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यूपी की 38 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस का 40 साल से नहीं खुला खाता, क्या इस बार होगा खेला - Election 2024

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 12, 2024, 2:47 PM IST

UP Politics: कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2009 में 21 सीटें जीती थीं. बीते 4 दशक में ये कांग्रेस का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा. लेकिन, इसके बाद बीते तीन लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का ग्राफ लगातार नीचे गिरा है.

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लखनऊ: Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होने जा रहा है. पहले चरण के मतदान में उत्तर प्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर वोटिंग होनी है. उत्तर प्रदेश में होने वाले हर चुनाव में कांग्रेस के लिए अच्छे दिनों की उम्मीद धुंधली होती गई है.

पिछले लोकसभा विधानसभा और निकाय चुनाव के नतीजे इसकी बानगी पेश करती हैं. पार्टी हर बार बड़े-बड़े दावों के साथ चुनाव में उतरती है लेकिन, चुनाव में उसका प्रदर्शन पिछली बार की तुलना में भी खराब प्रदर्शन के साथ सामने आती है.

कांग्रेस पार्टी ने 1947 से लेकर 1989 के बीच लगभग चार दशक तक उत्तर प्रदेश पर राज किया. वह कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सीट पर ही सीमित गई है. प्रदेश की 80 संसदीय सीटों में से 38 सीटे ऐसी हैं, जहां कांग्रेस आखिरी बार 40 साल पहले जीती थी.

मौजूदा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस पार्टी के नेताओं का मानना है कि इस बार समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में वह 40 साल बाद इनमें से सहारनपुर और बुलंदशहर सीटों पर जीत की उम्मीद लगा रखी है. हालांकि अन्य सीटों पर कांग्रेस को जीत की उम्मीद उसके पिछले प्रदर्शन को देखते हुए काफी चुनौती पूर्ण लग रहा है.

उल्लेखनीय है कि 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस एकमात्र रायबरेली लोकसभा सीट ही जीत पाई थी. 403 सीटों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में केवल दो विधायक हैं. 2009 में हुए परिसीमन के बाद उत्तर प्रदेश में नगीना (सुरक्षित सीट) गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, धौरहरा, अकबरपुर, फतेहपुर सीकरी, कौशांबी, संत कबीर नगर, श्रावस्ती, कुशीनगर और भदोही कुल 11 संसदीय सीटें अस्तित्व में आई.

2009 में इन सीटों पर पहली बार आम चुनाव हुआ पर कांग्रेस केवल धौरहरा व अकबरपुर लोकसभा सीट को छोड़कर अब तक इन सीटों पर हुए तीन लोकसभा चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाई है.

लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतना सबसे मुश्किल भरा काम है. उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 15 सीटों पर कांग्रेस पिछले 15 साल पहले आखिरी बार जीत दर्ज की थी.

इसमें मुरादाबाद, फिरोजाबाद, बरेली, खीरी, धौरहरा, उन्नाव, फर्रुखाबाद, कानपुर, अकबरपुर, बहराइच, झांसी, बाराबंकी, फैजाबाद, गोंडा, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, श्रावस्ती, डुमरियागंज, महाराजगंज और कुशीनगर हैं.

इन सीटों पर कांग्रेस को अंतिम बार साल 2009 के आम चुनाव में जीत हासिल हुई थी. साल 1984 के आम चुनाव के बाद सीट जीतने के लिए कांग्रेस का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. 2009 के आम चुनाव के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत और सीटें दोनों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का मत प्रतिशत सवा दो प्रतिशत के आसपास रह गया.

प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि 2014 के आम चुनाव में देश और प्रदेश में पीएम मोदी की लहर में भाजपा चुनाव जीत गई. इस चुनाव में कांग्रेस रायबरेली और अमेठी की दो सीटें ही जीत पाई थी. उसका वोट प्रतिशत गिरकर 7.53 रह गया था.

वहीं 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस को केवल रायबरेली की सीट ही मिल सकी थी. रायबरेली में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता व पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी उम्मीदवार थी. हालांकि गांधी परिवार की गढ़ माने जाने वाली अमेठी सीट भी राहुल गांधी हार गए. कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 6.36 ही रह गया था.

प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 38 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस ने साल 1984 के आम चुनाव में आखिरी बार जीत हासिल की थी. इन सीटों को पिछले चार दशक से कांग्रेस ऐसा कोई करिश्मा नहीं कर पाई है जिससे उसे इन चुनाव में बेहतर रिजल्ट की उम्मीद हो.

उन्होंने बताया कि सहारनपुर, कैराना, बिजनौर, पीलीभीत, अमरोहा, बुलंदशहर, संभल, हाथरस, आगरा, मैनपुरी, बदायूं, आंवला, हरदोई, इटावा, कन्नौज, मोहनलालगंज, लखनऊ, जालौन, हमीरपुर, बांदा, कैसरगंज, फूलपुर, इलाहाबाद, फतेहपुर, अंबेडकर नगर, बस्ती, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछली शहर, गोरखपुर, देवरिया, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर और रॉबर्टगंज लोकसभा सीटें शामिल हैं.

वहीं एटा की सीट पर कांग्रेस ने अंतिम बार 44 साल पहले 1980 में जीत हासिल की थी. जबकि 1989 में कांग्रेस ने सीतापुर और घोसी की लोकसभा सीट जीती थी. 1991 में पार्टी ने मिश्रिख लोकसभा सीट पर चुनाव जीता था. बागपत लोकसभा सीट अंतिम बार 1996 में जीती थी.

मुजफ्फरनगर, रामपुर और मेरठ सीट पर अंतिम बार 1999 में जीत हासिल की थी. जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अलीगढ़, मथुरा, शाहजहांपुर, बांसगांव और वाराणसी सीट पर जीत हासिल की थी. उसके बाद से यह सभी सीटें वह लगातार हारती आ रही है.

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अंशु अवस्थी का कहना है कि इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस सभी 17 लोकसभा सीटों पर बेहतर चुनाव लड़ रही है. इस बार हम रायबरेली और अमेठी के साथ ही प्रदेश में सभी सीटों पर बेहतर चुनाव लड़ रहे हैं. इस चुनाव में पार्टी उन सीटों पर भी जीत हासिल करेगी जहां पर दशकों से पार्टी का खाता नहीं खुला है.

ये भी पढ़ेंः मुरादाबाद लोकसभा सीट; अब तक नहीं जीती कोई महिला, क्या सपा की रुचि वीरा तोड़ेंगी रिकॉर्ड

लखनऊ: Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होने जा रहा है. पहले चरण के मतदान में उत्तर प्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर वोटिंग होनी है. उत्तर प्रदेश में होने वाले हर चुनाव में कांग्रेस के लिए अच्छे दिनों की उम्मीद धुंधली होती गई है.

पिछले लोकसभा विधानसभा और निकाय चुनाव के नतीजे इसकी बानगी पेश करती हैं. पार्टी हर बार बड़े-बड़े दावों के साथ चुनाव में उतरती है लेकिन, चुनाव में उसका प्रदर्शन पिछली बार की तुलना में भी खराब प्रदर्शन के साथ सामने आती है.

कांग्रेस पार्टी ने 1947 से लेकर 1989 के बीच लगभग चार दशक तक उत्तर प्रदेश पर राज किया. वह कांग्रेस अब लोकसभा में केवल एक सीट पर ही सीमित गई है. प्रदेश की 80 संसदीय सीटों में से 38 सीटे ऐसी हैं, जहां कांग्रेस आखिरी बार 40 साल पहले जीती थी.

मौजूदा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस पार्टी के नेताओं का मानना है कि इस बार समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में वह 40 साल बाद इनमें से सहारनपुर और बुलंदशहर सीटों पर जीत की उम्मीद लगा रखी है. हालांकि अन्य सीटों पर कांग्रेस को जीत की उम्मीद उसके पिछले प्रदर्शन को देखते हुए काफी चुनौती पूर्ण लग रहा है.

उल्लेखनीय है कि 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस एकमात्र रायबरेली लोकसभा सीट ही जीत पाई थी. 403 सीटों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में केवल दो विधायक हैं. 2009 में हुए परिसीमन के बाद उत्तर प्रदेश में नगीना (सुरक्षित सीट) गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, धौरहरा, अकबरपुर, फतेहपुर सीकरी, कौशांबी, संत कबीर नगर, श्रावस्ती, कुशीनगर और भदोही कुल 11 संसदीय सीटें अस्तित्व में आई.

2009 में इन सीटों पर पहली बार आम चुनाव हुआ पर कांग्रेस केवल धौरहरा व अकबरपुर लोकसभा सीट को छोड़कर अब तक इन सीटों पर हुए तीन लोकसभा चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाई है.

लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतना सबसे मुश्किल भरा काम है. उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 15 सीटों पर कांग्रेस पिछले 15 साल पहले आखिरी बार जीत दर्ज की थी.

इसमें मुरादाबाद, फिरोजाबाद, बरेली, खीरी, धौरहरा, उन्नाव, फर्रुखाबाद, कानपुर, अकबरपुर, बहराइच, झांसी, बाराबंकी, फैजाबाद, गोंडा, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, श्रावस्ती, डुमरियागंज, महाराजगंज और कुशीनगर हैं.

इन सीटों पर कांग्रेस को अंतिम बार साल 2009 के आम चुनाव में जीत हासिल हुई थी. साल 1984 के आम चुनाव के बाद सीट जीतने के लिए कांग्रेस का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. 2009 के आम चुनाव के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत और सीटें दोनों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का मत प्रतिशत सवा दो प्रतिशत के आसपास रह गया.

प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि 2014 के आम चुनाव में देश और प्रदेश में पीएम मोदी की लहर में भाजपा चुनाव जीत गई. इस चुनाव में कांग्रेस रायबरेली और अमेठी की दो सीटें ही जीत पाई थी. उसका वोट प्रतिशत गिरकर 7.53 रह गया था.

वहीं 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस को केवल रायबरेली की सीट ही मिल सकी थी. रायबरेली में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता व पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी उम्मीदवार थी. हालांकि गांधी परिवार की गढ़ माने जाने वाली अमेठी सीट भी राहुल गांधी हार गए. कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 6.36 ही रह गया था.

प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 38 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस ने साल 1984 के आम चुनाव में आखिरी बार जीत हासिल की थी. इन सीटों को पिछले चार दशक से कांग्रेस ऐसा कोई करिश्मा नहीं कर पाई है जिससे उसे इन चुनाव में बेहतर रिजल्ट की उम्मीद हो.

उन्होंने बताया कि सहारनपुर, कैराना, बिजनौर, पीलीभीत, अमरोहा, बुलंदशहर, संभल, हाथरस, आगरा, मैनपुरी, बदायूं, आंवला, हरदोई, इटावा, कन्नौज, मोहनलालगंज, लखनऊ, जालौन, हमीरपुर, बांदा, कैसरगंज, फूलपुर, इलाहाबाद, फतेहपुर, अंबेडकर नगर, बस्ती, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछली शहर, गोरखपुर, देवरिया, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर और रॉबर्टगंज लोकसभा सीटें शामिल हैं.

वहीं एटा की सीट पर कांग्रेस ने अंतिम बार 44 साल पहले 1980 में जीत हासिल की थी. जबकि 1989 में कांग्रेस ने सीतापुर और घोसी की लोकसभा सीट जीती थी. 1991 में पार्टी ने मिश्रिख लोकसभा सीट पर चुनाव जीता था. बागपत लोकसभा सीट अंतिम बार 1996 में जीती थी.

मुजफ्फरनगर, रामपुर और मेरठ सीट पर अंतिम बार 1999 में जीत हासिल की थी. जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अलीगढ़, मथुरा, शाहजहांपुर, बांसगांव और वाराणसी सीट पर जीत हासिल की थी. उसके बाद से यह सभी सीटें वह लगातार हारती आ रही है.

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अंशु अवस्थी का कहना है कि इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस सभी 17 लोकसभा सीटों पर बेहतर चुनाव लड़ रही है. इस बार हम रायबरेली और अमेठी के साथ ही प्रदेश में सभी सीटों पर बेहतर चुनाव लड़ रहे हैं. इस चुनाव में पार्टी उन सीटों पर भी जीत हासिल करेगी जहां पर दशकों से पार्टी का खाता नहीं खुला है.

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