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99 साल पुराना चिकित्सालय, जहां आज भी 2 रुपए में होता हर मर्ज का इलाज, प्रतिदिन आते हैं कई लोग - Treatment For 2 Rupees in Kuchaman

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 14, 2024, 6:52 PM IST

Patients are Treated for 2 Rupees, कुचामनसिटी में एक ऐसा अस्पताल है जहां 2 रुपए में हर मर्ज का इलाज होता है. ये चिकित्सालय 99 साल से चल रहा है. यहां साल भर में लगभग 12 हजार मरीज इलाज करवाने पहुंचते हैं. पढ़िए ये रिपोर्ट...

श्री सेवा समिति आयुर्वेदिक चिकित्सालय
श्री सेवा समिति आयुर्वेदिक चिकित्सालय (Etv Bharat GFX)

कुचामन सिटी का 99 साल पुराना चिकित्सालय (ETV Bharat Kuchaman City)

कुचामनसिटी. आज जब बीमारी के इलाज के लिए हजारों-लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं, ऐसे में एक अस्पताल ऐसा भी है, जहां हर मर्ज का इलाज महज 2 रुपए में होता है. इस चिकित्सालय में इलाज का सिलसिला आज से नहीं बल्कि पिछले लगभग एक शताब्दी से हो रहा है. यह है डीडवाना कुचामन जिले के कुचामन सिटी का श्री सेवा समिति आयुर्वेदिक चिकित्सालय, जिसकी स्थापना साल 1925 में हुई थी. 1925 के बाद से ही ये चिकित्सालय अनवरत रूप से लोगों की बीमारी का इलाज आयुर्वेद पद्धति से कर रहा है. 99 साल पहले बने इस चिकित्सालय में आज भी प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग लगभग निःशुल्क इलाज के लिए आ रहे हैं.

जड़ी-बूटी से काढ़ा बनाकर लोगों को पिलाया : कुचामन के इतिहासकार नटवर लाल वक्ता के मुताबिक सन 1920 में पूरे विश्व में इन्फ्लुएंजा नाम की बीमारी का प्रकोप हुआ. इस बीमारी के चपेट में आकर भारत देश में भी काफी लोगों की मौत हुई थी. नटवर लाल के अनुसार उस समय कुचामन में स्थानीय लोगों को इस बीमारी से बचाने के लिए, जागरूक लोगों ने विभिन्न जड़ी-बूटी से काढ़ा बनाकर शहर के लोगों को पिलाया था और उनकी जान बचाई थी. इन्फ्लूएंजा बीमारी के प्रकोप के समय कुन्दनमल बियाणी, रामजीवन झंवर, इन्द्रमल लढ़ा, किरोड़ीमल काबरा जैसे लोग काढ़ा पिलाने और अन्य सेवा कार्य में सबसे आगे थे.

जड़ी-बूटी से बनाते हैं औषधि
जड़ी-बूटी से बनाते हैं औषधि (ETV Bharat Kuchaman City)

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छोटी जगह पर चिकित्सालय का संचालन : इसके बाद कुन्दनमल बियाणी ने कुचामन शहर में एक औषधालय का सुझाव अपने साथियों को दिया. साथियों ने भी इस सुझाव को स्वीकार किया और सन् 1925 में कुन्दनमल बियाणी के प्रयासों से एक छोटी जगह पर चिकित्सालय का संचालन शुरू किया गया. बेहतरीन संचालन के लिए हरिप्रसाद काबरा, झूथालाल बाहेती, राधाकिशन लाटा बालकिशन झंवर जैसे लोगों को भी शामिल किया गया. साल 1940 में वर्तमान भवन में सेवा समिति आयुर्वेदिक चिकित्सालय को स्थानांतरित कर दिया गया, तब से लगातार इसी भवन से स्थानीय लोगों को चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं.

कोरोनाकाल में भी काढ़ा पिलाया गया : कुचामन के इस सेवा समिति आयुर्वेदिक चिकित्सालय की सबसे खास बात ये है कि यहां महज 2 रुपए प्रतिदिन में रोगियों को उपचार उपलब्ध कराया जाता है. यही वजह है कि विशेषतः गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए यह चिकित्सालय वरदान साबित हो रहा है. इस आयुर्वेदिक चिकित्सालय में 110 प्रकार की विभिन्न औषधियां, रोगियों के उपचार के लिए माैजूद हैं, जिनमें कई दुर्लभ और महंगी औषधियां भी शामिल हैं. चिकित्सालय का संचालन शहर के लोगों को जोड़कर बनाई गई एक समिति करती है. समिति के अध्यक्ष शिव कुमार अग्रवाल ने बताया कि सेवा समिति संगठन शहर में होने वाले विभिन्न मेले और उत्सवों का आयोजन करने के साथ श्री सेवा समिति आयुर्वेदिक चिकित्सालय का भी संचालन कर रही है. इसमें भामाशाहों का भी सहयोग लगातार मिलता है. कोरोनाकाल के समय में भी यह चिकित्सालय काफी मददगार साबित हुआ था. कई दिनों तक लोगों को काढ़ा पिलाया गया.

मरीज का इलाज करते हुए वैद्य
मरीज का इलाज करते हुए वैद्य (ETV Bharat Kuchaman City)

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आयुर्वेदिक चिकित्सालय हमारा गौरव: कुचामन के इस चिकित्सालय में कर्मचारियों की ओर से जड़ी बूटियों के जरिए औषधि तैयार की जाती है. सेवाएं देने वाले वैद्य और आयुर्वेदिक दवा तैयार करने वाले, दवाएं वितरित करने वाले कर्मचारियों को मानदेय भी समिति की ओर से दिया जा रहा है. अस्पताल के वैध कृष्ण गोपाल तिवाड़ी कहते हैं कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति हमारे देश की चिकित्सा पद्धति है. ये एलोपैथिक से कम खर्चीली और ज्यादा विश्वसनीय है, इसलिए लोगों को आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर यकीन रखकर उसे ही अपनाना चाहिए. कुचामन का ये आयुर्वेदिक चिकित्सालय हमारा गौरव है.

सरकारी सहयोग नहीं मिला है : कुचामन के श्री सेवा समिति आयुर्वेदिक चिकित्सालय अपने शताब्दी वर्ष में है और महज दो रुपए प्रतिदिन में लोगों का इलाज अपने स्तर पर ही कर रहा है. इस चिकित्सालय को ब्रिटिश राज से देश आजाद होने के बाद आज तक किसी भी तरह का सरकारी सहयोग नहीं मिला है. श्री सेवा समिति के जुड़े सदस्यों का कहना है कि पिछले लगभग 100 वर्षों से इस औषधालय का संचालन केवल भामाशाहों का सहयोग से ही किया जा रहा है.

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