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लोकसभा चुनाव में बढ़ा जनजातीय परिधान का क्रेज, खुद को आदिवासी के रूप में प्रस्तुत करने की राजनेताओं में मची होड़ - Lok Sabha Election 2024

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 14, 2024, 8:25 PM IST

Updated : Apr 15, 2024, 7:42 AM IST

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Craze OF Tribal Clothes In Jharkhand

Craze of tribal clothes in Jharkhand. लोकसभा चुनाव में वोट बैंक को साधने और खुद को आदिवासी के रूप में प्रस्तुत करने की हर दलों के नेताओं में होड़ मची है. इसके लिए खास तरह के वेशभूषा में राजनेता वोटरों तक पहुंच रहे हैं.

झारखंड में आदिवासी कपड़े की बढ़ी मांग पर रिपोर्ट और जानकारी देते दुकानदार और ग्राहक.

रांची: राजधानी रांची में इन दिनों आदिवासी परिधान का क्रेज बढ़ गया है. खासकर चुनावी मौसम में वोट बैंक को साधने और खुद को आदिवासी के रूप में प्रस्तुत करने की होड़ मची है. इस कारण आदिवासी परिधान की मांग भी बाजार में बढ़ गई है.

आदिवासी परिधान को बाजार में मॉर्डन अंदाज में उतारा गया

रांची के बाजार में परंपरागत आदिवासी परिधान को मॉर्डन अंदाज में उतारा गया है. बाजार में बंडी, गमछा और टोपी की अलग-अलग वेराइटी और रेंज उपलब्ध है. इन आदिवासी परिधानों की लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं.

बदलते दौर में आदिवासी समाज का बदला लिबास

पहले आदिवासी समाज के लोग पेड़-पौधे के पत्ते और उसके छाल को वस्त्र बनाकर पहनते थे, लेकिन अब आदिवासियों के परिधान बदल रहे हैं और वह भी नए ट्रेंड के साथ समाज में कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं. इस संबंध में दुकानदार बताते हैं कि आदिवासी युवाओं में अपने परंपरागत वेशभूषा के प्रति झुकाव बढ़ा है.

जनजातीय इलाकों में आदिवासी लिबास में चुनाव प्रचार करने जाते हैं राजनेता

इस संबंध में कांटा टोली स्थित आदिवासी मार्ट दुकान के संचालक संगम बड़ाईक बताते हैं कि झारखंड में ज्यादातर क्षेत्रों में आदिवासी बसते हैं. यही कारण है कि आदिवासी समाज के बीच अपनी पहचान और अपनी पहुंच बनाने के लिए नेता आदिवासी परिधान पहनकर वोट मांगने के लिए जाते हैं और जनसंपर्क करते हैं. इस कारण आदिवासी परिधान के ऑर्डर अधिक आ रहे हैं.

चुनावी मौसम में बढ़ी आदिवासी परिधान की मांग

2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर नेताओं की तरफ से गमछा, बंडी और पगड़ी के खूब ऑर्डर आ रहे हैं.संगम बड़ाइक बताते हैं कि कुछ वर्ष पहले तक आदिवासियों के वस्त्र अलग थे. ज्यादातर वन उत्पादों से ही वस्त्र बनाए जाते थे, लेकिन अब आदिवासी शहर की ओर आ रहे हैं. इस कारण शहरी आदिवासी अपनी पुरानी परंपराओं के साथ नए ट्रेंड के कपड़े को खूब पसंद कर रहे हैं.

बाजार में अलग-अलग रेंज में उपलब्ध है गमछा, पगड़ी और बंडी

उन्होंने बताया कि चुनाव को देखते हुए गमछा, बंडी और पगड़ी की कीमत में थोड़ी उछाल आई है. उन्होंने बताया कि गमछा और पगड़ी की कीमत 250 रुपए से एक हजार रुपए तक हैं. वहीं बंडी की कीमत एक हजार रुपए से पांच हजार रुपए तक है.

सफेद और लाल बॉर्डर वाली साड़ी की भी बढ़ी मांग

संगम बड़ाइक ने बताया कि विभिन्न पार्टियों से जुड़ी महिला नेत्रियों को साड़ी और सलवार सूट भी खूब भा रही है. खासकर सफेद कपड़े पर लाल बॉर्डर वाली साड़ी की अधिक डिमांड है. उन्होंने बताया कि सफेद रंग शांति और लाग रंग उलगुलान का संदेश है.

गौरतलब हो कि आदिवासी समाज के परिधान के से कहीं न कहीं चुनाव में प्रचार करने वाले राजनेताओं को संदेश देने का एक माध्यम मिलता है. अब देखने वाली बात होगी कि चुनाव प्रचार में आदिवासी परिधान के प्रयोग से जनजातिय समाज को राजनेता कितना लुभा पाते हैं.

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Last Updated :Apr 15, 2024, 7:42 AM IST
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