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माघ पूर्णिमा : स्नान और दान से प्रसन्न होते हैं भगवान विष्णु, परिवार के कल्याण के लिए जरूर पढ़ें कथा

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Published : Feb 15, 2022, 4:12 PM IST

16 फरवरी को माघ मास की पूर्णिमा (Magh Purnima 2022) है. इसे माघी पूर्णिमा (Maghi Purnima) के नाम से भी जाना जाता है. सनातन धर्म में पूर्णिमा (Purnima) को विशेष महत्व है. माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु गंगा में निवास करते हैं और माघी पूर्णिमा को देवी देवता मनुष्य रूप में धरती पर आते हैं. इन दिन नदी में स्नान, दान और कथा सुनने का बड़ा महत्व है, इससे भगवान विष्णु की कृपा मिलती है.

magh purnima
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कुल्लू : सनातन धर्म में माघ मास की पूर्णिमा की तिथि को स्नान, दान और जाप की महत्ता बताई गई है. इस साल 16 फरवरी यानी बुधवार को को माघ मास की पूर्णिमा तिथि बन रही है. ज्योतिषाचार्य दीप कुमार के अनुसार, यह माना जाता है कि माघ मास की पूर्णिमा के दिन जो श्रद्धालु सच्चे मन से पूजा करते हैं, तो उन्हें भगवान विष्णु की विशेष कृपा भी मिलती है.
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सभी कलाओं से सुशोभित होता है और माघ मास की पूर्णिमा की तिथि पर संत रविदास का जन्म हुआ था. इस कारण माघी पूर्णिमा का विशेष महत्व है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और जाप के अलावा पूर्णिमा तिथि का व्रत भी विशेष फलदायी माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ मास में देवता मनुष्य का रूप धारण करके धरती पर रहते हैं और वे भी धार्मिक स्थानों में दान और स्नान करते हैं. पूर्णिमा के दिन देवता आखिरी बार स्नान-दान के बाददेवलोक लौट जाते हैं. इस कारण इस पूरे माघ महीने में ही दान, स्नान, भजन, कीर्तन और मंत्रों के जाप का विशेष महत्व बताया गया है.

ज्योतिषाचार्य दीप कुमार के अनुसार, जो लोग पूरे महीने नियम व्रत नहीं कर सकते वह कम से कम पूर्णिमा के दिन स्नान, दान और ​जाप आदि कर सकते हैं. ऐसी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं. इस दिन गंगा स्नान करने से सुख-सौभाग्य, धन-संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है. वही, प्रयाग में कल्पवास करके त्रिवेणी स्नान करने का अंतिम दिन माघ पूर्णिमा ही है.


माघ पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
माघ पूर्णिमा 15 फरवरी 2022, मंगलवार को रात 09:12 बजे से शुरू होगी और 16 फरवरी 2022, बुधवार को रात 10:09 मिनट तक रहेगी. इसी एक साथ एक महीने का कल्पवास भी पूर्ण हो जाएगा. ज्योतिषाचार्य दीप कुमार का कहना है कि माघ पूर्णिमा के दिन अगर आप प्रयागराज में स्नान न कर सकें तो किसी भी गंगा तट पर स्नान कर सकते हैं. अगर ऐसा संभव न हो, तो घर में ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें. स्नान के बाद सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए.

माघी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा की जाती है. इस दिन भक्त नारायण के साथा मां लक्ष्मी की पूजा करें. सत्यनारायण की कथा जरूर पढ़ें. मान्यता है कि इससे सौ यज्ञों के समतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते, पंचामृत, पुष्प, पंजीरी, मौली, रोली, कुमकुम, पीले ​अक्षत, गंगाजल, पीला चंदन आदि का इस्तेमाल करें. इस दिन सामर्थ्य के अनुसार कुछ भी दान करें. आप गुड़, काले तिल, कपास, भोजन, वस्त्र, घी, लड्डू, अन्न आदि कुछ भी दान कर सकते हैं. दान किसी जरूरतमंद को ही करें. काले तिल से हवन करें और अधिक से अधिक नारायण के मंत्रों का जाप करें. मान्यता है कि इससे जीवन के तमाम कष्ट कट जाते हैं और जाप का कई गुणा फल प्राप्त होता है.

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माघी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है.

माघ पूर्णिमा की कथा

माघ पूर्णिमा की एक पौराणिक कथा है. कथा के अनुसार, कांतिका नगर में धनेश्वर नाम के एक गरीब ब्राह्मण रहते थे. उनका जीवन दान में दिए गए वस्तुओं से निर्वाह होता था. ब्राह्मण दंपति की कोई संतान नहीं थी. एक दिन ब्राह्मण की पत्नी भिक्षा मांगने नगर में गईं, लेकिन सभी ने उसे बांझ का ताना देकर भिक्षा देने से इनकार कर दिया. दुखी ब्राह्मण की पत्नी ने यह बात अपने पति को बताई. वह अक्सर उदास रहने लगीं. तब किसी ने उनसे 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा. ब्राह्मण दंपत्ति ने मां काली की पूजा शुरू कर दी. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर 16 दिन बाद मां काली प्रकट हुईं. मां काली ने ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाओ. इस तरह दीपक बढ़ाती जाना कि पूर्णिमा के दिन तक कम से कम 32 दीपक हो जाएं.

ब्राह्मण दंपत्ति ने मां काली के बताए उपाय के साथ दीपक जलाना जारी रखा. इस बीच ब्राह्मण की पत्नी वरदान के फलस्वरूप वह गर्भवती हो गई. प्रत्येक पूर्णिमा को वह मां काली के कहे अनुसार दीपक जलाती रहीं. मां काली की कृपा से उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम देवदास रखा. मगर थोड़े दिन बाद ब्राह्मण धनेश्वर को पता चला कि उनका बेटा देवदास अल्पायु होगा. देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा दिया. काशी में उन दोनों के साथ एक घटना घटी, जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया, देवदास ने कहा कि वह अल्पायु है परंतु फिर भी जबरन उसका विवाह करवा दिया गया. कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया. संयोग से उस दिन माघ मास की पूर्णिमा की तिथि थी और ब्राह्मण दंपत्ति ने व्रत रखा था, इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया. तभी से माना जाता है पूर्णिमा के दिन व्रत करने से संकट से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

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