नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में मतदान के सिर्फ गिनती के दिन शेष रह गए हैं. ऐसे में राजनीतिक सरगर्मियां पूरे जोरों पर हैं. आज दिल्ली की सातों लोकसभा क्षेत्र में प्रत्याशियों के समर्थन में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की जनसभाएं हो रही हैं. ऐसे में दिल्ली में चुनावी माहौल के बीच पुराने चुनावों को भी याद किया जा रहा है. ऐसे ही एक पुराने चुनाव का किस्सा ETV भारत आपके सामने लेकर आया है.
बात है वर्ष 1989 की जब पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से बसपा के संस्थापक कांशीराम ने भी चुनाव लड़ा था. वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में तत्कालीन सांसद एचकेएल भगत प्रत्याशी थे. उस समय एचकेएल भगत का चुनाव प्रबंधन देख रहे डॉक्टर अशोक चौहान ने बताया कि पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में कल्याणपुरी, कोंडली, त्रिलोकपुरी अनुसूचित जाति बाहुल्य सीटें हैं.
पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में दलितों का अच्छा वोट बैंक होने की वजह से कांशीराम यहां चुनाव लड़ने आए थे. उन्हें उम्मीद थी कि एससी बहुल मतदाताओं का वोट मिलने से वह चुनाव जीत जाएंगे. लेकिन, पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने के बाद भी उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी और वह तीसरी या चौथे स्थान पर रहे. कांशीराम की जमानत भी यहां जब्त हो गई. इसका कारण यह रहा कि उस समय बसपा को बने हुए 5 साल ही हुए थे और काशीराम दलित नेता के तौर पर तो चर्चित थे लेकिन ऐसी वोट बैंक पर उनकी उतनी मजबूत पकड़ नहीं बन सकी थी.
![1989 में बसपा संस्थापक ने पूर्वी दिल्ली से लड़ा था चुनाव. जनसभा में भारी भीड़ जुटती थी.](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/22-05-2024/del-ndl-01-chunavikissa-eastdelhiloksabhaseat-whenbspfounder-kanshiramfight-election-from-eastdelhiloksabha-lost-huge-margin-vis-7211683_21052024190057_2105f_1716298257_81.jpg)
जबकि, यहां पर कांग्रेस के प्रत्याशी एचके एल भगत 1971 से ही सांसद थे. 1977 में वह एक बार चुनाव हारे थे. उसके बाद से 1980, 1984 में भी वह चुनाव जीत चुके थे. इंदिरा गांधी की सरकार में केंद्रीय शहरी विकास एवं आवास राज्य मंत्री भी थे. उन्होंने यमुनापार में बहुत काम किया था. इसकी वजह से उनकी यहां मजबूत पकड़ थी. एचकेएल भगत ने यहां भाजपा प्रत्याशी को हराकर चुनाव में जीत दर्ज की थी.
डॉ अशोक चौहान ने बताया कि उस समय त्रिलोकपुरी विधानसभा के चांद सिनेमा इलाके में कांग्रेस का चुनाव कार्यालय था. उसके सामने वाले मैदान में ही कांशीराम की एक सभा थी, जिसमें बसपा के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में जा रहे थे. बसपा के कार्यकर्ता बहुत उत्साह में थे. उस समय हमारे कांग्रेस के कार्यकर्ता भी चुनाव कार्यालय पर मौजूद थे, जिसमें कुछ कांग्रेस और बसपा के कार्यकर्ताओं में कहासुनी हो गई.
![बसपा संस्थापक कांशीराम भी उतरे थे चुनावी मैदान में और जमानत हो गई थी जब्त](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/22-05-2024/del-ndl-01-chunavikissa-eastdelhiloksabhaseat-whenbspfounder-kanshiramfight-election-from-eastdelhiloksabha-lost-huge-margin-vis-7211683_21052024190057_2105f_1716298257_400.jpg)
कहासुनी के बाद मामला मारपीट तक पहुंच गया. इसके बाद दोनों तरफ से एक दूसरे के कार्यकर्ताओं पर एफआईआर भी हुई. कांशीराम ने खुद जाकर एफआईआर कराई और वह थाने में भी जाकर बैठ गए. उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने की भी मांग की. फिर दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को थाने ले जाया गया और बाद में समझौता करा कर छोड़ा गया.
डॉ. अशोक चौहान ने बताया कि मुझे एचकेएल भगत ने ही कांग्रेस में राजनीति शुरू कराई थी. इसलिए 1980 और 1984 के चुनाव में भी मैंने उनका चुनाव प्रबंधन संभाला था. चौहान ने बताया कि उस समय पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट का इलाका उत्तर प्रदेश की सीमा से शुरू होकर बाहरी दिल्ली में नरेला तक लगता था. तब दिल्ली में विधानसभा नहीं थी. अगर आज की विधानसभा सीटों के हिसाब से लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो तब 18 विधानसभा सीटें पूर्वी दिल्ली लोकसभा में आती थी. पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में करीब 20 लाख मतदाता होते थे.
उस समय दिल्ली में विधानसभा की जगह महानगर परिषद होती थी और दिल्ली में कुल 100 वार्ड थे. जबकि आज 250 वार्ड हैं. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 100 वार्ड होने की वजह से एक वार्ड का क्षेत्र भी बहुत बड़ा होता था. उन्होंने बताया कि जब वह 1983 में पार्षद बने थे तो अशोकनगर से लेकर कृष्णा नगर तक का एरिया उनके वार्ड में आता था.
उन्होंने यह भी बताया कि उस समय कांशीराम दो सीटों से चुनाव लड़ रहे थे. उन्होंने अमेठी सीट से राजीव गांधी के खिलाफ भी चुनाव लड़ा था और पूर्वी दिल्ली में एचकेएल भगत के खिलाफ भी. अमेठी में भी कांशीराम को राजीव गांधी से हार का सामना करना पड़ा था. जबकि पूर्वी दिल्ली में एचकेएल भगत से कांशीराम की यहां बहुत करारी हार हुई थी.
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डॉ. अशोक चौहान ने बताया कि कांशीराम ने यह संकल्प ले रखा था कि वह एससी समुदाय से आते हैं, लेकिन कभी एससी सीट से चुनाव नहीं लड़ेंगे. वह हमेशा सामान्य सीट से ही चुनाव लड़ेंगे. इसके चलते ही उन्होंने पूर्वी दिल्ली सामान्य सीट और यूपी में भी अमेठी सामान सीट से ही चुनाव लड़ा था. उन्होंने बताया कि उस समय तक मायावती की कोई खास पहचान नहीं थी, क्योंकि बसपा को बने हुए सिर्फ पांच साल ही हुए थे.
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