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विश्व जल दिवस: उत्तर प्रदेश भूजल दोहन में सबसे अधिक, यहां भी हो सकते हैं बैंगलोर जैसे हालात - world Water Day

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 22, 2024, 3:16 PM IST

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देश में यूपी भूजल दोहन के लिहाज से टॉप पर है. वहीं यूपी के शहरी क्षेत्रों में सर्वाधिक जल दोहन किया जा रहा है. जिसमें राजधानी पहले नम्बर पर है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश भूजल दोहन के लिहाज से टॉप पर है. खासतौर पर प्रेदश के शहरी क्षेत्रों में सर्वाधिक जल दोहन किया जा रहा है. जिसमें राजधानी लखनऊ नम्बर एक स्थान पर है. ऐसे में जब आज पूरी दुनिया जल दिवस मना रही है तो भूजल के बढ़ते संकट को लेकर एक बार फिर लोगों को गंभीरता से सोचना होगा. क्योंकि, वर्ष 2040 से 2080 के बीच भूजल की गिरावट तीन गुना बढ़ेगी. आइए जानते हैं, कितना गंभीर है भूजल दोहन और उत्तर प्रदेश के वो कौन कौन से शहर है, जहां सबसे अधिक भूजल दोहन किया जा रहा है.


शहर में नही बचें नलकूप व कुआं
उत्तर प्रदेश का पश्चिमी इलाका रेड जोन में है. वहीं, तराई में तालाबों और झीलों पर अतिक्रमण है. लखनऊ, कानपुर, आगरा, नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ और अलीगढ़ शहर बीते 10 से 15 वर्षों में भूजल स्तर में दस से बारह मीटर की गिरावट दर्ज की गई है. वहीं जधानी की स्थिति सबसे भयावह है, जहां भूजल दोहन प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में हर दिन करीब 40 लाख लीटर हो रहा है. भूजल विशेषज्ञ आर एस सिन्हा के अनुसार, जलकल विभाग नलकूपों से रोजाना 35.8 करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति करता है. वहीं, हाई राइज बिल्डिंग, अस्पताल, इंडस्ट्रियल एरिया, होटल, सरकारी और गैर सरकारी ऑफिस, रेलवे व घरों में लगे करीब एक लाख सबमर्सिबल पंपों व गहरी बोरिंग से रोजाना सौ करोड़ लीटर पानी निकाला जा रहा है. जिसके कारण राजधानी लखनऊ में बेधड़क करीब 145 करोड़ लीटर भूजल का दोहन हो रहा है, जो प्रदेश में सबसे अधिक है.

'वो दिन दूर नहीं जब यूपी के बैंगलोर जैसे होंगे हालात'
लखनऊ के कुकरैल को नदी का दर्जा दिलाने वाले बीबीएयू के प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता कहते हैं कि सरकारें और सिस्टम, सिर्फ यह कहता है कि लखनऊ में हर रोज एक मीटर भूजल का कम हो रहा है. लेकिन कितनी मात्रा में कम हो रहा है यह कोई नहीं बताता है. प्रो दत्ता कहते हैं कि लखनऊ का क्षेत्रफल लगभग ढाई हजार वर्ग किलोमीटर है. ऐसे में यदि भूजल के गिरावट जानना है तो ढाई हजार को भूजल की गिरावट दर से गुणा करना होगा. लेकिन ये कोई भी जानना नहीं चाहता है. ऐसे में यदि इसी तरह लोग भूजल से गाड़ियां धुलते रहेंगे, फैक्ट्रियों और हाई राइज बिल्डिंग्स में पानी बर्बाद होता रहेगा तो वो दिन दूर नही है जब यहां के हालात भी बैंगलोर जैसे ही हो जाएंगे.

भूजल दोहन के खिलाफ सिस्टम को होना होगा सख्त
दत्ता कहते हैं कि बैंगलोर में गाड़ी को धुलने पर रोक है. इसके अलावा हाई राइज बिल्डिंग्स को पानी उसी शर्त पर दिया जाता है कि वो जो जल वेस्ट होता है. जिसकी मात्रा 70 प्रतिशत होता है, उसे ट्रीट कर वापस देना होगा. इसी नियम को उत्तर प्रदेश में भी सख्ती से लागू करना होगा. दत्ता कहते है कि सरकारें तो जल जीवन मिशन, नमामि गंगे, अमृत योजना समेत कई योजनाएं चला रही है जिससे भूजल दोहन को बचाया जा सके. लेकिन जिन अफसरों को जमीन पर इसे लागू करना है, भूजल दोहन होने से बचाना है. वो ही आंख बंद कर बैठे है, जो खतरनाक है.

यदि देश भर के आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति डरावनी है

  • वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, वर्ष 2025 तक कोलकाता में 44 प्रतिशत जल स्तर गिरेगा.
  • वर्ष 2030 तक भारत में 40 प्रतिशत लोगों को पानी की किल्लत होगी.
  • वर्ष 2050 तक देश के शहरों में 80 प्रतिशत मांग बढ़ेगी.
  • वर्ष 2040 से 2080 के बीच भूजल गिरावट दर तीन गुना बढ़ेगी.


भारत में कितना है जल संपत्ति

  • देश में 14 प्रमुख नदियां है, जबकि 26 ताजे पानी की झीलें.
  • 4 हजार जल संरक्षण बांध.
  • 5 लाख तालाब, दस लाख जल संग्रह संरचनाएं और दस हजार वर्ष जल संग्रहण संरचनाएं.

    कोर्ट से लेकर सरकार रहीं गंभीर, लेकिन नहीं निकला परिणाम
    भूजल विशेषज्ञ सिन्हा के मुताबिक, वर्ष 1997 को सुप्रीम आदेश पर केंद्र सरकार ने भूजल प्राधिकरण का गठन किया गया था. जिसका कार्य था कि वह राज्यों से तालमेल कर भूजल दोहन की समस्या का समाधान के लिए एक तंत्र तैयार करे. हालांकि इसमें कुछ खास सकारात्मक परिणाम नहीं निकल सके. इसके बाद केंद्र सरकार ने कई बार राज्य सरकारों से खुद का एक प्रथक कानून बनाने के लिए कहा. लेकिन राज्य सरकारें इस पर गंभीर नहीं रही. वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने भूजल को लेकर एक एक्ट बनाकर कोशिश की लेकिन इसके बाद भी सरकारी स्तर पर इसकी स्वीकृति नहीं मिल पाई. भूजल प्राधिकरण के पास अनेक शक्तियां हैं. लेकिन केंद्र न ही राज्य सरकार इसको लेकर चिंतित नहीं हैं.

जल संकट से बचने का उपाय

  • पहाड़ी नालों और नदियों पर चेक डैम बने और कृषि के लिए वर्षाजल संग्रह का विस्तार हो.
  • तालाबों और झीलों का अस्तित्व बहाल कर इन्हें प्रदूषण से मुक्त किया जाए.
  • जल संसाधनों के निजीकरण पर सख्ती से लगे रोक, इस पर सभी का हक होना चाहिए.
  • भूजल दोहन पर नियंत्रण के लिए कानून हो.
  • जल, जंगल और जमीन एक दूसरे के पूरक हैं, इनका प्रबंधन एक ही विभाग के पास होना चाहिए. ताकि कार्य में ताल मटोल न हो सके.

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