ETV Bharat / state

2019 में कांग्रेस की जिस सीट से हारे थे सिंधिया, अब बीजेपी ने वहीं कमल खिलाने उतारा, जानें क्या होगा असर?

author img

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 3, 2024, 9:38 AM IST

Jyotiraditya scindia guna seat analysis
ज्योतिरादित्य सिंधिया

Jyotiraditya scindia guna seat analysis : राजनीति में कब क्या हो जाए कोई अंदाजा नहीं कह सकता. किसने सोचा था कि लंबे समय तक कांग्रेस के सिपहसालार रहे सिंधिया अपनी विरासत यानी गुना शिवपुरी लोकसभा सीट पर चुनाव तो लड़ेंगे लेकिन चुनाव चिन्ह कमल होगा.

गुना. साल 2019 में जब लोकसभा के चुनाव हुए तो गुना सीट पर सांसद रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) अपनी ही सीट नहीं बचा पाए. खुद अपने ही समर्थक के आगे उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. माना जाता है कि उनके अपनों ने ही उन्हें हराने का काम किया था, ये वो दौर था जिसके बाद सिंधिया का वर्चस्व ना सिर्फ कांग्रेस बल्कि उनके अपने लोकसभा क्षेत्र में भी कम हुआ. 2018 में एमपी में कांग्रेस की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाने वाले सिंधिया से उन्हीं की पार्टी ने किनारा करना शुरू कर दिया था.

बीजेपी ने कमल खिलाने उतारा

इसके बाद एमपी में सरकार गिराने से दल-बदल और फिर सिंधिया के सियासी वर्चस्व की कहानी किसी से छिपी नहीं है. एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व ने सिंधिया को राज्यसभा सदस्य बनाने के बाद अब गुना लोकसभा सीट (Guna Loksabha seat) पर प्रत्याशी घोषित कर दिया है. ऐसे में सीट भी वही होगी, वही वोटर होगा लेकिन अब बदले हुए दल यानी बीजेपी में आकर 'महाराज' जनता का दिल जीत पाएंगे? आइए समझते हैं.

2019 में अपने ही समर्थक से हारे थे सिंधिया

ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए एक बार फिर अग्नि परीक्षा का समय है जिसकी बड़ी वजह है कि 2019 की वही लोकसभा सीट जहां से वे अपने एक छोटे से समर्थक से चुनाव हार गए थे. इस हार के बाद सिंधिया ने गुना शिवपुरी क्षेत्र से एक दम से दूरी बना ली थी, ऐसे में अब उसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना उनके लिए कितना ठीक रहेगा और क्या वे जनता के दिल में पहले की तरह जगह बना पाएंगे? इस सवाल को लेकर वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि 2019 के चुनाव से वर्तमान हालातों की तुलना ठीक नहीं है, क्योंकि वो चुनाव मोदी लहर का चुनाव था.

सिंधिया परिवार से है गुना की जनता जुड़ाव

वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं, ' गुना लोकसभा सीट सिंधिया परिवार से प्रभाव वाली सीट रही है. इस क्षेत्र की जनता का सिंधिया परिवार से भावनात्मक नाता है. ऐसे में अगर केपी यादव को अपवाद के रूप में देखा जाए तो अब तक इस सीट पर सिंधिया राज घराने का ही दबदबा रहा है. फिर चाहे वह राजमाता सिंधिया रहीं, माधवराव सिंधिया हों, महेंद्र सिंह या ज्योतिरादित्य सिंधिया. ऐसे में अब जब एक बार फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना लोकसभा सीट पर चुनाव मैदान में उतरेंगे तो उनके लिए ये चुनाव आसान होगा क्योंकि एक तो वे इस क्षेत्र की जनता से जुड़े हैं. दूसरा भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं.

Read more -

छिंदवाड़ा सीट को बीजेपी ने किया होल्ड, राजनीतिक गलियारों में फिर शुरू हुई नकुलनाथ की चर्चा

सिंधिया से पहले ही नेताजी ने कर दिया लोकार्पण, बीजेपी में शुरू हुई 'इंटरनल पॉलिटिक्स'

बिगड़ेगा जातिगत समीकरण?

हालांकि, अगर इस क्षेत्र में जातिगत समीकरणों के आधार को देखा जाए तो केपी सिंह का टिकट कटने से रघुवंशी और यादव समाज में नाराजगी पैदा हो सकती है और यह कुछ हद तक चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं. ऐसा हुआ यो तो सिंधिया के लिए थोड़ी मुश्किलें हो सकती हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने से पहले ही केपी यादव का दबदबा पार्टी में कम हो गया था. वहीं सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद वे अपनी रीजनीतिक जमीन बचाने में लग गए. केपी यादव सिंधिया के खिलाफ वर्चस्व की लड़ाई भी लड़ते दिखे, हाल ही में पासपोर्ट कार्यालय के उद्घाटन का मामला भी केपी यादव की बौखलाहट को दर्शाता है. फिलहाल सिंधिया को गुना से टिकट मिलने पर केपी यादव का पॉलिटिकल करियर हाशिये पर नज़र आ रहा है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.