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डीडवाना में है हजारों साल से भी ज्यादा पुरानी सभ्यता के गवाह, जिओ पार्क बनाने की मांग - thousands of years old civilization

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 18, 2024, 6:10 PM IST

Updated : May 18, 2024, 7:12 PM IST

डीडवाना का 16 R श्रेत्र प्राचीन सभ्यता के अवशेष का परिचायक है. यहां मानव विकास की गाथाएं ​छुपी हुई है. भूगर्भ शास्त्रियों ने इसे संरक्षित करने के लिए डीडवाना में जिओ पार्क बनाने की मांग की है. साथ ही डीडवाना के इस गौरवशाली इतिहास को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल करने की भी मांग की है.

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डीडवाना में है हजारों साल से भी ज्यादा पुरानी सभ्यता के गवाह. (photo etv bharat kuchamancity)

डीडवाना में है हजारों साल से भी ज्यादा पुरानी सभ्यता के गवाह (photo etv bharat didwana)

कुचामनसिटी. डीडवाना में हजारों साल से भी ज्यादा पुरानी सभ्यता के गवाह है. इसे 16 R श्रेत्र कहा जाता है. इसको संरक्षित करने के लिए डीडवाना में जिओ पार्क बनाने की मांग की गई है. साथ ही डीडवाना के इस गौरवशाली इतिहास को स्कूल और कालेज के पाठ्यक्रम में शामिल करने की भी मांग की गई है.

वैज्ञानिक और भूगर्भ शास्त्री डॉ. अरुण व्यास और इतिहासकार श्रवण ककड़ा ने बताया कि विश्व में सबसे प्राचीन सभ्यता सिंघु, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को माना जाता है, लेकिन डीडवाना में इससे भी हजारों सालों पहले की मानव सभ्यता का विकास हुआ था. डीडवाना क्षेत्र एसुलियन काल खंड अर्थात कई सालों पूर्व का साक्षी रहा है. उस दौर में यहां 'होमो इरेक्ट्स' यानि वर्तमान मानवों के पूर्वज आबाद थे. पूर्व में इस बारे में फ्रांस के वैज्ञानिकों सहित कई वैज्ञानिक शोध कर यहां विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता होने का दावा कर चुके हैं. इन शोध के बारे में विदेशों में पढ़ाया भी जा रहा है, लेकिन राजस्थान की पाठ्यपुस्तकें अब तक इस विषय से अछूती है.

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जीओ पार्क बनाया जाए: इस बारे में वैज्ञानिक व भूगर्भशास्त्री डॉ. अरूण व्यास और इतिहासकार श्रवण काकड़ा ने सरकार से जिओ पार्क बनाने की मांग करते हुए कहा कि जियो पार्क के रूप में किसी क्षेत्र के विकसित होने से उस क्षेत्र के इतिहास, संस्कृति, पुरातत्व और भूविज्ञान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलती है. डीडवाना में जिओ पार्क बनता है तो यहां अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की भी अपार संभावनाएं है.

मानव विकास गाथा के अमिट निशान: उन्होंने बताया कि डीडवाना की बांगड़ नहर के पास स्थित इस क्षेत्र में उस दौर के मानव ने यहां अपनी विकास गाथा के कई महत्वपूर्ण अमिट निशान देखे हैं. डीडवाना क्षेत्र में पेलियोलिथिक काल से सम्बन्धित 'एसुलियन कल्चरल ट्रेडीशन्स' संकेत मिले हैं, जो प्रमाणित करते है कि इस क्षेत्र में कई वर्ष पूर्व 'होमो इरेक्ट्स' आबाद थे. डॉ. व्यास ने बताया कि जीवाश्मों की अनुपस्थिति में डीडवाना के आस-पास प्रागैतिहासिक आबादी की उपस्थिति मानव निर्मित पत्थर कलाकृतियों की घटनाओं से साक्ष्यांकित है, यद्यपि यह शुष्क वातावरण से सम्बन्धित है, फिर भी यहां जानवर तथा मानव की हड्डियां संरक्षित नहीं है. डॉ. व्यास के अनुसार पुरापाषाण कालीन डीडवाना के आस-पास बसी आबादी का मूल्यांकन तत्कालीन पर्यावरण में हड्डियों के संरक्षित नहीं हो पाने के कारण अवसादी विश्लेषण के आधार पर किया गया, तब जलवायु अर्द्धशुष्क थी. इस क्षेत्र में डेक्कन कॉलेज, पुणे के भूगर्भवेत्ता डॉ. वीएन मिश्रा, डॉ. एसएन राजगुरू, डॉ. हेमा अच्युथन तथा पेरिस (फ्रांस) के राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के प्रागैतिहासिक विभाग से जुड़ी क्लेरी गेलार्ड ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध कार्य किए हैं.

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डीडवाना के समीप ‘होमो इरेक्टस’ लाखों साल पहले आबाद रहे होमोनिन की विलुप्त प्रजाति है, जिसका उद्भव अफ्रीका में हुआ था. वहां से वे जार्जिया, भारत, श्रीलंका, चीन व जावा में फैल गए. इन्हें 'अपराइट मैन' भी कहते हैं. ये प्लीस्टोसीन काल में जीवित रहे व इनके जीवाश्म 1 लाख 43 हजार से 18 लाख वर्ष तक की आयु के है. वर्तमान मानव 'होमो सेपियन्स' कहलाते है, जिनका उद्भव ढाई से चार लाख वर्ष पूर्व तक माना गया है, इन्हें ‘वाइस मैन’ कहा गया है.

वैज्ञानिक व भूगर्भशास्त्री डॉ. अरूण व्यास ने बताया कि डीडवाना क्षेत्र में ‘होमो इरेक्ट्स’ के प्रमाण स्वरूप अनेक मानव निर्मित आकृतियां पाई गई है, जिनमें मुख्यत: पत्थरों से बने हथियार है. डीडवाना क्षेत्र में डेक्कन कालेज, पुणे के दल द्वारा डॉ. वी.एन. मिश्रा व डॉ. एस. एन. राजगुरू के निर्देशन में 1980 के दशक में सिंघी तालाब व आस-पास के क्षेत्रों में ‘एशूलियन इण्डस्ट्रीज’ की खुदाई की गई, जिसमें मानव निर्मित आकृतियां (आर्टिफेक्ट्स) भूसतह से 40 व 80 सेंटीमीटर नीचे पाए गए. निचले स्तर में ‘एसुलियन’ के बड़े हस्त कुल्हाड़ मिले.

खुदाई में मिल चुकी उस दौर की कई वस्तुएं: खुदाई में (16 आर) से छोटे औजार, बड़े काटने के औजार जैसे ‘चौपर’, पोलीहेण्ड्रोस’ व ‘स्पेरोइड्स’ इत्यादि करीब 1300 आर्टिफेक्ट्स मिले हैं. इनमें से 90 प्रतिशत मारवाड़ बालिया की पहाड़ी की कायान्तरित चट्टानों से निर्मित है. सिंघी तालाब से इस पहाड़ी की दूरी करीब 3 किमी है. ये चट्टानें मुख्यत: ‘क्वार्टजाइट्स’ है, इससे स्पष्ट होता है कि पुराऐतिहासिक मानव झील के किनारे आबाद थे.

Last Updated : May 18, 2024, 7:12 PM IST
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