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जानें, क्यों मनाया जाता है विश्व दलहन दिवस

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 9, 2024, 7:19 PM IST

World Pulses Day 2024 : दाल कई तरह से फायदेमंद होता है. दाल हमें सेहतमंद बनाये रखता है. दलहन की खेती से किसानों को आर्थिक फायदा होता है. दलहन की खेती से खेतों की मिट्टी सेहतमंद रहती है, खासकर यह नाइट्रोजन की मात्रा को संतुलित रखता है. पढ़ें पूरी खबर....

World Pulses Day 2024
World Pulses Day 2024

हैदराबाद : दाल उच्च प्रोटीन सामग्री का मुख्य स्रोत होने के कारण शाकाहारी भोजन का मुख्य अव्यव है. एक ओर दाल इंसानी सेहत के लिए जरूरी है. वहीं कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार खेतों की उर्वरा शक्ति को बेहतर बनाने के लिए दालों के साथ अंतरफसल उगाना बेहतर है. इससे जानवरों और कीड़ों के बेहतर विविध परिदृश्य तैयार होते हैं. दूसरी ओर भारत में दलहन फसलों के निर्यात से बड़े वित्तीय लाभ प्राप्त होते हैं, जिससे किसानों, व्यापारियों और सरकार के आर्थिक सेहत भी बेहतर होते हैं.

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विश्व दलहन दिवस का इतिहास
दलहन की महत्ता को देखते हुए ने 20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2016 को अंतरराष्ट्रीय दलहन वर्ष घोषित करने का निर्णय लिया. इसके तहत साल 2016 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की अगुवाई में वैश्विक स्तर पर टिकाऊ खाद्य उत्पादन में दलहन की खेती के फायदे, दोलों के पोषक और पर्यावरणीय फायदे के बारे में सार्वजिनक जागरूता फैलायी गई. वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय दलहन वर्ष की सफलता के आधार पर संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के कुल 8 लक्ष्यों की पूर्ति करने की क्षमता को पहचान कर बुर्किना फासो ने विश्व दलहन दिवस प्रस्तावित किया. साल 2019 में 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस मनाने का निर्णय लिया गया.

दलहन से जुड़े तथ्य

  1. भारत में चना, अरहर, मूंग, मसूर, उड़द, मटर सहित अन्य दलहन की खेती मुख्य रूप से होती है.
  2. दलहन की खेती मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में होती है.
  3. वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत ने दुनिया भर के विभिन्न देशों में 775024.48 मीट्रिक टन दालों का निर्यात किया गया. इस दौरान 5397.86 करोड़ (672.31 अमेरिकी डॉलर मिलियन) का राजस्व प्राप्त हुआ.
  4. दाल का निर्यात मुख्य रूप से चीन, बांग्लादेश, यूएई, यूएसए और नेपाल जैसे देशों में किया गया था.
  5. दालें प्रोटीन का प्रमुख स्रोत हैं.
  6. भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है.
  7. दालों में वजन के अनुपात में 20 से 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है जो गेहूं से दोगुना और चावल से 3 गुना अधिक होता है.
  8. आज के समय में दलहन का रेट अन्य फसलों के अनुपात में ज्यादा है. इस कारण किसानों के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से लाभदायक है.
  9. दाल की खेती से मिट्टी में प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन का संतुलन हो जाता है. इससे सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भरता कम हो जाता है.
  10. दालों में वसा की मात्रा कम होने के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में घुलनशील फाइबर होता है, जो शरीर में कोलेस्ट्रॉल को कम करता है. साथ ही इससे शर्करा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है.
  11. संतुलित मात्रा में दाल के सेवन से मोटापा नियंत्रित रहता है.
  12. दाल मधुमेह व हृदय जैसे गैर-संचारी रोगों के प्रबंधन में कारगर है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दलहन की फसलों में नाइट्रोजन-फिक्सिंग गुण मिट्टी की उर्वरता में गुणात्माक सुधार होता है. दालें अत्यधिक जल कुशल होती हैं. वैज्ञानिक डेटा के अनुसार एक किलो दाल के उत्पादन में 1250 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. वही एक किलो पशु मांस के उत्पादन में 13,000 लीटर पानी की जरूरत होती है.

दलहन से पर्यावरणीय लाभ
किसी खास जमीन पर लगातार एक ही फसल की खेती करने से संबंधित भूमि की उर्वरा क्षमता प्रभावित होती है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार दलहन की खेती से नाइट्रोजन-स्थिरीकरण गुण मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है और कृषि भूमि की उत्पादकता में सुधार होता है. इसके अलावा दलहन की खेती से हानिकारक कीटों और बीमारियों को दूर रखने में मदद मिलती है.

प्रमुख फसलों का 2022-23 के दौरान उत्पादन (अनुमानित )

  1. खाद्यान्न- 3296.87 लाख टन
  2. चावल - 1357.55 लाख टन
  3. गेहूं - 1105.54 लाख टन
  4. मोटा अनाज - 573.19 लाख टन
  5. मक्का- 380.85 लाख टन
  6. दालें - 260.58 लाख टन
  7. तुअर - 33.12 लाख टन
  8. चना- 122.67 लाख टन
  9. तिलहन- 413.55 लाख टन
  10. मूंगफली- 102.97 लाख टन
  11. सोयाबीन - 149.85 लाख टन
  12. रेपसीड और सरसों- 126.43 लाख टन
  13. गन्ना- 4905.33 लाख टन
  14. कपास- 336.60 लाख गांठें (प्रत्येक 170 किलोग्राम की)

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हैदराबाद : दाल उच्च प्रोटीन सामग्री का मुख्य स्रोत होने के कारण शाकाहारी भोजन का मुख्य अव्यव है. एक ओर दाल इंसानी सेहत के लिए जरूरी है. वहीं कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार खेतों की उर्वरा शक्ति को बेहतर बनाने के लिए दालों के साथ अंतरफसल उगाना बेहतर है. इससे जानवरों और कीड़ों के बेहतर विविध परिदृश्य तैयार होते हैं. दूसरी ओर भारत में दलहन फसलों के निर्यात से बड़े वित्तीय लाभ प्राप्त होते हैं, जिससे किसानों, व्यापारियों और सरकार के आर्थिक सेहत भी बेहतर होते हैं.

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विश्व दलहन दिवस का इतिहास
दलहन की महत्ता को देखते हुए ने 20 दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2016 को अंतरराष्ट्रीय दलहन वर्ष घोषित करने का निर्णय लिया. इसके तहत साल 2016 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की अगुवाई में वैश्विक स्तर पर टिकाऊ खाद्य उत्पादन में दलहन की खेती के फायदे, दोलों के पोषक और पर्यावरणीय फायदे के बारे में सार्वजिनक जागरूता फैलायी गई. वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय दलहन वर्ष की सफलता के आधार पर संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के कुल 8 लक्ष्यों की पूर्ति करने की क्षमता को पहचान कर बुर्किना फासो ने विश्व दलहन दिवस प्रस्तावित किया. साल 2019 में 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस मनाने का निर्णय लिया गया.

दलहन से जुड़े तथ्य

  1. भारत में चना, अरहर, मूंग, मसूर, उड़द, मटर सहित अन्य दलहन की खेती मुख्य रूप से होती है.
  2. दलहन की खेती मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में होती है.
  3. वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत ने दुनिया भर के विभिन्न देशों में 775024.48 मीट्रिक टन दालों का निर्यात किया गया. इस दौरान 5397.86 करोड़ (672.31 अमेरिकी डॉलर मिलियन) का राजस्व प्राप्त हुआ.
  4. दाल का निर्यात मुख्य रूप से चीन, बांग्लादेश, यूएई, यूएसए और नेपाल जैसे देशों में किया गया था.
  5. दालें प्रोटीन का प्रमुख स्रोत हैं.
  6. भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है.
  7. दालों में वजन के अनुपात में 20 से 25 प्रतिशत प्रोटीन होता है जो गेहूं से दोगुना और चावल से 3 गुना अधिक होता है.
  8. आज के समय में दलहन का रेट अन्य फसलों के अनुपात में ज्यादा है. इस कारण किसानों के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से लाभदायक है.
  9. दाल की खेती से मिट्टी में प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन का संतुलन हो जाता है. इससे सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भरता कम हो जाता है.
  10. दालों में वसा की मात्रा कम होने के साथ-साथ प्रचुर मात्रा में घुलनशील फाइबर होता है, जो शरीर में कोलेस्ट्रॉल को कम करता है. साथ ही इससे शर्करा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है.
  11. संतुलित मात्रा में दाल के सेवन से मोटापा नियंत्रित रहता है.
  12. दाल मधुमेह व हृदय जैसे गैर-संचारी रोगों के प्रबंधन में कारगर है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दलहन की फसलों में नाइट्रोजन-फिक्सिंग गुण मिट्टी की उर्वरता में गुणात्माक सुधार होता है. दालें अत्यधिक जल कुशल होती हैं. वैज्ञानिक डेटा के अनुसार एक किलो दाल के उत्पादन में 1250 लीटर पानी की आवश्यकता होती है. वही एक किलो पशु मांस के उत्पादन में 13,000 लीटर पानी की जरूरत होती है.

दलहन से पर्यावरणीय लाभ
किसी खास जमीन पर लगातार एक ही फसल की खेती करने से संबंधित भूमि की उर्वरा क्षमता प्रभावित होती है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार दलहन की खेती से नाइट्रोजन-स्थिरीकरण गुण मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है और कृषि भूमि की उत्पादकता में सुधार होता है. इसके अलावा दलहन की खेती से हानिकारक कीटों और बीमारियों को दूर रखने में मदद मिलती है.

प्रमुख फसलों का 2022-23 के दौरान उत्पादन (अनुमानित )

  1. खाद्यान्न- 3296.87 लाख टन
  2. चावल - 1357.55 लाख टन
  3. गेहूं - 1105.54 लाख टन
  4. मोटा अनाज - 573.19 लाख टन
  5. मक्का- 380.85 लाख टन
  6. दालें - 260.58 लाख टन
  7. तुअर - 33.12 लाख टन
  8. चना- 122.67 लाख टन
  9. तिलहन- 413.55 लाख टन
  10. मूंगफली- 102.97 लाख टन
  11. सोयाबीन - 149.85 लाख टन
  12. रेपसीड और सरसों- 126.43 लाख टन
  13. गन्ना- 4905.33 लाख टन
  14. कपास- 336.60 लाख गांठें (प्रत्येक 170 किलोग्राम की)

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