ने भी इस क्षेत्र के अपने सबसे मजबूत आदिवासी नेता फुन्देलाल सिंह मार्को को चुनावी मैदान में उतारा है. फुंदेलाल मार्को ने हाल ही में विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाई है. आदिवासियों के बीच में इनकी अच्छी पैठ मानी जाती है. अब देखना दिलचस्प होगा कि सांसद के गृह क्षेत्र वाले विधानसभा में जीत हासिल करने के बाद फुन्देलाल सिंह मार्को का मोदी मैजिक के बीच कैसा प्रदर्शन रहता है.

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