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भगवान विष्णु ने इसी जगह लिया था नरसिंह अवतार! खास है पूर्णिया में होलिका दहन की परंपरा - Holika Dahan in Purnea

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 25, 2024, 1:33 PM IST

Holi 2024: ऐसा बताया जाता है कि पूर्णिया के धरहरा में भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और खंभा फाड़कर प्रकट हुए. इसी जगह पर उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया, उसके बाद से ही होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई. यहां प्रतिवर्ष सरकारी स्तर पर धूमधाम से होलिकाल दहन मनाया जाता है. आगे पढ़ें पूरी खबर.

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पूर्णिया में होलिका दहन

पूर्णिया: मान्यताओं के अनुसार होली की शुरुआत पूर्णिया के बनमनखी अनुमंडल के धरहरा से हुई थी. ऐसी मान्यता है कि राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र विष्णुभक्त प्रह्लाद को मारने का कई बार प्रयास किया. राजा की बहन होलिका को इस काम के लिए लगाया गया, जिसे आग में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था. होलिका ने भक्त प्रह्लाद को अपनी गोदी में बैठा कर अग्नि में प्रवेश किया जिसमें वह धू-धूकर जल गयी और भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हो सका.

क्यों है ये जगह खास: मान्यताओं के अनुसार होली की शुरुआत पूर्णिया के बनमनखी अनुमंडल के धरहरा से हुई थी. ऐसी मान्यता है कि इसके पश्चात भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और खंभा फाड़कर प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का वध किया था. उसके बाद से ही देश में होलिका दहन की परंपरा आरंभ हुई थी. यहां प्रतिवर्ष सरकारी स्तर पर धूमधाम से होलिका दहन कार्यक्रम का आयोजन होता रहा है. धरहरा की इस धरती पर अभी भी कई ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं जो इस बाद की पुष्टि करते हैं कि नरसिंह अवतार यहीं पर हुआ था और इसी जगह से होली की शुरुआत हुई थी.

कहां है ये खास स्थल: जिला मुख्यालय से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर एनएच 107 के किनारे बनमनखी अनुमंडल के धरहरा स्थित सिकलीगढ़ में नरसिंह अवतार स्थल मौजूद है. यहां पर एक निश्चित कोण पर झुका हुआ खंभा है. स्तंभ का अधिकांश भाग जमीन के अंदर घुसा हुआ है और इसकी लंबाई तकरीबन 1411 इंच है. मिली जानकारी अनुसार प्रह्लाद स्तंभ के पास की गयी खुदाई में पुरातात्विक महत्व के सिक्के प्राप्त हुए थे. इसके बाद से ही स्थानीय प्रशासन ने इसके आस-पास खुदाई पर रोक लगा रखी है. हालांकि उसके बाद से यहां भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है.

अंग्रेज भी नहीं हिला पाए इसे: धरहरा के नरसिंह अवतार स्थली की जानकारी भले ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास नहीं थी लेकिन इसका उल्लेख ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाले क्विक पेजेस द फ्रेंडशिप इन इनसाइक्लोपीडिया में भी किया गया है. वर्ष-1911 में प्रकाशित गजेटियर में ओ मेली ने भी इसकी चर्चा करते हुए इसे मणिखंभ कहा है जानकारों की मानें तो अंग्रेजों ने अपने समय में इस खंभे को हाथियों से खिंचवाने की कोशिश की थी लेकिन यह खंभा जमीन से नहीं निकल पाया और एक निश्चित कोण पर झुक गया.

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