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लोकसभा चुनाव 2024: चतरा लोकसभा सीट का सफरनामा, यहां अब तक कोई भी स्थानीय नहीं बन पाया सांसद

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 21, 2024, 10:50 PM IST

चतरा संयुक्त बिहार में 1957 में लोकसभा क्षेत्र बना. इस लोकसभा क्षेत्र की सबसे खास बात ये है कि यह जब से अस्तित्व में आई तब से अब तक यहां से कोई भी स्थानीय नेता को संसद नहीं पहुंच पाया है. इस सीट पर हमेशा ही बाहरी नेता ही सांसद चुने गए हैं. 1957 से 2019 तक यहां कौन सासंद रहा जानिए इस रिपोर्ट में.

history of chatra loksabha seat
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रांची: चतरा जिला संयुक्त बिहार में 1957 में पहली बार लोकसभा क्षेत्र बना. 1957 में चतरा लोकसभा क्षेत्र से छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी की उम्मीदवार विजया राजे विजयी हुए थे. इन्हें कुल 66 फीसदी वोट मिले थे, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चपलेन्दु भट्टाचार्य को 34 फीसदी वोट प्राप्त हुए. 1962 में हुए चुनाव में चतरा जिले में दो लोकसभा क्षेत्र थे. पहला छतरपुर लोकसभा सीट जो उड़ीसा के हिस्से को भी जोड़ती थी. यहां से शर्मा अनंत त्रिपाठी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विजयी हुए थे. जिन्हें कुल 58 फीसदी को प्राप्त हुए थे.

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1967 के चुनाव

1967 के चुनाव में भी चतरा लोकसभा और छतरपुर लोकसभा के लिए चुनाव हुए थे, चतरा लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार विजया राजे विजयी हुए थे, जिन्हें 32.9 फीसदी वोट मिले थे. जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एसपी भवानी को 22 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 1962 में छतरपुर चतरा के लिए हुए लोकसभा चुनाव में जेआर रचाकोन्सा ने जीत दर्ज की थी वे कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार थे, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को कुल 50.5 फीसदी थी. जबकि स्वतंत्र पार्टी को 30.8 और निर्दलीय उम्मीदवार को 7.30 रिपोर्ट प्राप्त हुए थे

1971 में कांग्रेस ने जीती सीट

1971 की लोकसभा चुनाव में चतरा लोकसभा सीट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जीत दर्ज की जिस पर शंकर दयाल सिंह को 42.5 फ़ीसदी वोट मिले थे, जबकि जनता पार्टी के विजय राजे को 35.8 फ़ीसदी रिपोर्ट प्राप्त हुए थे. वहीं 1971 में छतरपुर के लिए हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ही विजयी हुई थी. इसमें जगन्नाथ राव को 58 फीसदी वोट मिले थे जबकि उत्कल को 24.8 फ़ीसदी मत प्राप्त हुए थे

1977 के चुनाव में भारतीय लोकदल में हासिल की जीत

1977 में चतरा लोकसभा अकेली की सीट बन गई और यहां से 1977 के लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल ने जीत दर्ज की. सुखदेव प्रसाद वर्मा को 73.2 फ़ीसदी वोट मिले थे जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शंकर दयाल सिंह को 21.7 फीसदी रिपोर्ट प्राप्त हुए थे.

1980 में फिर जीती कांग्रेस

1980 के लोकसभा चुनाव में यहां से फिर कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की. हालांकि इस बार कांग्रेस पार्टी ने अपने उम्मीदवार को बदला और रंजीत सिंह को टिकट दिया था. कांग्रेस पार्टी को 1980 के लोकसभा चुनाव में कुल 38.2 फ़ीसदी वोट मिले थे, जबकि जनता पार्टी के सुखदेव प्रसाद वर्मा को 22.8 और जनता पार्टी सेकुलर को 16.9 फीसदी रिपोर्ट प्राप्त हुए थे.

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1984 में कांग्रेस पार्टी ने बचाई अपनी सीट

1984 के लोकसभा चुनाव में यहां से फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जीती. लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस बार भी अपने उम्मीदवार का बदलाव करते हुए योगेश्वर प्रसाद योगेश को अपना उम्मीदवार बनाया था. इन्हें 55.02 फीसदी रिपोर्ट मिले थे. इस बार इंडियन कांग्रेस से सुखदेव प्रसाद वर्मा ने चुनाव लड़ा था और उन्हें 14.2 फीसदी वोट मिले थे. इंदर सिंह नामधारी भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़े थे उन्हें 14.1 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे.

1989 में जनता दल ने सीट पर किया कब्जा

1989 की लोकसभा चुनाव में चतरा लोकसभा सीट पर जनता दल का कब्जा हुआ. जनता दल के उम्मीदवार उपेंद्र नाथ वर्मा को 48.6 फिसदी वोट मिले. जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की योगेश प्रसाद योगेश को 31.9 फीसदी वोट प्राप्त हुए.

1991 में जनता दल ने फिर हासिल की जीत

1991 की लोकसभा चुनाव में भी यहां जनता दल ने जीत हासिल की. उनके उम्मीदवार उपेंद्र नाथ वर्मा को 34.7 फीसदी वोट मिले. हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने अपने उम्मीदवार का बदलाव किया था और धीरेंद्र अग्रवाल को अपना उम्मीदवार बनाया था. भारतीय जनता पार्टी को 25.3 फीसदी वोट मिले थे.

1996 में पहली बार जीती बीजेपी

1996 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने चतरा लोकसभा सीट पर पहली बार जीत दर्ज की. यहां से धीरेंद्र अग्रवाल विजयी हुए. भारतीय जनता पार्टी को कुल 42 फ़ीसदी मत प्राप्त हुए थे, जबकि जनता दल को 31.5 फ़ीसदी वोट मिले थे.

1998 में फिर जीती बीजेपी

1998 की लोकसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी फिर से जीत दर्ज की. यहां से धीरेंद्र अग्रवाल को 43.9 फीसदी जबकि राष्ट्रीय जनता दल के नागमणि को 37.4 फीसदी वोट मिले.

1999 में राजद ने मारी बाजी

1999 के लिए हुए लोकसभा चुनाव में यहां से राष्ट्रीय जनता दल ने बाजी मारी और उनके उम्मीदवार नागमणि ने चतरा लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की. राष्ट्रीय जनता दल को कुली 51.6 फीसदी वोट मिले थे, जबकि भारतीय जनता पार्टी को 38.6 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे.

झारखंड बंटवारे के बाद हुआ बदलाव

झारखंड बंटवारे के बाद 2004 में बड़ा राजनीतिक बदलाव हुआ. धीरेंद्र अग्रवाल ने भारतीय जनता पार्टी छोड़कर के राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम लिया, तो वहीं राष्ट्रीय जनता दल छोड़कर कर नागमणि भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए.

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2004 में राजद ने जीती सीट

2004 के हुए लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल चतरा सीट पर कब्जा किया और धीरेंद्र अग्रवाल यहां से विजयी हुए. धीरेंद्र अग्रवाल को कुल 27.9 फ़ीसदी वोट मिले थे जबकि जनता दल यूनाइटेड के इंदर सिंह नामधारी को 23.6 फीसदी बोर्ड प्राप्त हुए थे. वहीं भारतीय जनता पार्टी के नागमणि को 22.9 फीसदी रिपोर्ट 2004 के लोकसभा चुनाव में मिले थे.

2009 में इंदर सिंह नामधारी हुए विजयी

2009 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े इंदर सिंह नामधारी यहां से विजयी हुए. इंदर सिंह नामधारी को कुल 22.9 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे. जबकि धीरज प्रसाद साहू जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से चुनाव लड़ा था इन्हें कुल 19.4 फीसदी वोट मिले. नागमणि ने फिर एक बार पार्टी बदलते हुए राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें कुल 14.5 फीसदी वोट ही मिले.

2014 में मोदी लहर का दिखा असर

2014 के लोकसभा चुनाव में चतरा लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के सुनील कुमार सिंह ने जीत दर्ज की. 2014 में भारतीय जनता पार्टी को कुल 41.5 फ़ीसदी वोट मिले थे, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 16.5 फ़ीसदी वोट प्राप्त हुए. झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक को 14.6 फ़ीसदी मत प्राप्त हुए थे.

2019 में फिर दिखा मोदी मैजिक

2019 के लोकसभा चुनाव में फिर से भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. भाजपा के सुनील कुमार सिंह ने 57 फ़ीसदी मत हासिल किए. वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मनोज कुमार यादव को 16.02 फीसदी वोट मिले. राष्ट्रीय जनता दल के सुभाष प्रसाद यादव को 9 फीसदी वोट मिले. राष्ट्रीय जनता दल में सुभाष प्रसाद यादव का काफी तब दबा था. सुभाष प्रसाद यादव लालू यादव के करीबी रिश्तेदार थे, 2024 के लिए एक बार फिर चुनावी तैयारी शुरू हो गई है. अब देखना है कि इस बार छात्र की जनता किसके सिर पर जीत का सेहरा बांधती है.

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