भोपाल। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बच्चों से आह्वान किया कि वे चुनौतियों से घबराएं नहीं बल्कि उनसे निपटने की आदत डालें. मैं हमेशा चुनौती को चुनौती देता हूं. इससे मुझे सीखने को मिलता है. मैं हमेशा मानता हूं कि चुनौती का सामना करने से कुछ नया सीखने को मिलता है. पीएम मोदी ने कहा कि बच्चे अपनी लाइफ स्टाइल को अच्छा रखें. पढ़ाई के साथ अच्छा खान-पान और व्यायाम भी करें. परिजन और बच्चे दोनों एक-दूसरे पर भरोसा करें और एक-दूसरे का भरोसा ना तोड़ें. बच्चों ने कहा कि प्रधानमंत्री ने जो सुझाव दिए हैं, उसका हम पालन करेंगे.
सवालों पर पीएम ने दिए रोचक जवाब
सवाल : आंध्र प्रदेश के टीचर संपत राव ने प्रधानमंत्री मोदी से सवाल पूछा कि बच्चों को तनाव मुक्त बनाने में किस तरह से मदद कर सकता हूं ?
जवाब : अगर स्टूडेंट और टीचर का नाता परीक्षा के कालखंड का है तो सबसे पहले वह नाता करेक्ट करना चाहिए. आपका और स्टूडेंट के बीच का संबंध स्कूल के पहले दिन से लेकर परीक्षा तक लगातार बनाए रखना चाहिए. इससे परीक्षा के समय तनाव की नौबत ही नहीं आएगी. आज मोबाइल का जमाना है, क्या कभी किसी स्टूडेंट ने आपको फोन किया है कि मुझे यह परेशानी हो रही है. शायद कभी नहीं किया होगा, क्योंकि उसे लगता ही नहीं है कि मेरी जिंदगी में आपका कोई विशेष स्थान है. बच्चों को हमेशा लगता है कि आपका और टीचर का नाता सिर्फ सब्जेक्ट से जुड़ा है. डॉक्टर के पास डिग्री तो सभी के पास होती है लेकिन कई डॉक्टर लगातार पेशेंट से फोन पर संपर्क में रहते हैं. इस तरह की बॉन्डिंग मरीज को आधा ठीक कर देता है. यदि बच्चे की सफलता पर टीचर बच्चों के घर जाकर मिलता है तो परिवार और बच्चों से संबंध सबसे बेहतर होता है.
सवाल : उड़ीसा की छात्रा राज्यलक्ष्मी ने सवाल पूछा कि एग्जाम हॉल का माहौल तनावपूर्ण होता है. ऐसे में किस तरह तनाव न पालें?
जवाब : कई गलतियां परिजनों का अति उत्साहित कर देती हैं और कई बार बच्चों का उत्साह भी गलतियों का कारण बनता है. माता-पिता से मेरे आग्रह है कि जो पेंट बच्चे रोज पहन कर जाते हैं वही जाने दीजिए. वह परीक्षा हॉल में पेंट थोड़ी दिखाने जा रहा है. परिजन कई बार कुछ विशेष खिलाकर भेजते हैं जबकि इसकी जरूरत नहीं होती. परीक्षा के समय भी परिजनों को बच्चों को अपनी मस्ती में जीने दीजिए. जैसे हर बार वह स्कूल जाता है वैसे ही उसे जाने दीजिए. कई बार बच्चे आखिरी समय तक किताब नहीं छोड़ते. एग्जाम हॉल में 10 -15 मिनट पहले पहुंच जाएं. एग्ज़ाम हॉल में 10-5 मिनट सिर्फ हंसी मजाक में गुजार दीजिए. एग्जाम हॉल में पहुंचने के बाद यदि कुछ ना करें तो लंबी-लंबी सांस लें और खुद में ही खो जाइए. एग्जाम हॉल में यह ना देखें कि सीसीटीवी कहां लगा है, कितने टीचर हैं, क्या व्यवस्था है. यह आपका काम नहीं है. सबसे पहले क्वेश्चन पेपर को अच्छे से पढ़ लीजिए और तय कर लीजिए कि किस सवाल में कितना समय लगेगा. आजकल मोबाइल व लैपटॉप के कारण लिखने की आदत कम हो गई है जबकि एग्जाम में लिखना होता है. हर रोज जितना समय पढ़ते हैं उसका 50 प्रतिशत लिखें और इसके बाद उसे खुद पढ़कर देखिए. इससे लिखने की मास्टरी हो जाएगी.
सवाल : राजस्थान के छात्र धीरज ने सवाल किया कि पढ़ाई के साथ व्यायाम के लिए कैसे समय निकालें ? कैसे हेल्दी लाइफ़स्टाइल बनाई रखी जाए ?
जवाब : मोबाइल को भी रिचार्ज की जरूरत होती है, इसी तरह बॉडी को भी रिचार्ज की जरूरत होती है. कितना समय आप खुले आसमान के नीचे धूप में गुजारते हैं. धूप भी बॉडी को रीचार्ज करता है. इसी तरह नींद भी शरीर को रिचार्ज करती है. आधुनिक हेल्थ साइस भी नींद को बेहद जरूरी मानता है. मुझे सिर्फ 30 सेकंड सोने में लगता है. क्योंकि मैं जब जागा होता हूं तो पूरी तरह से जागृत रहता हूं. इसी तरह बच्चों को अच्छा न्यूट्रिशन लेना चाहिए. उसके बाद आता है एक्सरसाइज. बॉडी को फिट बनाए रखने के लिए एक्सरसाइज बहुत जरूरी है.
सवाल : हरियाणा की छात्रा ने सवाल किया कि करियर के चुनाव में दबाव से कैसे मुक्त रहें और कैसे करियर का चुनाव करें ?
जवाब : प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बच्चे निर्णय के मामले में अनिश्चित होते हैं. इसीलिए वह कई लोगों से सवाल पूछते रहते हैं. ऐसे में जब बच्चे को जो सुझाव सबसे आसान लगता है उसे ही चयन कर लेते हैं, लेकिन सबसे बुरी स्थिति कन्फ्यूजन होती है. यह इसलिए होता है क्योंकि आप अपने आप को सही से पहचानने की कोशिश नहीं करते. इसलिए अपने आप को पहचान कर निर्णय और किसी भी निर्णय पर पहुंचने के पहले सभी परिस्थितियों को अच्छे से आंक लें. आधे अधूरे मन से कोई काम ना करें और जो भी काम करें उसमें पूरे की जान से जुट जाएं.
सवाल : पेंडूचेरी की छात्रा ने पूछा कि हम अपने परिजनों को कैसे भरोसा दिलाए कि हम बेहद कठिन परिश्रम कर रहे हैं ?
जबाव : प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हर टीचर पैरेंट्स और टीचर को बहुत ही बारीकी से अपने आचरण को एनालाइज करते रहना चाहिए. कहीं ना कहीं आपने ऐसा कोई काम किया होगा जिससे अविश्वास की स्थिति पैदा हो जाती है. क्या आप जो कह रहे हैं उसे पूरा पालन करते हैं. यदि आप करते हैं तो बच्चों पर परिजन और टीचर कभी अविश्वास नहीं करते. इसी तरह परिजन भी बच्चों पर भरोसा करना सीखें. यदि आपने अपने बेटे को ₹100 दिए हैं तो बाद में बार-बार यह न पूछें कि उन ₹100 का आपने क्या किया ? यदि भरोसा करके पैसे दिए हैं तो इसको लेकर सवाल ना करें.
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सवाल : छात्र के परिजन श्रद्धा सिंह ने पूछा कि हर परिजन की चिंता है कि बच्चे मोबाइल से कैसे दूर रहें.
जवाब: जो माता-पिता दिन भर मोबाइल में बिजी रहते हैं वह भी यही चिंता करते हैं. मोबाइल भी अविश्वास का बड़ा कारण बन गया है. हम तकनीक से बच नहीं सकते और ना ही इससे दूर भागना चाहिए लेकिन उसका सही उपयोग सीखना भी उतना ही जरूरी है. यह भी जरूरी है कि हमें पता होना चाहिए कि परिवार में क्या हो रहा है. कितना अच्छा होगा कि सबको पता हो कि एक दूसरे के मोबाइल का लॉक क्या है और सभी एक दूसरे का मोबाइल देख सकें. अगर मोबाइल छुप-छुपकर कोई कुछ देख रहा है तो समझ लीजिए कुछ गड़बड़ है.