लखनऊ: राजधानी में पेशे से वकील शिव बरन सिंह फर्जी जमानतगीरों से पीड़ित हैं. बीते दो वर्षों में उन्हे तीन नोटिस मिल चुकी है. नोटिस इस बात की है कि उन्होंने जिन आरोपियों की जमानत ली थी वह अब कोर्ट में पेशी के लिए नहीं पहुंच रहे है, ऐसे में अब उन्हें कोर्ट में पेश होना पड़ेगा. लेकिन असल में शिव वरन ने अपने जीवन में किसी की जमानत ली ही नहीं. यूपी एसटीएफ ने अपनी जांच में पाया है कि ये फर्जी जमानतगीर न सिर्फ लखनऊ बल्कि यूपी के कई जिलों में एक्टिव हैं. हाल ही में आगरा में एक गैंग का खुलासा भी हुआ था.
यूपी एसटीएफ के एडिशनल एसपी विशाल विक्रम सिंह बताते है कि फर्जी जमानतगीर कोर्ट परिसर के आस-पास घूमते रहते हैं. जो परिसर में उन लोगों की तलाश में जुट जाते हैं, जिनकी जमानत लेने वाला कोई नहीं होता है. इसके बाद ये पहले वकील और फिर आरोपी तक पहुंचते हैं. इसके बाद आरोपी जमानत लेने का ठेका ये गिरोह ले लेता है. एएसपी एसटीएफ के मुताबिक, जमानत के लिए कोर्ट में जो भी दस्तावेज लगाए जाते हैं, असल में यह गिरोह फर्जी रूप से तैयार करता है. इतना ही नहीं जब ये फर्जी दस्तावेज वेरिफिकेशन के लिए थाने और तहसील के लिए जाते हैं, तब भी वो इनका फर्जी वेरिफिकेशन करवा लेते हैं. जिसके बाद अपराधी जमानत लेकर फरार हो जाता है.
कैसे चलता है फर्जी जमानत लेने का खेल
एसटीएफ ने बीते दिनों यूपी के आगरा से ऐसे ही गिरोह के 7 लोगों को गिरफ्तार किया था. इन सभी सात आरोपियों में हर किसी को अलग अलग जिम्मेदारी दी गई थी. जमानत के लिए अपना कस्टमर ढूंढने, मुहर और कागज बनाने, जमानदार बनने समेत हर कार्य के लिए अलग अलग आदमी तय थे. एएसपी के मुताबिक, फर्जी जमानत लेने के लिए 40 हजार रुपए में ठेका लिया जाता था. जिसके बाद फर्जी आधार कार्ड, खतौनी, थाने व तहसील की रिपोर्ट बनवाई जाती थी. इसके बाद एक व्यक्ति को जमानतदार बनाकर उसे पेश किया जाता है. इतना ही नहीं जमानत के कागजों का वेरिफिकेशन भी फर्जी तरीके से करवा देते थे. जब कोर्ट से वेरिफिकेशन के लिए जमानत के दस्तावेज तहसील या थाने भेजा जाता था तो इस गैंग के लोग तो रास्ते में ही सेटिंग कर उसमें फर्जी मुहर लगा कर रिपोर्ट लिख देते थे. इसके अलावा कर्मचारी से सेटिंग कर अपने मन मुताबिक रिपोर्ट लिखवा लेते थे. एएसपी के मुताबिक, यह गिरोह पूरे यूपी में फैला हुआ हुआ, यही वजह है कि लखनऊ, कानपुर समेत कई शहरों में फर्जी जमानत के मामले सामने आते हैं.
क्यों लेते हैं फर्जी जमानतगीरों का सहारा?
हाईकोर्ट के क्रिमिनल्स वकील प्रिंस लेनिन के मुताबिक, छोटे से लेकर बड़े अपराधी को बेल मिलने पर जमानतदार की जरूरत होती है. कुछ के पास जमानतदार तो होते हैं लेकिन उनकी हैसियत जमानत लेने लायक नहीं होती है. कुछ लोगों के पास कोई नहीं होता है. ऐसे में अब एंट्री होती है ऐसे ही फर्जी जमानतगीरों की है. जिनके पास जमानत लेने के लिए पर्याप्त दस्तावेज और लोग होते हैं. कुछ अभियुक्त मजबूरी में इस गिरोह के झांसे में आते है और कुछ जानबूझ कर, ताकि फर्जी जमानतदार के आधार पर जेल से निकलने पर वो दोबारा पेशी पर आने से बच जाए. फर्जी दस्तावेज के आधार पर जिन्हें जमानत मिल जाती है और फिर वो कोर्ट में दोबारा दिखाई नहीं देते. हालांकि बाद में फंसते वो हैं, जिनके नाम से जमानत ली गई होती है.
इसे भी पढ़ें-एसटीएफ और पुलिस ने फर्जी जमानतदार गैंग का किया पर्दाफॉश, 40 हजार में तैयार करते थे नकली दस्तावेज
नकली कागज, असली बेल; यूपी में फर्जी पेपर के सहारे जमानत लेने का खेल, STF ने पकड़ा गिरोह - COURT NEWS
By ETV Bharat Uttar Pradesh Team
Published : Apr 30, 2024, 8:05 PM IST
|Updated : Apr 30, 2024, 8:57 PM IST
लखनऊ: राजधानी में पेशे से वकील शिव बरन सिंह फर्जी जमानतगीरों से पीड़ित हैं. बीते दो वर्षों में उन्हे तीन नोटिस मिल चुकी है. नोटिस इस बात की है कि उन्होंने जिन आरोपियों की जमानत ली थी वह अब कोर्ट में पेशी के लिए नहीं पहुंच रहे है, ऐसे में अब उन्हें कोर्ट में पेश होना पड़ेगा. लेकिन असल में शिव वरन ने अपने जीवन में किसी की जमानत ली ही नहीं. यूपी एसटीएफ ने अपनी जांच में पाया है कि ये फर्जी जमानतगीर न सिर्फ लखनऊ बल्कि यूपी के कई जिलों में एक्टिव हैं. हाल ही में आगरा में एक गैंग का खुलासा भी हुआ था.
यूपी एसटीएफ के एडिशनल एसपी विशाल विक्रम सिंह बताते है कि फर्जी जमानतगीर कोर्ट परिसर के आस-पास घूमते रहते हैं. जो परिसर में उन लोगों की तलाश में जुट जाते हैं, जिनकी जमानत लेने वाला कोई नहीं होता है. इसके बाद ये पहले वकील और फिर आरोपी तक पहुंचते हैं. इसके बाद आरोपी जमानत लेने का ठेका ये गिरोह ले लेता है. एएसपी एसटीएफ के मुताबिक, जमानत के लिए कोर्ट में जो भी दस्तावेज लगाए जाते हैं, असल में यह गिरोह फर्जी रूप से तैयार करता है. इतना ही नहीं जब ये फर्जी दस्तावेज वेरिफिकेशन के लिए थाने और तहसील के लिए जाते हैं, तब भी वो इनका फर्जी वेरिफिकेशन करवा लेते हैं. जिसके बाद अपराधी जमानत लेकर फरार हो जाता है.
कैसे चलता है फर्जी जमानत लेने का खेल
एसटीएफ ने बीते दिनों यूपी के आगरा से ऐसे ही गिरोह के 7 लोगों को गिरफ्तार किया था. इन सभी सात आरोपियों में हर किसी को अलग अलग जिम्मेदारी दी गई थी. जमानत के लिए अपना कस्टमर ढूंढने, मुहर और कागज बनाने, जमानदार बनने समेत हर कार्य के लिए अलग अलग आदमी तय थे. एएसपी के मुताबिक, फर्जी जमानत लेने के लिए 40 हजार रुपए में ठेका लिया जाता था. जिसके बाद फर्जी आधार कार्ड, खतौनी, थाने व तहसील की रिपोर्ट बनवाई जाती थी. इसके बाद एक व्यक्ति को जमानतदार बनाकर उसे पेश किया जाता है. इतना ही नहीं जमानत के कागजों का वेरिफिकेशन भी फर्जी तरीके से करवा देते थे. जब कोर्ट से वेरिफिकेशन के लिए जमानत के दस्तावेज तहसील या थाने भेजा जाता था तो इस गैंग के लोग तो रास्ते में ही सेटिंग कर उसमें फर्जी मुहर लगा कर रिपोर्ट लिख देते थे. इसके अलावा कर्मचारी से सेटिंग कर अपने मन मुताबिक रिपोर्ट लिखवा लेते थे. एएसपी के मुताबिक, यह गिरोह पूरे यूपी में फैला हुआ हुआ, यही वजह है कि लखनऊ, कानपुर समेत कई शहरों में फर्जी जमानत के मामले सामने आते हैं.
क्यों लेते हैं फर्जी जमानतगीरों का सहारा?
हाईकोर्ट के क्रिमिनल्स वकील प्रिंस लेनिन के मुताबिक, छोटे से लेकर बड़े अपराधी को बेल मिलने पर जमानतदार की जरूरत होती है. कुछ के पास जमानतदार तो होते हैं लेकिन उनकी हैसियत जमानत लेने लायक नहीं होती है. कुछ लोगों के पास कोई नहीं होता है. ऐसे में अब एंट्री होती है ऐसे ही फर्जी जमानतगीरों की है. जिनके पास जमानत लेने के लिए पर्याप्त दस्तावेज और लोग होते हैं. कुछ अभियुक्त मजबूरी में इस गिरोह के झांसे में आते है और कुछ जानबूझ कर, ताकि फर्जी जमानतदार के आधार पर जेल से निकलने पर वो दोबारा पेशी पर आने से बच जाए. फर्जी दस्तावेज के आधार पर जिन्हें जमानत मिल जाती है और फिर वो कोर्ट में दोबारा दिखाई नहीं देते. हालांकि बाद में फंसते वो हैं, जिनके नाम से जमानत ली गई होती है.
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