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ऑर्गन डोनेशन की जागरूकता के लिए सरकार बनाएगी रोडमैप, मांग के अनुपात में नहीं हो रहा है अंगदान

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 15, 2024, 7:25 PM IST

workshop on organ donation
अंगदान और प्रत्यारोपण पर वर्कशॉप

राजस्थान अंगदान के क्षेत्र में नए कीर्तिमान बना रहा है. इस दिशा में सरकार लोगों को जागरूक करने के मकसद से अब रोडमैप भी तैयार करने वाली है. जयपुर में चिकित्सा महकमे की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह ने इस सिलसिले में जानकारी दी. वे गुरुवार को राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में राज्य स्तरीय अंगदान और प्रत्यारोपण पर एक वर्कशॉप को संबोधित कर रही थी.

जयपुर. अंगदान की शपथ में देश में अव्वल रहने वाले राजस्थान को अब अंगदान के क्षेत्र में भी अग्रणी बनाने की तैयारी चल रही है. इस सिलसिले में जयपुर में आयोजित चिकित्सा विभाग की वर्कशॉप में एसीएस शुभ्रा सिंह ने रोडमैप तैयार करने की बात कही है. उन्होंने कहा कि राजस्थान की पहचान भामाशाह से है, दान करना यहां की संस्कृति में रचा बसा हुआ है, इसी कारण से प्रदेश की पहचान दानदाताओं के रूप में रही है. शुभ्रा सिंह ने बताया कि प्रदेश में 18 साल से ज्यादा उम्र के 25 फीसदी लोगों ने अंगदान का संकल्प लिया है, जो एक रिकॉर्ड है.

उन्होंने कहा कि अंगदान को लेकर आमजन में एक भावना पैदा हुई है, हमारी कोशिश होगी कि इस भावना को साकार रूप देकर ज्यादा से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचाएं. सिंह ने कहा कि राजस्थान किसी वक्त चिकित्सा के लिहाज से बीमारू श्रेणी में था, पर अब अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं, राज्य में 7 फीसदी से ज्यादा बजट स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाने पर खर्च किया जा रहा है. आज मातृ मृत्यु दर, नवजात मृत्यु दर, टीकाकरण, संस्थागत प्रसव, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता समेत स्वास्थ्य मानकों को लेकर बेहतर हालात हैं.

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इस वर्कशॉप में बताया गया कि अब अंगदान के लिए राज्यों के अधिवास की शर्त को हटा दिया गया है, अब देश में कहीं भी अंग हासिल करने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया जा सकता है. ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए पॉलिसी बनाई गई है. ऑर्गन ट्रांसपोर्टेशन के लिए हर एयरपोर्ट पर नोडल ऑफिसर लगाए गए हैं, केंद्र भी कोशिश कर रहा है कि हर राज्य में कम से कम एक मल्टी ऑर्गन ट्रांसप्लांट सेंटर संचालित हो.

अंगों की मांग के मुताबिक उपलब्धता पर जोर: शुभ्रा सिंह ने बताया कि हर साल अंगदान के इंतजार कर रहे लोगों की फेहरिस्त में 2 लाख नए नाम जुड़ जाते हैं, जबकि मांग के अनुपात में महज पांच फीसदी लोगों को ही अंग उपलब्ध हो पाते हैं. कोरोना संक्रमण के बाद ऑर्गन डोनेशन का इंतजार करने वाले मरीज और मुश्किल हालात से रूबरू हो रहे हैं. नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक भारत में अंगदान में कोविड के बाद साठ से सत्तर फीसदी की गिरावट आई है.

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ऐसे में आंकड़े बताते हैं कि हर साल ऑर्गन डोनेशन के इंतजार में दुनिया में पांच लाख लोगों की मौत हो जाती है. लिहाजा सरकार का जोर है कि अंगदान को लेकर जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ सरकार मांग के मुताबिक अंगों की उपलब्धता को सुनिश्चित करे. अंगों की मांग और उपलब्धता के अंतर को न्यूनतम स्तर पर लाने की कोशिश की जा रही है. इसके लिए मेडिकल विभाग अंगदान से लेकर प्रत्यारोपण तक के प्रोसेस को सरलतम प्रक्रिया के तहत लाने की कोशिश में जुटा है.

एक अंगदान, 8 लोगों की जिंदगी: चिकित्सा शिक्षा आयुक्त शिवप्रसाद नकाते ने कहा कि कुछ सालों पहले तक राजस्थान में अंगदान को लेकर जन चेतना शून्य थी, अब हालात बदले हैं और लोग आगे आकर अंगदान के लिए संकल्प ले रहे हैं. सरकार सभी मेडिकल कॉलेजों में अंगदान के लिए सुविधाएं विकसित कर रही है, ताकि अंगदान करने वालों की संख्या बढ़े. उन्होंने अंगदान करने वाले और अंग प्राप्त करने वालों के बीच सूचना और जानकारी को लेकर तकनीक आधारित सिस्टम विकसित करने की जरूरत भी बताई.

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उन्होंने कहा कि अंगदान के लिए जागरूकता के साथ-साथ यह जरूरी है कि ऑर्गन फेल्योर की स्थिति नहीं बने, इसके लिए जरूरी है व्यक्ति स्वस्थ जीवन शैली और स्वास्थ्य खानपान के लिए प्रेरित हो. वहीं नेशनल ऑर्गन एण्ड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (नोटो) के निदेशक डॉक्टर अनिल कुमार ने कहा कि देश में अंगदान का प्रतिशत बढ़ रहा है, लेकिन अभी भी भ्रांतियों और मिथकों के चलते अंगदान करने वालों की संख्या बेहद कम है. उन्होंने बताया कि कुल अनुदान में से महज दो फीसदी ऐसे हैं, जो मृत्यु उपरांत किए गए हैं. उन्होंने ब्रेन स्टेम डेड व्यक्ति के परिजनों की काउंसलिंग कर उन्हें अंगदान के लिए प्रेरित करने के प्रयासों पर भी जोर दिया. जाहिर है कि एक व्यक्ति के अंगदान से 8 से 9 लोगों को जीवनदान मिलता है.

ड्राइविंग लाइसेंस पर अंगदान का संकल्प: मोहन फाउंडेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी डॉक्टर सुनील श्रॉफ ने कहा कि अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए सार्थक पहल हुई है, राजस्थान ऐसा पहला प्रदेश है, जहां ड्राइविंग लाइसेंस पर अंगदान की इच्छा प्रकट करने का विकल्प दिया गया है. अब तक 4 लाख लोगों ने ड्राइविंग लाइसेंस के माध्यम से इस संकल्प को अपनाया है. यह विकल्प अनिवार्य करने से पहले राज्य में जहां 2.5 प्रतिशत लोग अंगदान के प्रति जागरूक थे, वहीं अब यह तादाद 33 फीसदी तक पहुंच गई है. इस वर्कशॉप में राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर सुधीर भण्डारी ने कहा कि हर साल 6 लाख लोग सही वक्त पर अंग नहीं मिलने के कारण अपनी जान गंवा देते हैं. इस वर्कशॉप में विभिन्न तकनीकी सत्रों में ब्रेन डेथ आइडेंटिफिकेशन एंड सर्टिफिकेशन, ब्रेन डेथ मेंटेनेंस, ट्रांसप्लांट लॉ, किडनी, लीवर, हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट सहित इससे जुड़े विषयों पर गहन चर्चा की गई.

जरूरत के मुताबिक नहीं मिल रहे हैं अंग: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स के मुताबिक हर साल करीब 2 लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट की दरकार होती है, जबकि 8 हजार लोगों का ही ट्रांसप्लांट मुमकिन होता है. इसी तरह से किडनी ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे 80 हजार मरीजों में से महज 2 हजार के करीब लोग की अंग मिलने पर ट्रांसप्लांट सुनिश्चित करवा पाते हैं. इसी क्रम में 1 लाख मरीजों को सालाना कॉर्निया या आई ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, मगर आधे से भी कम लोगों को ही जरूरत के हिसाब से ऑर्गन मिल पाते हैं. वर्तमान में 50 हजार मरीज हार्ट ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हैं, पर 200 के करीब को ही मैच मिल पाता है. आम तौर पर किडनी, आंखें, लंग्स, हार्ट और लिवर का ट्रांसप्लांट आसानी से हो जाता है. जबकि पैनक्रियाज, छोटी आंत और स्किन के ट्रांसप्लांट की लोकप्रियता फिलहाल उतनी नहीं है.

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