ETV Bharat / opinion

रेड-सी संकट की वजह से बढ़ीं भारत की व्यापारिक चुनौतियां, फर्टिलाइजर-कैपिटल गु्ड्स सबसे अथिक प्रभावित

author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 21, 2024, 7:04 PM IST

Red Sea crisis
रेड सी संकट

रेड-सी संकट की वजह से भारत समेत पूरी दुनिया का व्यापार प्रभावित हो रहा है. सुएज मार्ग की जगह दूसरे रूट का प्रयोग करने की वजह से लागत बढ़ गई है. कैपिटल गुड्स, फर्टिलाइजर और फार्मा सेक्टर प्रभावित हुआ है. ऐसे में भारत के सामने व्यापारिक चुनौतियां बढ़ गई हैं. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार सुतोनुका घोषाल की एक रिपोर्ट.

नई दिल्ली : क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार रेड-सी संकट की वजह से भारत में कैपिटल गुड्स और फर्टिलाइजर सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. वैसे फार्मा, क्रूड ऑयल और शिपिंग सेक्टर भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहा है.

हमास पर इजराइल के हमले को रोकने के उद्देश्य से यमन के हूती विद्रोही एशिया से अमेरिका और यूरोप जाने वाले जहाजों को टारगेट कर रहे हैं. इसकी वजह से सुएज नहर का व्यापारिक रूट प्रभावित हुआ है. इस रूट के प्रभावित होने की वजह से व्यापारी अफ्रीकी मार्ग का सहारा ले रहे हैं. लेकिन यह रूट काफी लंबा पड़ता है. इस व्यवधान की वजह से न सिर्फ अधिक समय लग रहा है, बल्कि व्यापारिक लागत भी बढ़ रहा है. वह भी उस समय, जबकि पूरी दुनिया महंगाई से जूझ रही है. बिजनेस पर इसका कितना गंभीर प्रभाव पड़ेगा, इसका आकलन जारी है. यूरोप में तो पहले ही कमजोर मांग की वजह से व्यवसाय प्रभावित हो चुका है.

क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार सुएज नहर रूट प्रभावित होने की वजह से कैपिटल गुड्स सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. इन्वेंट्री की स्थिति गड़बड़ हो रही है. इसका असर इंजीनियरिंग और विनिर्माण क्षेत्रों पर भी पड़ेगा. यहां पर आपूर्ति बाधित हो रही है. कच्चे माल देरी से पहुंच रहे हैं. जाहिर है, फाइनल प्रोडक्ट भी देरी से बाजार में आएंगे. लागत अधिक होगा. इन्वेंट्री अधिक होगी. और ऑर्डर भी कम आएंगे.

मध्य पूर्व के देशों से भारत में आयात होने वाले फर्टिलाइजर ने संकट के संकेत देने शुरू कर दिए हैं. 15 दिनों की देरी से माल भारत पहुंच रहे हैं. लागत बढ़ चुकी है. जॉर्डन और इज़राइल से प्रमुख उर्वरक, म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) का आयात प्रमुख रूप से प्रभावित हुआ है. भारत को होने वाले एमओपी निर्यात में इजराइल की हिस्सेदारी 10-15% है, जबकि जॉर्डन की हिस्सेदारी 25-30% है. वैसे तो सरकार ने पर्याप्त बफर का आश्वासन दिया है, लेकिन लंबे समय तक ऐसी स्थिति बनी रही, तो बफर की स्थिति बदलेगी.

इसी तरह से भारतीय फॉर्मा सेक्टर का आधा रेवेन्यू निर्यात से आता है. सबसे अधिक अमेरिका और यूरोप को दवा निर्यात किया जाता है. अप्रैल से नवंबर 2023 के बीच दवा का जितना निर्यात किया गया था, उसका एक तिहाई निर्यात अकेले यूरोप को किया गया.

फार्मा सेक्टर जितना भी निर्यात करता है, उसका दो तिहाई हिस्सा समुद्र के रास्ते भेजा जाता है. इसके लिए रेड सी सबसे छोटा मार्ग है. लेकिन अब जो संकट सामने है, उसकी वजह से माल भाड़ा लागत काफी ऊपर जा चुका है. इसलिए मार्जिन का प्रभावित होना तय है.

अप्रैल-नवंबर 2023 के दौरान फार्मा सेक्टर में 12.5 प्रतिशत की दर से ग्रोथ रिकॉर्ड किया गया है. अमेरिका और यूरोप में दवा संकट की कमी को भारत ने दूर किया. पीक सीजन आने से पहले भारतीय बाजार में इसकी तैयारी की गई. और अब उसका फायदा मिलने वाला था, तभी रेड सी संकट ने पूरा कैलकुलेशन बदल दिया.

ऑयल सेक्टर को भी देख लीजिए. भारत कच्चे तेल को लेकर रूस, इराक और सऊदी अरब पर निर्भर है. रूस से 37 फीसदी, इराक से 21 फीसदी और सऊदी अरब से 14 फीसदी कच्चा तेल भारत आयात करता है. मात्रा की बात करें तो भारत का आयात प्रभावित नहीं हुआ है, लेकिन उसकी लागत जरूर बढ़ गई है. बीमा का खर्च भी अधिक हो गया है.

भारत ने 2023 में जितना भी तेल निर्यात किया है, उसमें 21 फीसदी हिस्सा यूरोप को निर्यात किया गया. पर अब वह स्थिति नहीं रही. क्रिसिल ने कहा है कि मध्य पूर्व के देशों में संकट और उसके बाद रेड सी में जहाजों पर हो रहे हमले की वजह से माल भाड़ा बढ़ गया है. तीन गुना अधिक भाड़ा वसूला जा रहा है. कंटेनर और वेसेल की लागत बढ़ी है. हालांकि कंटेनर कॉन्ट्रैक्ट पर प्राप्त किया जाता है. इसलिए वहां पर बहुत ज्यादा कॉस्ट शामिल नहीं होगा. लेकिन वेसेल की लागत जरूर प्रभावित करेगा. वेसेल को स्वेज नहर के माध्यम से पारगमन करने वाले जहाजों के लिए स्पॉट दरें - विशेष रूप से एशिया से यूरोप तक - लगभग पांच गुना बढ़ गई हैं. चीन से लेकर अमेरिका जाने वाले माल भाड़ा दोगुने हो चुके हैं.

लंबे रूट तय करने की वजह से पोर्ट पर वेसेल उपलब्ध नहीं हैं. दो-दो सप्ताह की देरी हो रही है. माल ढुलाई दरों में वृद्धि की तुलना में जहाज ऑपरेटर के लिए फेरे की अतिरिक्त लागत महत्वपूर्ण नहीं हो सकती है. स्वेज नहर टोल का भुगतान न करने से ऑपरेटर को लाभ हो सकता है. शिपिंग सेक्टर को लभा जरूर मिल रहा है. उनकी लागत जितनी है, उसके मुताबिक उन्हें अधिक लाभ मिल चुका है.

ये भी पढ़ें : क्या रूस और ईरान की वजह से हूती विद्रोहियों के निशाने से बच पाएगा भारत ?

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.