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महिला दिवस विशेष; पति-पत्नी दोनों को कैंसर, जिंदगी की जंग लवीना ने लड़कर जीता, हाथों के हुनर से लिख डाली सफलता की कहानी

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 8, 2024, 4:38 PM IST

Meet Lavina who won battle with cancer
मिलिए लवीना से जिन्होंने कैंसर से जीती जंग

मेरठ की लवीना जैन और उनके पति को एक साथ कैंसर हो गया. लेकिन लवीना ने हार नहीं मानी, बल्कि अपनी हिम्मत और हौसले से सफलता की इबारत लिख डाली. आज वह न सिर्फ खुद अपने पैरों पर खड़ी हैं, बल्कि कई महिलाओं को भी रोजगार दे रही हैं. पढ़िए लवीना जैन की प्रेरणा देने वाली कहानी.

महिला दिवस विशेष

मेरठ: रोजमर्रा की जिंदगी में छोटी मोटी परेशानियों से उम्मीद हारने वालों के लिए मेरठ की लवीना जैन की जिंदगी किसी प्रेरणा से कम नहीं है. लवीना ने ना सिर्फ कैंसर की लड़ाई जीती बल्कि पति को कैंसर में सराहा दिया. शहर के गंगानगर की रहने वाली लवीना जैन और उनके पति दोनों को एक साथ कैंसर हो गया. लेकिन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और अपने हौसले से सफलता की इबारत लिख डाली. आज लगभग 70 तरह के अचार लवीना बनाती हैं. साथ ही कई महिलाओं को रोजगार देने का भी कार्य कर रही हैं. महिला दिवस पर मिलिए लवीना जैन से और उन्हीं की जुबानी सुनिए जिंदगी की जंग जीतने की कहानी.

मेरठ के गंगानगर में रहने वाली लवीना जैन एक ऐसी आयरन लेडी हैं जिन्होंने जीवन में बाधाओं के बावजूद हार नहीं मानी. लवीना और उनके पति कैंसर सर्वाईवर हैं, लेकिन उन्होंने अपने बुलंद इरादों को कभी कमजोर नहीं होने दिया. लवीना आज अनेकों अनेक लोगों के लिए प्रेरणाश्रोत बनी हुई हैं. उन्होंने ना सिर्फ अपनी बाधाओं से पार पाया बल्कि सफलता की नई कहानी भी गढ़ी. आज कई लोगों को रोजगार भी दे रही हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान लवीना कहती हैं कि आवश्यकता अविष्कार की जननी है, ऐसा ही कुछ हुआ 2010 में जब उन्हें पता चला कि उन्हें और उनके पति को कैंसर था, वह बताती हैं कि हम दोनों के टेस्ट हुए, जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि दोनों को कैंसर था उन्हें खुद ब्रेस्ट और पति दीपक को माउथ कैंसर था. जिसके बाद पति पत्नी का ऑपरेशन हुआ. घर में इलाज के बाद पैसा नहीं बचा. आर्थिक तौर पर तमाम परेशानियां खड़ी हो गईं.

ऑपरेशन के बाद समस्या थी कि परिवार कैसे चलेगा. बच्चों की परवरिश कैसे होगी. यही सब सोचकर पति पत्नी टेंशन में रहते थे. फिर उन्हें अपना पुराना हुनर याद आया जो उन्होंने स्कूली शिक्षा के दौरान अचार और शरबत बनाना सीखा था. जो पहले शौक के तौर पर करती थीं. उसी शौक को व्यवसाय में उतारने का फैसला किया और अचार बनाना शुरु किया. खुद फल और सब्जी लेकर आते थे उसके बाद फिर अचार बनाना शुरु किया.

लवीना बताती हैं कि 1500 रूपये से अचार बनाने का काम शुरु किया था. शुरुआत के दो तीन सालों में सफलता की रफ्तार धीमी रही. शुरुआत किटी पार्टी में शरबत बेचने से शुरु किया. कुछ लोग लेते थे कुछ नहीं. किटी पार्टी में स्टॉल लगाकर शर्बत बेचकर कुछ पैसे जुगार लेते थे. धीरे-धीरे कुछ और वैराइटी भी बढाईं. लोगों को अचार और शरबत पसंद आने लगा.

आज लगभग 70 तरह के अचार बना रहे हैं. अलग अलग शहरों से अब डिमांड आ रही है. वह बताती हैं कि उनका बेटा जब 12वीं क्लास में आया तो वह अचार के सैंपल लेकर जाता और धीरे धीरे सिलसिला चलता रहा. आज लोग ऑनलाइन भी अचार मंगाते हैं. इसके अलावा केटरर, होटल में घरों के लिए ऑर्डर मिलते हैं. इसके साथ ही दुकानों, शोरूम पर सप्लाई देती हूं और फूड फेयर्स, हस्तशिल्प मेलों में स्टॉल लगाकर अपने उत्पाद प्रदर्शित करती हैं.

लवीना ने बताया कि यह जान लीजिएगा कि करने से सब होगा आज नहीं तो कल होगा. इसी सोच के साथ मेहनत जारी रही. आज यूपी ही नहीं बल्कि देशभर में अचार, बड़ी, पापड़, तैयार फूड, शरबत और सूखे फलों की सप्लाई दे रहे हैं. जो लोग जान गये हैं. वह कहीं से भी संपर्क करके ऑर्डर देते हैं.

लवीना के बेटे ने बताया कि उसने अपने माता पिता के संघर्ष को देखा है. उन्होंने खराब से खराब दौर में न सिर्फ एक दूसरे के साथ दिया बल्कि परिवार की जिम्मेदारी भी निभाई.
काम करने वाली महिलाएं बताती हैं कि उनके परिवार के खर्चा भी वह लोग लवीना दीदी के यहां काम करके चला रही हैं.

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