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'शिक्षा विभाग का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण', कुलपति का वेतन रोकने पर शिक्षाविद ने जताया विरोध

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 2, 2024, 7:20 PM IST

Bihar VC Salary Stopped: बिहार में कुलपति का वेतन रोकने पर शिक्षाविद ने शिक्षा विभाग के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. शिक्षाविद का मानना है कि विश्विद्यालय सरकार का अंग नहीं है, बल्कि सरकार सिर्फ वेतन देती है. विवि राज्यपाल के अधीन काम करता है. पढ़ें पूरी खबर.

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कुलपति का वेतन रोकने के मामले में शिक्षाविद से बातचीत

पटनाः शिक्षा विभाग की बैठक में कुलपति के शामिल नहीं होने पर वेतन रोके जाने और वित्तीय अधिकार छीने जाने का शिक्षाविदों ने पुरजोर विरोध किया है. शिक्षा विभाग के इस कार्रवाई के फैसले का विरोध करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद प्रोफेसर एनके चौधरी ने शिक्षा विभाग के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है. उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग का यह तर्क बिल्कुल गलत है.

'विवि सरकार के अधीन नहीं': रिटार्यड प्रोफेसर ने कहा कि विभाग विश्वविद्यालयों को पैसा देता है. इसलिए उनके साथ समीक्षा बैठक कर सकती है. सरकार तो विधि विभाग के माध्यम से न्यायपालिका को भी पैसा देती है. यह स्थिति रही तो आगे चलकर कोई सचिव हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को बुलाकर समीक्षा बैठक करने लगेगा. उन्होंने स्पष्ट कहा कि विवि सरकार के अधीन नहीं है.

"सरकार सिर्फ विश्वविद्यालय के संचालन के लिए पैसा उपलब्ध कराती है. विश्वविद्यालय अपने आप में स्वायत्त संस्था है. विश्वविद्यालय पर यदि सरकार का नियंत्रण हुआ तो सरकार अपनी विचारधारा थोपेगी. नए विचारों का सृजन नहीं होगा. विश्वविद्यालय की कर्मचारी सरकारी कर्मी नहीं होते हैं. शिक्षा विभाग का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है." -एनके चौधरी, रिटायर्ड प्रोफेसर

'कुलपति विवि के कार्यों की मॉनिटरिंग करते हैं': एनके चौधरी ने कहा कि विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों और अन्य कर्मियों को सरकारी कर्मी को जो सहूलियत और छुट्टियां मिलती है वह नहीं मिलती. विश्वविद्यालय के शिक्षक चुनाव लड़ने जाते हैं तो उन्हें अपने पद से रिजाइन नहीं करना पड़ता. प्रदेश में विश्वविद्यालयों का संचालन बिहार यूनिवर्सिटी एक्ट 1976 के तहत होता है. इसमें विश्वविद्यालय के कार्यों की प्रतिदिन मॉनिटरिंग कुलपति करते हैं.

'बैठक के लिए बुलाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण': उन्होंने कहा कि बिहार में कुछ विश्वविद्यालय को छोड़कर सभी विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति राज्यपाल होते हैं. राज्यपाल संवैधानिक पद है और उन्हें कुलाधिपति का दायित्व यूनिवर्सिटी एक्ट के तहत मिलता है. कुलाधिपति पद की गरिमा को देखते हुए राज्यपाल को पदेन कुलाधिपति बनाया गया है. ऐसे में शिक्षा विभाग को विश्वविद्यालय की कुलपतियों की बैठक बुलाने का कोई अधिकार नहीं है. बैठक के लिए बुलाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण था.

'कुलाधिपति के गरिमा के विरुद्ध फैसला': कुलपतियों ने अपने सर्वोच्च अधिकारी कुलाधिपति से इसके लिए अनुमति मांगी और अनुमति नहीं मिली तो कुलपति बैठक में शामिल नहीं हुए. कुलपतियों ने नियम से काम किया लेकिन शिक्षा विभाग की ओर से कुलपतियों द्वारा कुलाधिपति से चर्चा किए जाने को मूर्खतापूर्ण करार दिए जाना कुलाधिपति के गरिमा के विरुद्ध है.

'सीएम को लेना चाहिए संज्ञान': एनके चौधरी ने बताया कि कुलपतियों का वेतन रोकना और उनके वित्तीय अधिकार फ्रिज करना शिक्षा विभाग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. यह जो कुछ भी बिहार में घटनाक्रम हुआ है इस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संज्ञान लेते हुए विभाग के अधिकारियों को संवैधानिक नियमों के अनुरूप काम करवाना चाहिए.

राज्यपाल के प्रधान सचिव ने लिया एक्शनः बता दें कि कुलपतियों पर‌ विभाग द्वारा किए गए कार्रवाई राज भवन ने संज्ञान लिया है. राज्यपाल के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंग्थू ने राज्य के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को पत्र लिखा है. राज्यपाल के प्रधान सचिव ने कहा है कि उच्च शिक्षा निदेशक ने पत्र लिखकर किसी अन्य प्राधिकार से मार्गदर्शन मांगने को मूर्खतापूर्ण और अनुचित कदम बताया है.

कार्रवाई की मांगः पत्र के माध्यम से राज्यपाल के प्रधान सचिव ने कहा कि कुलपतियों ने मार्गदर्शन किसी अन्य प्राधिकार से नहीं बल्कि कुलाधिपति से मांगा था. बिहार यूनिवर्सिटी एक्ट 1976 के अनुसार कुलपतियों को कुलाधिपति से मार्गदर्शन का अधिकार है. उन्होंने ऐसे पत्र जारी करने वाले अधिकारी पर मुख्य सचिव से कार्रवाई की भी मांग कर दी है.

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