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बिहार में बची 26 सीटों में से आधा दर्जन सीटों को बचाना एनडीए के लिए बड़ी चुनौती, खतरा महागठबंधन से या फिर अपनों से! - lok sabha election 2024

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 12, 2024, 10:47 PM IST

fourth phase election बिहार में तीन चरणों के चुनाव में 14 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. अब 40 में से 26 सीट बची है. एनडीए की सभी सीटिंग सीट है. लेकिन इन 26 सीटों में से आधा दर्जन से अधिक सीट इस बार जितना बड़ी चुनौती बनी हुई है. महागठबंधन से अधिक अपने घटक दल के नेता और भीतर घाट एनडीए के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है. ऐसे में बीजेपी अब आक्रामक चुनाव प्रचार की रणनीति पर काम भी कर रही है. पढ़ें, विस्तार से.

एनडीए के लिए चुनौती.
एनडीए के लिए चुनौती. (ETV Bharat)

एनडीए के लिए चुनौती. (ETV Bharat)

पटना: बिहार में जिन 26 सीटों पर चुनाव होना है उसमें से आधा दर्जन से अधिक सीटें एनडीए के लिए इस बार आसान नहीं होने वाला है. सबसे चर्चा में समस्तीपुर सीट है क्योंकि एक तरफ जहां लोचापा रामविलास से जदयू के मंत्री अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी चुनाव लड़ रही हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस के टिकट पर जदयू मंत्री महेश्वर हजारी के बेटे सनी हजारी चुनाव लड़ रहे हैं यहां बाहरी भीतरी की लड़ाई है और जातीय समीकरण भी एनडीए के लिए चुनौती बना हुआ है.

मुंगेर लोकसभा सीटः यह जदयू की सीटिंग सीट है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे ललन सिंह यहां से फिर से चुनाव मैदान में है. लेकिन राजद ने बाहुबली अशोक महतो की पत्नी को टिकट देकर मुकाबला कठिन बना दिया है. मुंगेर में ललन सिंह से भूमिहार जाति के लोग काफी खफा हैं. यहां तक की गांव में भी घुसने नहीं दे रहे हैं. यहां की लड़ाई बैकवर्ड फॉरवर्ड की भी हो गई है. प्रधानमंत्री मुंगेर में जनसभा कर चुके हैं. मुख्यमंत्री ने भी कई राउंड की जनसभा की है. इस बीच बाहुबली अनंत सिंह भी 14 दिन के पैरोल पर बाहर आये हैं. चर्चा है कि इसी चुनाव को ध्यान में रखकर उन्हें पैरोल दी गई है.

बेगूसराय लोकसभा सीटः केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह एक बार फिर से भाग्य आजमा रहे हैं. लेकिन उन्हें पार्टी के अंदर ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी का एक खेमा उनसे नाराज है. इस कारण गिरिराज सिंह की मुश्किलें बढ़ी हुई है. ऐसे गिरिराज सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री को भी चुनाव प्रचार में बुलाया है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी चुनाव प्रचार कर चुके हैं. प्रधानमंत्री भी गिरिराज सिंह के क्षेत्र में आ चुके हैं. कुल मिलाकर भाजपा ने पूरी ताकत यहां लगाई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी चुनाव प्रचार कर चुके हैं.

जहानाबाद लोकसभा सीटः जदयू की सीटिंग सीट है. यहां से एक बार फिर चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी चुनाव मैदान में हैं. राजद के कद्दावर नेता सुरेंद्र यादव के चुनाव मैदान में फिर से आने के कारण जदयू के लिए मुश्किल बढ़ गई है. रहा सब कसर अरुण कुमार ने बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरकर कर दी है. और जदयू के लिए मुकाबला कठिन हो गया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू उम्मीदवार महज कुछ हजार के मत के अंतर से जीत दर्ज की थी.

काराकाट लोकसभा सीटः यह जदयू की सीटिंग सीट है. लेकिन, इस बार यह सीट उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को दे दी गयी है. उपेंद्र कुशवाहा यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन पवन सिंह के चुनाव मैदान में आने से लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है. पवन सिंह बीजेपी में थे. बीजेपी ने उन्हें आसनसोल से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था, लेकिन पवन सिंह ने उसे ठुकरा दिया. वो आरा से चुनाव लड़ना चाहते थे. बाद में काराकाट से निर्दलीय ही चुनाव मैदान में कूद गए. बीजेपी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है. इस कारण संशय बना हुआ है.

सारण लोकसभा सीटः बीजेपी की सीटिंग सीट है. निवर्तमान सांसद राजीव प्रताप रूडी एक बार फिर से चुनाव मैदान में हैं. लेकिन लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य के यहां आने से लड़ाई आसान नहीं रह गया है. लालू प्रसाद यादव केवल सारण सीट पर ही चुनाव प्रचार कर रहे हैं. इस तरह से कहें की पूरी ताकत लगा दी है. लालू प्रसाद यादव का गृह क्षेत्र भी है. हालांकि बीजेपी की ओर से राजीव प्रताप रूडी के लिए प्रधानमंत्री से लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सभी दिग्गज नेता चुनाव प्रचार कर चुके हैं. नीतीश कुमार ने भी चुनाव प्रचार किया है.

शिवहर लोकसभा सीटः बीजेपी की सीटिंग सीट थी. लेकिन इस बार गठबंधन में बीजेपी ने यह सीट जदयू को दिया. जदयू से बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद चुनाव लड़ रही हैं. रमा देवी, बीजेपी के टिकट पर यहां से पिछली बार सांसद बनी थी. इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया है. खुलकर उन्होंने विरोध नहीं किया, लेकिन वैश्य समाज में नाराजगी है. इसका नुकसान लवली आनंद को उठाना पड़ सकता है.

बीजेपी ने तैयार की रणनीतिः ऐसे तो सभी सीटों पर सीधी लड़ाई है. पाटलिपुत्र सीट भी इनमें से एक है. जहां लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती एक बार फिर से चुनाव मैदान में है. भाजपा ने वहां से फिर राम कृपाल यादव को मैदान में उतारा है. लेकिन जिन आधा दर्जन से अधिक सीटों पर महागठबंधन से अधिक एनडीए के घटक दल के नेता ने ही मुश्किल बढ़ा रखी है उन सीटों को निकालने के लिए बीजेपी ने नई रणनीति भी तैयार की है. अपने सबसे लोकप्रिय नेताओं को आक्रमक ढंग से चुनाव प्रचार में उतारा है.

"बिहार में जातीय समीकरण सबसे महत्वपूर्ण होता है. राजद के नेताओं ने आरक्षण और संविधान को लेकर भ्रम फैलाने की भी कोशिश की है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अभी भी लोगों को विश्वास है, इसलिए कई सीटों पर लड़ाई तो जरूर है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि एनडीए को बहुत ज्यादा नुकसान हो जाएगा."- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विश्लेषक

प्रधानमंत्री मोदी मोर्चा संभालाः पीएम मोदी अभी तक पांच बार बिहार का दौरा कर चुके हैं. आने वाले चरणों में भी तीन से चार दौरा कर सकते हैं. बीजेपी अपने फायर ब्रांड मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा से भी चुनाव प्रचार करा रही है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह भी बिहार में लगातार प्रचार कर रहे हैं.

एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौतीः इस चुनाव में एनडीए के लिए सबसे अधिक चुनौती दो बार और उससे अधिक चुनाव जीतने वाले नेताओं के फिर से चुनाव लड़ने के कारण एंटी कवेंसी फैक्टर. एनडीए के घटक दल के नेताओं का भीतरघात की आशंका है. टिकट नहीं मिलने से एनडीए के नेता दूसरे दल से टिकट लेकर या फिर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, इसका भी नुकसान पार्टी को उठाना पड़ सकता है. इसमें मुजफ्फरपुर सीट शामिल है.

"अभी तक तीन चरणों के चुनाव में एनडीए के पक्ष में लोगों ने विश्वास जताया है. और शेष बचे 26 सीटों पर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही भरोसा जताएंगे."- परिमल कुमार, जदयू नेता

सभी सीटों पर लड़ाई टफ हैः राजद के नेता तो लगातार दावा कर रहे हैं कि तेजस्वी यादव के नौकरी और रोजगार पर लोगों को भरोसा है और इसलिए एनडीए खेमे में बेचैनी है प्रधानमंत्री तक को जॉब शो के जवाब में रोड शो करना पड़ रहा है. ऐसे में 26 लोकसभा सीट इस बार जीतना बहुत आसान होने वाला नहीं है. एनडीए को महागठबंधन से अधिक परेशानी अपने नेताओं के फैसलों से ही हो रही है. ऐसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार में पूरी ताकत लगाने के कारण बहुत ज्यादा नुकसान होगा इसकी संभावना भी कम है.

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