1 लाख सालाना आएंगे खटाखट, लेकिन किसकी लुटिया डूबेगी फटाफट, चुनावी वादों का राजनीति पर असर - lok Sabha Election 2024

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 17, 2024, 7:26 PM IST

Updated : Apr 17, 2024, 8:09 PM IST

Impact of election promises on country politics

देश इन दिनों चुनावी रंग में रंगा हुआ है. पूरे देश में एक तरफ केंद्र सरकार अपने कामों का बखान कर रही है.तो दूसरी तरफ विपक्ष केंद्र को हर मोर्चे पर फेल बता रहा है. पार्टियां अपनी नीतियों और वादों के सहारे देश की जनता के मन को टटोल रहीं हैं. राजनीतिक दलों को पता है कि चाहे वो कुछ भी कर लें लेकिन आखिरी फैसला तो जनता को ही करना है.क्योंकि जनता की उंगली जिसके लिए दबेगी,उसका रुतबा उतना ही आने वाले समय में बढ़ेगा.Lok Sabha Election 2024

चुनावी वादों का राजनीति पर असर

रायपुर : चुनावी रणभूमि में राजनीतिक दल अपने-अपने तरीकों से जनता का मन जीतने में लगे हैं.जनता को अपने पाले में करना का सबसे पुराना और असरदार तरीका आज भी राजनीतिक दल अपना रहे हैं.ये तरीका है चुनाव से पहले किए जाने वाले वादे.जिनके सहारे देश में कई बार सरकार आई और फिर बदली भी.जनता को जिस वादे पर भरोसा हुआ,वो उस पार्टी के साथ हो ली.मौजूदा समय की बात करें तो कांग्रेस का एक वादा पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. ये वादा है देश की गरीब महिलाओं को सालाना 1 लाख की राशि देकर गरीबी खत्म करना. जब से ये वादा जनता के बीच में आया है,तब से इसे लेकर हर किसी की अपनी-अपनी राय है.आज हम जानेंगे कि कांग्रेस का ये वादा कैसे पूरा होगा और इससे देश को क्या मिलने वाला है.

1 लाख से गरीबी दूर करने का दावा : लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र जारी किया.इस घोषणा पत्र में 5 गारंटी के साथ 25 वादों को जनता के बीच रखा गया.इन गारंटियों में जिस गारंटी की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है वो है गरीब महिलाओं को हर साल 1 लाख रुपए देने की. महाराष्ट्र के सावित्री बाई फूले हॉस्टल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जब ये घोषणा की तो महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान देखते ही बनीं. इस घोषणा में राहुल गांधी ने दावा किया कि हिंदुस्तान में कांग्रेस की सरकार आने पर हर गरीब महिला जो खेत में काम कर रही हो, मजदूरी कर रही हो, छोटा जॉब कर रही हो या दूसरे व्यवसाय से जुड़ी हो,उसे हर साल बैंक अकाउंट में एक लाख रुपए सालाना मिलेंगे. इस घोषणा को कांग्रेस ने महालक्ष्मी गारंटी नाम दिया है.

देश की जनता के लिए कांग्रेस रहेगी समर्पित : इस घोषणा के बाद कांग्रेस नेताओं का दावा है कि पार्टी ने सोच समझकर चुनाव के लिए अपना ब्लू प्रिंट तैयार किया है. इस योजना के लागू होने के बाद एक ही झटके में देश से गरीबी गायब हो जाएगी. छत्तीसगढ़ पीसीसी चीफ दीपक बैज के मुताबिक देश में जब सरकार बनेगी तब तय होगा कि किस प्रदेश में किस योजना की कितनी राशि जाएगी. सरकार बनेगी बजट पेश होगा, तब आंकलन किया जाएगा. लेकिन अभी हम इन वादों के साथ जनता के बीच जा रहे हैं.

''हमारा पहला मकसद है हमारे वादे हमारे इरादे जनता तक पहुंचे.लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें लाए. जिससे कांग्रेस सरकार बने. सरकार बनने के बाद देश में नया बजट आएगा,युवा किसान मजदूर और देश की माता बहनों के लिए हमारी सरकार समर्पित रहेगी.'' - दीपक बैज, पीसीसी चीफ

बीजेपी ने घोषणा पर ली चुटकी : वहीं कांग्रेस की इस घोषणा को लेकर बीजेपी का अपना दावा है.बीजेपी के मुताबिक जिन घोषणाओं को कांग्रेस ने किया है,वो कैसे पूरी होंगी क्योंकि इन्हें पूरा करने में जितनी राशि की जरुरत होगी उतना देश का बजट नहीं है. वहीं कांग्रेस की घोषणा को लेकर स्कूल शिक्षा मंत्री और रायपुर लोकसभा से बीजेपी प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि ना नौ मन तेल होगा, ना ही राधा नाचेगी.

''छत्तीसगढ़ में बीजेपी और दिल्ली में मोदी की सरकार है, तो वो कहां से देंगे. वे लोग जनता को गुमराह कर रहे हैं. यदि 1 लाख साल यदि 50 करोड़ महिलाओं को देंगे, तो 50 लाख करोड़ चाहिए. इतना देश का बजट ही नहीं है. यदि छत्तीसगढ़ में इस प्रक्रिया को लागू किया जाता है तो छत्तीसगढ़ में 70 लाख करोड़ रुपए का बजट चाहिए होगा.'' - बृजमोहन अग्रवाल, रायपुर लोकसभा प्रत्याशी

बीजेपी का मानना है कि कांग्रेस लोगों को गुमराह करके अपनी राजनीति चमकाना चाह रही है. जिस वादे को पूरा नहीं किया जा सकता है,उसे जनता के बीच लाकर कांग्रेस को गुमराह कर रही है.वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की सहयोगियों पार्टियों ने भी इस घोषणा को सिर्फ कांग्रेस पार्टी का बताया है. वहीं इस घोषणा को लेकर अर्थशास्त्री ने भी अपनी राय दी है.अर्थशास्त्री के मुताबिक मुफ्त की घोषणाएं देश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है.

देश की अर्थव्यवस्था में कितने बजट का योगदान : छत्तीसगढ़ कॉलेज अर्थशास्त्र के प्रोफेसर तपेश गुप्ता के मुताबिक किसी भी देश के लिए अर्थव्यवस्था किसी भी दशा में 40% से अधिक समाज कल्याण की नहीं होनी चाहिए. बाकी जो 60 प्रतिशत जो बचता है ,उसमें 8 से 12% तक डिफेंस सर्विसेज में जाना चाहिए. 20% तक उसका पूंजी निर्माण पर होना चाहिए. इसके बाद 8 से 10 प्रतिशत कृषि पर , इसके बाद उद्योग व्यापार पर और भुगतान संतुलन बनाए रखने के लिए विनिमय किया जाना चाहिए.

फ्री का पैसा,अपराध को देगा बढ़ावा : सामाजिक सुरक्षा में लोगों को पैसा बांटना, अनाज, गैस कनेक्शन या मुफ्त में कोई अन्य चीज देना, इससे विकास कार्य नहीं होगा.मुफ्त की योजनाओं को बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम यदि हर व्यक्ति को काम दें तो उससे ज्यादा विकास होगा. यदि हर आदमी को पेट भर खाना दे और उसे कहे कि जाकर सो जाए.लेकिन वो आदमी सोएगा नहीं, बल्कि धन का इस्तेमाल नशे समेत आपराधिक चीजों में होगा.

'' निर्वाचन आयोग को ऐसी घोषणाओं पर जो अर्थव्यवस्था को चौपट करने वाली हो, जो देश के सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेश को दूषित करती हो, उस पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. घोषणापत्र से प्रलोभन का दौर खत्म होना चाहिए.इससे देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी. '' तपेश गुप्ता, प्रोफेसर अर्थशास्त्र


अव्यवहारिक लगती है घोषणा : वहीं इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा का कहना है कि कांग्रेस ने एक लाख सालाना देने की घोषणा की है. यदि साल 2011 की जनगणना को देखें तो पता चलेगा कि 25 से 30 करोड़ महिलाएं बीपीएल श्रेणी में आती है.देश का कुल बजट 45 लाख करोड़ का है.यदि कांग्रेस की सरकार आई तो 30 लाख करोड़ देश के बजट से महिलाओं के लिए सुरक्षित रखना पड़ेगा.इसके अलावा अन्य घोषणाओं को भी पूरा करना है.ये कैसे संभव हो पाएगा,इस दिशा में कांग्रेस ने किसी भी तरह का ब्लू प्रिंट जारी नहीं किया है.

'कांग्रेस 280 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.घोषणा पत्र कांग्रेस का है ना कि इंडिया गठबंधन का.तो ये मान भी लिया जाए कि कांग्रेस जीतकर आती है तो क्या बाकी के दल इस पर रजामंदी देंगे.यदि हां तो बाकी के दलों ने अपने घोषणापत्र में इसे शामिल क्यों नहीं किया.फ्रीबीज और फ्री सुविधा दोनों में अंतर है.आप शिक्षा स्वास्थ्य, सड़क, बिजली पानी दीजिए. लेकिन इस तरह की फ्री की घोषणाएं भविष्य के लिए घातक हैं.' उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

लोकतंत्र में राजनीतिक दल जनता की सेवा करने का संकल्प लेते हैं. हर दल का मकसद होना चाहिए कि आने वाली पीढ़ी इतनी योग्य बने कि देश का भविष्य उज्जवल हो. सरकारी और निजी संस्थानों में लोग कड़ी मेहनत करके दो वक्त की रोटी का इंतजाम करते हैं.इसके बाद जो टैक्स भरा जाता है,उससे ही देश की अर्थव्यवस्था का चक्का घूमता है. ऐसे में हाथ पर हाथ धरे बिना काम के लोगों को सरकारी खजाना खाली करके आर्थिक लाभ देना कितना सही है.जरुरतमंद की मदद होनी चाहिए,लेकिन उसके लिए भी एक सीमा निर्धारित करनी पड़ेगी. बुनियादी सुविधा जनता तक पहुंचाकर यदि शिक्षा और समाज कल्याण की ओर राजनीतिक दल कदम उठाए तो इससे भविष्य की सुनहरी तस्वीर गढ़ी जा सकती है.लेकिन इस तरह से देश को आर्थिक नुकसान पहुंचाकर सिर्फ सत्ता हासिल करना ही ध्येय बन जाए,तो इससे भले ही राजनीतिक दल की नाव तैरने लगे,लेकिन जनता की लुटिया डूबना तय है.

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Last Updated :Apr 17, 2024, 8:09 PM IST
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