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जोशीमठ भू-धंसाव मामले को लेकर HC में सुनवाई, दोनों पक्षों की सुनी गई दलीलें, अगली सुनवाई 10 जून को होगी

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 22, 2024, 4:29 PM IST

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Joshimath land subsidence case नैनीताल हाईकोर्ट में आज जोशीमठ भू-धंसाव मामले को लेकर मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमुर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने सुनवाई की. दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 जून की तारीख निर्धारित की गई है.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जोशीमठ में हो रहे लगातार भू-धंसाव को लेकर अल्मोड़ा निवासी पीसी तिवारी की जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमुर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने की है. आज याचिकाकर्ता ने कोर्ट को अवगत कराया कि कोर्ट ने पूर्व में कहा था कि एनटीपीसी जोशीमठ में ब्लास्टिंग व टनल निर्माण की समस्या को लेकर एनडीएमए के यहां अपना पक्ष रखे और एनडीएमए उस समस्या पर सुनवाई करके अपना सुझाव राज्य सरकार को दे, लेकिन अभी तक उस पर सुनवाई पूरी नहीं हुई और न ही कोई रिपोर्ट एनडीएमए ने राज्य सरकार को दी, जबकि यह अति संवेदनशील मामला है.

10 जून को मामले की होगी अगली सुनवाई: जोशीमठ में ब्लास्टिंग करने की वजह से करीब 600 घरों में दरारें पड़ चुकी हैं. पूर्व में एनटीपीसी की तरफ से प्रार्थनापत्र देकर यह भी कहा गया था कि उन्हें जोशीमठ में निर्माण कार्य और ब्लास्ट करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि उनकी परियोजना जोशीमठ से 15 किलोमीटर दूर है. इसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा था कि इनकी परियोजना 1.5 किलोमीटर दूरी पर है, इसलिए इन्हें ब्लास्ट की अनुमति नहीं दी जा सकती. जिस पर कोर्ट ने दोनों से एनडीएमए के पास अपना पक्ष रखने को कहा था. जिसमे अभी तक कोई निर्णय नहीं आया है. दोनों पक्षों को सुनने और मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने अगली सुनवाई 10 जून की तारीख निर्धारित की है.

2021 में दायर की गई था याचिका: मामले के अनुसार अल्मोड़ा निवासी उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी और चिपको आंदोलन के सदस्य पीसी तिवारी ने 2021 में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार के पास आपदा से निपटने की सभी तैयारियां अधूरी हैं और सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है, जो आपदा आने से पहले उसकी सूचना दें.

वहीं उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र नहीं लगे हैं और उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट अभी तक काम नहीं कर रहे हैं. जिस वजह से बादल फटने जैसी घटनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती है. हाइड्रो प्रोजेक्ट टीम के कर्मचारियों के सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है. कर्मचारीयों को केवल सुरक्षा के नाम पर हेलमेट दिए गए हैं और कर्मचारियों को आपदा से लड़ने के लिए कोई ट्रेनिंग तक नहीं दी गई और ना ही कर्मचारियों के पास कोई उपकरण मौजूद है.

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