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कभी एक दर्जन लोकसभा सीटों पर था वाम दलों का दबदबा...फिर गरीब भी बंट गये जाति में - lok sabha election 2024

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 17, 2024, 7:05 PM IST

left parties in Bihar बिहार में कभी वाम दलों का एक दर्जन से अधिक लोक सभा सीटों पर दबदबा था. 1991 में वाम दलों का लोकसभा के 9 सीटों पर कब्जा भी हुआ, लेकिन उसके बाद कभी भी उस तरह का प्रदर्शन वाम दलों की ओर से नहीं हुआ. 1999 में अंतिम बार वाम दलों को एक लोकसभा सीट पर जीत मिली. उसके बाद से 25 साल हो गए, लोकसभा चुनाव में खाता नहीं खुला. पढ़िये, विस्तार से वामदल के कमजोर होने के कारण.

बिहार में लेफ्ट पार्टी
बिहार में लेफ्ट पार्टी (ETV Bharat)

बिहार में वामदलों की स्थिति. (ETV Bharat.)

पटना: बिहार में 1990 के दशक की शुरुआत तक बिहार में वामपंथी दल मजबूत स्थिति में थी. ना केवल लोकसभा में बल्कि विधानसभा में भी उनके कई उम्मीदवार चुनाव जीतते थे. जब बिहार के साथ झारखंड भी था तो उस समय एक दर्जन से अधिक सीटों पर वाम दलों का दबदबा था. विधानसभा में तो विपक्ष के नेता भी बने. राजनीति के जानकारों का मानना है कि जातीय राजनीति के कारण गरीब भी जाति में बंट गये, इस वजह से लेफ्ट पार्टी हाशिये पर चली गयी.

राजद ने अपना वोट बैंक बना लियाः वर्ष 1990 के दौर में लालू प्रसाद का तेजी से उभार होता है. उन्होंने वाम दलों को कई झटका दिये. कई विधायकों को राजद में शामिल करा लिया. लेफ्ट पार्टियों का जो वोट बैंक था राजद ने उसे अपना वोट बैंक बना लिया. बिहार में वाम दलों की तीन पार्टियां हैं- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माले. एक साथ नहीं होने के कारण वाम दलों को बिहार में बड़ा झटका लगा.

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Etv Gfx. (ETV Bharat)

"हम गरीबों की बात करते थे. गरीब में सभी जाति के लोग आते हैं. लेकिन, जातीय राजनीति शुरू होने के बाद गरीब भी जाति में बंट गया. इस कारण से बिहार में हमारी पार्टी को झटका लगा. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इस बार बेगूसराय से चुनाव लड़ रही है और मजबूत स्थिति में है."- प्रमोद प्रभाकर, राष्ट्रीय परिषद सदस्य, भाकपा

तीनों वामदल एक साथ लड़ रहे हैं चुनावः 2015 विधानसभा चुनाव में तीनों दलों का महागठबंधन के साथ समझौता हुआ. लोकसभा चुनाव में भी महागठबंधन के साथ समझौता में तीनों दल पांच सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. भाकपा माले तीन सीटों पर और भाकपा, माकपा एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रही है. भाकपा का 1991 में शानदार प्रदर्शन रहा. तब पार्टी ने 8 सीट जीती थी. बेगूसराय, बलिया, नालंदा, पटना, जहानाबाद, मधुबनी, मोतिहारी और मुंगेर. भाकपा की अब तक जहानाबाद, मधुबनी, बेगूसराय और बलिया से छह बार, नालंदा और पटना से तीन बार, मोतिहारी से दो बार, जमुई, औरंगाबाद और मुंगेर से एक-एक बार जीत हुई है.

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भाकपा माले की स्थिति अब बेहतरः भाकपा माले पहले आईपीएफ के बैनर पर चुनाव लड़ता रहा है. आईपीएफ के बैनर तले ही 1989 में आरा संसदीय सीट जीत कर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी. भाकपा माले के तहत 1996 से उम्मीदवार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 1990 में पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव में भी उतरी. 2020 विधानसभा चुनाव में 12 सीटों पर पार्टी को जीत मिली. माले इस बार लोकसभा चुनाव में तीन सीटों पर मैदान में है. ये सीट हैं नालंदा, आरा और काराकाट.

"सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही वामपंथी दल कमजोर होते गए. बिहार में गरीब, मजदूर, भूमिहीन की लड़ाई वामपंथी दल लड़ते रहे हैं. लेकिन क्षेत्रीय दलों के उभरने के बाद जातीय राजनीति का जोर पकड़ा. उसके बाद पूंजीवादी व्यवस्था का असर भी काफी पड़ा. इन वजहों से वामपंथी दलों को काफी नुकसान पहुंचा."- डॉ विद्यार्थी विकास, विशेषज्ञ, एएन सिन्हा, इंस्टीट्यूट

लोकसभा चुनाव में मिली आखिरी जीतः माकपा यानी कि CPIM ने बिहार में 1967 में पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा. लोकसभा चुनाव 1989 और 1991 में भी पार्टी को जीत मिल चुकी थी. भागलपुर में 1999 में लोकसभा चुनाव में माकपा उम्मीदवार सुबोध राय की जीत हुई थी. यह जीत केवल माकपा की नहीं बल्कि वाम पंथी दलों के उम्मीदवार के रूप में अंतिम जीत थी. माकपा का भागलपुर, नवादा, समस्तीपुर, सारण, मधुबनी में प्रभाव रहा. नवादा से दो बार, भागलपुर से एक बार माकपा उम्मीदवार चुनाव जीते. प्रेम प्रदीप दो बार नवादा से सांसद बने. 2020 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने चार सीटों पर जीत दर्ज की.

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बिहार का लेनिनग्रादः भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और राज्य सचिव प्रमोद प्रभाकर का कहना है बिहार में एक वक्त था जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी हर सीट पर मुकाबले में रहती थी. जहानाबाद, बेगूसराय, मधुबनी, नालंदा, पटना के साथ पूरा मगध, मोतिहारी, शाहाबाद, में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव था. बेगूसराय को बिहार का लेनिनग्राद कहा जाता था. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1970 से 75 के दशक में कांग्रेस के साथ भी समझौता किया. 2014 में जदयू के साथ मिलकर भी लोकसभा का चुनाव लड़ा. लेकिन, उसका बहुत ज्यादा फायदा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को नहीं मिला.

अभी हैं 15 विधायकः बिहार में 25 सालों के सूखा समाप्त होने की उम्मीद इस बार वामपंथी के तीनों दलों को है. 2020 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का साथ मिलने के कारण वामपंथी दलों को विधानसभा चुनाव में 16 सीटों पर जीत मिली थी. एक विधायक की सदस्यता कोर्ट से सजा मिलने की कारण समाप्त हो गई. अभी 15 विधायक हैं. इससे उत्साहित वाम दल लोकसभा चुनाव में भी जीत की उम्मीद लगाए हुए हैं.

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