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जयपुर में होने के बाद भी कहलाता है झारखंड महादेव मंदिर, दक्षिण भारतीय शैली में बना छोटी काशी का एकमात्र मंदिर!

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 8, 2024, 9:01 AM IST

Updated : Mar 8, 2024, 9:13 AM IST

देश भर में महाशिवरात्रि पर्व की धूम देखने को मिल रही है. छोटी काशी में भी सभी शिवालयों को विशेष रूप से सजाया गया है. यहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन और उनका अभिषेक करने के लिए मंदिरों के बाहर श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी हुई हैं. इन सबके बीच हम आपको जयपुर के एक ऐसे शिवालय के बारे में बताएंगे, जो बना तो जयपुर में है, लेकिन उसका नाम झारखंड महादेव मंदिर है. जयपुर में होने के बावजूद भी मंदिर का नाम झारखंड क्यों हुआ और क्यों खास है ये मंदिर, पढ़िए इस खास रिपोर्ट में.

झारखंड महादेव मंदिर
झारखंड महादेव मंदिर

जयपुर का झारखंड महादेव मंदिर

जयपुर. राजधानी जयपुर के वैशाली नगर में स्थित दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित झारखंड महादेव मंदिर, जिसके चारों तरफ प्राकृतिक छठा बिखरी हुई है. दूर-दूर से लोग यहां भगवान शिव को रिझाने के लिए पहुंचते हैं. हालांकि, जयपुर में यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जो दक्षिण भारतीय शैली में बनाया गया है. इसके अलावा इस मंदिर के नाम को लेकर भी लोगों के जहन में कई प्रश्न आते हैं कि जयपुर में स्थित इस मंदिर का नाम झारखंड क्यों पड़ा? आइए जानते हैं इसके पीछे का इतिहास.

ये है इतिहास : मंदिर ट्रस्ट (बब्बू सेठ ट्रस्ट) के अध्यक्ष जय प्रकाश सोमानी ने बताया कि यहां पहले जंगल हुआ करता था. पेड़ों को झाड़ भी बोलते हैं और इन्हीं झाड़ के बीच एक खंड बना दिया गया, इसलिए इसे झारखंड नाम दिया गया. ये करीब 100 साल पुराना मंदिर है, जबकि झारखंड राज्य तो वर्ष 2000 में बना है. उन्होंने बताया कि मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है. करीब 106 साल पहले 1918 में उनके दादाजी बब्बू सेठ यहां आए थे. यहीं एक संत गोविंदनाथ बाबा तपस्या किया करते थे. उनकी 12 साल की तपस्या पूर्ण हुई थी, उन्हीं के आशीर्वाद से पहले यहां कुआं कोठरी और तिबारा बनवाया गया और फिर मंदिर का निर्माण कराया गया. बाद में 1939 में जब गोविंदनाथ बाबा ने समाधि ली, तो यहीं उनकी समाधि बनाई गई. उनकी धूणी आज भी यहां मौजूद है.

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भगवान शिव का पूरा परिवार विराजित : सोमानी ने बताया कि उनकी बुआ दक्षिण भारत में रहतीं थीं. ऐसे में उनके परिवार का आना-जाना साउथ में था. जयपुर में कोई विशेष तरह का मंदिर बनाए जाने की प्रेरणा हुई. ऐसे में दक्षिण भारत से कारीगरों को बुलाकर, दक्षिण भारतीय शैली में ही मंदिर का निर्माण कराया गया. यहां भगवान शिव का पूरा परिवार बाद में विराजित कराया गया, जिसमें भगवान गणेश, माता पार्वती, स्वामी कार्तिक और विश्व के सबसे बड़े नंदी प्राण प्रतिष्ठित कराए गए. इनके अलावा भगवान शिव के चौकीदार भृंगी और अन्य की प्रतिमाएं भी विराजित की गई हैं.

विश्व के सबसे बड़े नंदी प्राण प्रतिष्ठित
विश्व के सबसे बड़े नंदी प्राण प्रतिष्ठित

7 गुरुवार आने पर पूरी होती मनोकामना : मंदिर पुजारी कन्हैया लाल ने बताया कि मान्यता है कि मंदिर में आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है. दूर-दूर से यहां लोग आते हैं. सावन के चार सोमवार और शिवरात्रि पर तो मेले सा माहौल रहता है. स्थानीय पार्षद और ग्रेटर निगम में समिति चेयरमैन अक्षत खुटेटा ने बताया कि ये प्राचीन मंदिर है और दक्षिण भारतीय शैली में बना जयपुर का इकलौता मंदिर है. इसके अलावा मंदिर में गोविंद बाबा की समाधि है, जिसको लेकर मान्यता है कि वहां कोई 7 गुरुवार को लगातार आए, तो उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.

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सालों से यहां नियमित भगवान शिव को जल अर्पित करने पहुंचने वाले श्रद्धालुओं ने बताया कि मंदिर में लंबी-लंबी लाइनों के बावजूद वो भगवान को जल अर्पित किए बिना नहीं जाते. यहां का प्राकृतिक वातावरण भी आत्म शांति देने वाला है. कुछ महिलाओं ने यहां भजन मंडली भी बना रखी है, जो हर दिन कम से कम एक घंटा भगवान के समक्ष बैठकर भजन करती हैं. इन्हीं में से एक ने बताया कि वो 40 साल से यहां नियमित आ रही हैं. उनका कहना है कि जब वो जयपुर आईं थीं तो उनके पास कुछ भी नहीं था, लेकिन आज भगवान का दिया हुआ सब कुछ है.

Last Updated :Mar 8, 2024, 9:13 AM IST
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