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माघी पूर्णिमा 2024, स्नान दान से मिलेगा विशेष फल

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 23, 2024, 4:09 AM IST

Updated : Feb 24, 2024, 6:26 AM IST

Maghi Purnima 2024
माघी पूर्णिमा 2024

Maghi Purnima 2024 माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है. दान और पितरों के तर्पण के लिए भी यह दिन अनुकुल माना जाता है. इस दिन वैवाहिक कार्यक्रम भी कराए जाते हैं.

माघ पूर्णिमा का महत्व

रायपुर: माघ पूर्णिमा माघ मास के अंतिम दिन मनाई जाती है. इस दिन स्नान दान जप और व्रत करने से विशेष फल मिलता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत ही शुभ माना जाता है. माघी पूर्णिमा की शुरुआत 23 फरवरी को दोपहर 3:33 से होगा और 24 फरवरी की शाम 5:59 तक रहेगा. जिसमें व्रत की पूर्णिमा 23 फरवरी को रहेगी और स्नान दान की पूर्णिमा 24 फरवरी को मनाई जाएगी.

पूर्णिमा तिथि का व्रत और सत्यनारायण की कथा 23 फरवरी को किया जाएगा. इस दिन रात्रि में पूर्णिमा तिथि रहेगी. पूर्णिमा तिथि में ही चंद्रमा की पूजा करने का विशेष महत्व रहता है. माघ पूर्णिमा 23 फरवरी के दिन रवि योग भी रहने वाला है. 24 फरवरी की रात में पूर्णिमा तिथि नहीं रहेगी, इसलिए पूर्णिमा का व्रत इस दिन नहीं किया जाएगा. जबकि इस दिन स्नान दान की पूर्णिमा रहेगी. उदया तिथि में पूर्णिमा 24 फरवरी को रहेगी.

माघ पूर्णिमा की पौराणिक कथा: माघ पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में एक गरीब ब्राह्मण दंपति रहते थे, जो भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते थे. ब्राह्मण का नाम धनेश्वर था और उसकी कोई संतान नहीं थी. एक दिन भिक्षा मांगने के दौरान लोग ब्राह्मण की पत्नी को बांझ कहकर ताने मारने लगे और ब्राह्मण को भिक्षा भी नहीं मिली. इस तरह से ब्राह्मण दंपति बहुत दुखी हो गए. इसके बाद किसी ने उन्हें 16 दिनों तक मां काली की पूजा करने के लिए कहा. दंपति ने 16 दिनों तक मां काली का पूजन किया. काली मां इस पूजन से प्रसन्न होकर दंपति को दर्शन दिए और ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का आशीर्वाद दिया.

मां काली ने ब्राह्मण को हर पूर्णिमा पर दीप जलाने को कहा और अगले पूर्णिमा में दीपक की संख्या को बढ़ाने के लिए कहा. इस तरह से दंपति हर पूर्णिमा के दिन व्रत रखने लगे और दीप जलने लगे. कुछ समय बाद ब्राह्मण की पत्नी गर्भवती हुई और दसवें महीने में एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. ब्राह्मण ने पुत्र का नाम देवदास रखा, लेकिन देवदास अल्पायु था. देवदास जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे पढ़ने के लिए उसके मामा के पास काशी भेज दिया गया. लेकिन काशी में कुछ ऐसी घटना घटी, जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह कर दिया गया.

इस बीच कुछ समय बाद देवदास की मृत्यु का समय भी निकट आ गया. काल उसके प्राण हरने आ गए, लेकिन उस दिन पूर्णिमा तिथि थी और ब्राह्मण दंपति ने पुत्र के लिए व्रत रखा था. जिसकी वजह से उसके पुत्र की मौत नहीं हुई. पूर्णिमा व्रत के प्रभाव से ही देवदास के प्राण बच पाए. इसलिए ऐसी मान्यता है की पूर्णिमा का व्रत रखने से जीवन संकटों से मुक्त रहता है और अनहोनी टल जाती है.

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Last Updated :Feb 24, 2024, 6:26 AM IST
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