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आंकड़े गवाह हैं.. वोट डालने में अव्वल लेकिन टिकट पाने में पीछे, सवाल- कब मिलेगी आधी आबादी को तरजीह?

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 5, 2024, 8:32 PM IST

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Aadhi Aabadi: 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियां जोर पकड़ चुकी हैं.लेकिन चुनाव में वोट डालने में अव्वल आधी आबादी के लिए दिल्ली अभी भी दूर है. हालांकि संसद से महिला आरक्षण बिल पास हो गया है, लेकिन ये 2029 के लोकसभा चुनाव से ही अमल में आ पाएगा.जाहिर है तब बिहार की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व लोकसभा और विधानसभा में बेहतर हो पाएगा. पढ़िये पूरी खबर,

आधी आबादी

पटना: कहने को तो आधी आबादी है लेकिन चुनावी सियासत में नाममात्र का प्रतिनिधित्व. लोकसभा हो या फिर विधानसभा का चुनाव महिलाओं की उम्मीदवारी शायद ही किसी दल की प्राथमिकता में रहता हो. पिछले कई चुनावी आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं. हालांकि 33 फीसदी वाला महिला आरक्षण बिल संसद से पास हो गया है, लेकिन वो 2029 के लोकसभा चुनाव से ही लागू हो पाएगा...

बिहार की 40 सांसदों में सिर्फ 3 महिलाएं: बिहार के आंकड़ों पर नजर डालें तो सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है, जहां 40 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 3 लोकसभा सीटों से ही महिलाएं सांसद हैं. शिवहर से रमा देवी, वैशाली से वीणा सिंह और सिवान से कविता सिंह यानी बिहार की सिर्फ 7.5 फीसदी सीटों पर ही महिलाओं का प्रतिनिधित्व है.

पिछले कुछ चुनावों पर नजर: सिर्फ 2019 ही नहीं इसके पीछे के आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे हैं कि किसी भी दल ने चुनावी सियासत में महिलाओं की भागीदारी को ज्यादा महत्व नहीं दिया. 2009 में बिहार से 4 महिला सांसद जीत कर गई थीं. 2014 में ये संख्या 3 रह गयी और 2019 में भी 3 से आंकड़ा आगे नहीं बढ़ पाया.

पटना के 70 साल के चुनावी सफर में अब तक 1 महिला सांसदः बिहार की राजधानी पटना की चुनावी सियासत की बात करें तो पिछले 70 साल से अधिक के चुनावी सफर में सिर्फ एक महिला सांसद चुनकर गई हैं वो भी 1962 में जब कांग्रेस की रामदुलारी सिन्हा पटना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंची थीं.

ईटीवी भारत GFX.
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उत्तर बिहार के आंकड़े भी उत्साहजनक नहींः उत्तर बिहार की 13 लोकसभा क्षेत्र में 1952 से अब तक हुए 17 चुनाव में सिर्फ 11 महिला ही दिल्ली पहुंची हैं. शिवहर में ये आंकड़ा थोड़ा बेहतर है जहां 6 बार महिला सांसद रही हैं .1962, 1980, 1984 में कांग्रेस के टिकट पर रामदुलारी सिन्हा चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंची थीं . उसके बाद 2009 से लेकर अब तक बीजेपी की रमा देवी सांसद बनती रही हैं.

बेगूसराय से 3 बार महिला सांसद: बेगूसराय की सीट पर 17 लोकसभा चुनाव में तीन बार ये सीट महिला खाते में गई है हालांकि केवल कृष्ण शाही ही वहां से सांसद बनी हैं. कृष्णा शाही 1980, 1984 और 1991 में बेगूसराय से सांसद रहीं. वहीं मोतिहारी सीट से 1984 में कांग्रेस की प्रभावती गुप्ता और 1998 में आरजेडी से रमा देवी सांसद चुनी गई थीं.

किसी पार्टी ने नहीं दी तवज्जोः आधी आबादी को चुनाव में उतारने के मामले में सभी पार्टियों का हाल एक जैसा ही रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में 47 महिलाओं ने किस्मत आजमाई, हालांकि इनमें सिर्फ 12 महिलाओं को ही प्रमुख सियासी दलों को सिंबल मिला थाा, जिनमें आरजेडी ने पांच, कांग्रेस ने तीन बीजेपी ने दो और एलजेपी ने दो. जिनमें जिनमें 3 जीतने में सफल पर रहीं. आरजेडी से रंजीता रंजन, बीजेपी से रमा देवी और एलजेपी से वीणा देवी.

2019 के चुनाव में यही हालः 2019 के चुनाव में भी कुल 56 महिलाओं ने चुनाव लड़ा. प्रमुख दलों की बात करें तो 6 सीटों पर महा गठबंधन से महिला प्रत्याशी थीं, जबकि तीन सीट पर एनडीए ने आधी आबादी को टिकट दिया था. एनडीए की तीनों महिला उम्मीदवारों रमा देवी शिवहर से, कविता सिंह सिवान से और वीणा देवी ने वैशाली से जीत हासिल की थी.

ईटीवी भारत GFX.
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वोट देने मेंं आगे टिकट में पीछेः पिछले 3 लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो 2009 में 46 महिला कैंडिडेट में 4 ही जीत पाईं, वहीं 2014 में 47 महिलाओं में 3 ने जीत हासिल की वहीं 2019 में 56 महिलाओं ने चुनावी ताल ठोंकी लेकिन 3 ही दिल्ली तक पहुंच पाई वहीं वोट देने की बात करें तो2014 में जहां 55.18 फीसदी पुरुषों ने वोटिंग की वहीं 57.66 फीसदी महिलाओं ने वोट किया. 2019 में भी महिलाएं वोट देने में आगे रहीं और पुरुषों के 55.6 फीसदी के मुकाबले 59.92 फीसदी वोटिंग की.

सभी दलों पर दबावः केंद्र सरकार ने 2023 में नारी शक्ति वंदन बिल तो पास करा लिया लेकिन ये 2029 से ही लागू पाएगा. हां, इतना जरूर है कि इस बिल के पास होने के बाद सियासी दलों पर ज्यादा महिला कैंडिडेट उतारने का दबाव है. बीजेपी की पहली लिस्ट में इसकी झलक भी दिख रही है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जिताऊ के चक्कर में महिलाओं का टिकट कट जाता है लेकिन आनेवाले दिनों में स्थिति बेहतर होनी तय है.

महिलाओं का रहेगा बोलबालाः महिलाओं को लेकर सभी दल बढ़-चढ़कर दावे करते रहे हैं. जेडीयू की महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष भारती मेहता का कहना है कि "नीतीश कुमार ने तो महिलाओं को पंचायत में 50 फीसदी आरक्षण दिया, नौकरियों में भी आरक्षण दिया है और लगातार महिलाओं को आगे बढ़ाने में लगे हैं." वहीं बीजेपी ने इस बार धर्मशीला गुप्ता को राज्यसभ में भी भेजा है. बीजेपी की विधायक निक्की हेम्ब्रम का कहना है कि 2029 से तो महिलाओं का ही बोलबाला रहेगा.

बढ़ रहा है महिलाओं का प्रतिनिधित्वः आंकड़े जरूर निराश करते हैं लेकिन ये भी सच है कि लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगातार बढ़ रहा है. 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा में सिर्फ 5 फीसदी महिलाएं थी जो अब बढ़कर 14.3 फीसदी हो गयी है हालांकि अमेरिका में ये आंकड़ा 32 फीसदी है जबकि पड़ोसी देश बांग्लादेश में 21 फीसदी है.17वीं लोकसभ में 78 महिलाएं सांसद है जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है.देश के कई राज्यों में महिला सांसदों का प्रतिनिधित्व बेहतर हुआ है लेकिन बिहार में अभी महिलाओं को लंबी लड़ाई लड़नी होगी.

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