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इस घटना ने बदल दिया था कांशीराम का जीवन, लिए तीन प्रण और बनाई बहुजन समाज पार्टी - Kanshi Ram

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 9, 2024, 1:15 PM IST

Updated : Apr 9, 2024, 2:26 PM IST

loksabha election 2024
कांशीराम और बसपा का गठन

Kanshi Ram यूपी में किसी समय राज करने वाली बहुजन समाज पार्टी की स्थापना छत्तीसगढ़ के कोरबा में हुई थी. कांशीराम पहली बार साल 1984 में जांजगीर लोकसभा से चुनाव लड़े और हार गए. इस हार के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ छोड़ दिया और यूपी चले गए. लोकसभा चुनाव से पहले कांशीराम से जुड़ी कई अनसुनी बातों को ETV भारत के साथ साझा किया बसपा के संस्थापक सदस्य ऋषिकर भारती ने. loksabha election 2024 Bahujan Samaj Party

पहली बार कांशीराम जांजगीर लोकसभा से लड़े थे चुनाव

कोरबा: उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सफलता के झंडे गाड़ने वाली समाज के दलित, शोषित और पिछड़ों की पार्टी का तमगा बहुजन समाज पार्टी को मिला. इस पार्टी के इतिहास से ज्यादातर लोग आज भी रूबरू नहीं हैं. यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि जिस पार्टी ने यूपी में राज किया, उसकी स्थापना छत्तीसगढ़ में हुई. कोरबा से इस पार्टी की शुरुआत हुई. कांशीराम के साथ बसपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल ऋषिकर भारती आज भी कोरबा में मौजूद हैं. जो अभी भी दलित और पिछड़ों को एकजुट करने के लिए प्रयासरत हैं. भारती का दावा है कि कांशीराम के समय जो संस्थापक सदस्य थे, जो बहुजनों की बात करते थे. वह टुकड़ों में बंट गए हैं. यदि आज भी वह एकजुट हो जाएं, तो मायावती इस देश की प्रधानमंत्री बन सकती हैं.

कोरबा में हुआ बसपा पार्टी का गठन

बहुजन समाज पार्टी की स्थापना इसके इतिहास और वर्तमान में पार्टी की स्थिति को लेकर कांशीराम के करीबी रहे बसपा के संस्थापक ऋषिकर भारती से ETV भारत ने खास बातचीत की है.

सवाल: बहुजन समाज पार्टी की जो स्थापनी हुई थी उसका पहले का इतिहास क्या है. आपकी कांशीराम से कैसे मिले?

जवाब: बहुजन समाज पार्टी का जो उद्देश्य रहा है. इसका एक मुख्य पहिया अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासभा(The All India Backward And Minority Communities Employees Fedration- BAMCEF) था. जो अधिकारी और कर्मचारियों का एक संगठन था. बामसेफ की स्थापना 76 में हुई. इसके बाद 79 के आसपास DS4( दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) बना और फिर 84 में इन संगठनों से होते हुए अंततः बहुजन समाज पार्टी का गठन हुआ. उस समय लाल किले से हमने इस पार्टी की घोषणा की थी. कोरबा में बामसेफ 78 में आया. उस समय मैं यहां कोरबा के बालको में काम कर रहा था और सामाजिक संगठन राष्ट्रीय एकता और मानव रक्षा समिति के लिए काम कर रहा था. जिसमें बाबा साहब के उद्देश्यों को लेकर हम सभाएं करते थे. उस समय अब्दुल गफ्फार खान नामक कर्मचारी थे, जिन्होंने मुझे बामसेफ के बारे में बताया. मैंने बालकों के कर्मचारियों को इससे जोड़ा और वहां से हमने इसकी शुरुआत की. बामसेफ के बैनर तले हमने पहली बार बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती मनाए जाने की शुरुआत की. एक शोभायात्रा का भी आयोजन हमने किया था. उसे समय के जो कर्मचारी थे, उन सभी ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया. यह बामसेफ और बहुजन समाज पार्टी की नींव के शुरुआती दिन थे.

सवाल: कांशीराम जी कोरबा कब आए. उनसे आप कैसे जुड़े ?

जवाब: बामसेफ का काम कोरबा में अच्छा चलने लगा. 1979 में कांशीराम कोरबा आए. 1980 में दोबारा आए. यहां बामसेफ से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों की मीटिंग करने लगे. यहां बामसेफ के जरिए बड़े कार्यक्रम भी किए गए.

सवाल: कांशीराम जी का व्यक्तित्व किस तरह का है. मूलत: वह कहां के रहने वाले हैं.


जवाब: कांशीराम एक डायनामिक पर्सनेलिटी रहे हैं, लेकिन उन्हें खुद ही अपने उद्देश्य के बारे में पता नहीं था. पुणे में वह एक सरकारी डिफेंस कंपनी में काम करते थे. जहां वह साइंटिफिक ऑफिसर थे. महाराष्ट्र में बाबा साहेब अंबेडकर को मानने वाले लोग बड़े पैमाने पर हैं. बाबा साहब की जयंती को मनाने के लिए उनकी फैक्ट्री में एक सफाई कामगार ने बाबासाहेब अंबेडकर के जयंती मनाने के लिए नौकरी दांव पर लगा दी थी. इस घटना ने उनके जीवन को बदल दिया. उन्होंने सोचा कि एक छोटा कर्मचारी अंबेडकर की जयंती बनाने के लिए नौकरी छोड़ने को तैयार है. उसके बाद उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर को पढ़ने लगे. महाराष्ट्र में डीके खपर्ड जी के संपर्क में आए. जिन्होंने बाबासाहेब अंबेडकर से जुड़ी किताबें उपलब्ध कराई, कांशीराम ने वह किताब पढ़ी.

अंबेडकर की किताब को पढ़ने के बाद वह रात भर नहीं सोए और बेहद बेचैन हो गए. भारत के सोशल स्ट्रक्चर को बदलने की उन्होंने ठान ली. जिस सफाईकर्मी ने नौकरी छोड़ी थी. उसे प्रोटेक्ट भी किया. इसके साथ ही तीन बड़ी शपथ लिया. "शादी नहीं करूंगा, संपत्ति नहीं रखूंगा और किसी भी अय्याशी वाले कार्यक्रम में नहीं जाऊंगा". इस संकल्प के साथ वह देश के दलित, शोषित, समाज को एकजुट करने में जुट गए. उन्होंने अभियान शुरू कर दिया. उन्हें मालूम था कि उनके पास कोई धन, दौलत वाला आदमी नहीं है. इसलिए उनका फोकस कर्मचारियों पर रहता था. एक अभियान चलाया, कर्मचारियों को मोटिवेट किया और अपने आय का एक हिस्सा संगठन को देने की योजना बनाई. इसके बाद भारत में एक बहुत बड़ा सामाजिक संगठन खड़ा हुआ.


सवाल: कांशी राम से आपकी पहली मुलाकात कब हुई. किस तरह से आप उनकी सोच को लेकर आगे बढ़े. फिर कब इसकी स्थापना हुई. ?


जवाब: कांशीराम जी का जो अभियान था. वह DS4 के माध्यम से हम आगे बढ़ा रहे थे. उसे समय चाहे अनचाहे एक नारा बन गया. अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और जो अल्पसंख्यक मुस्लिम, ईसाइयों को लेकर चलने वाला हमारा संगठन था. कहा गया कि "ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर छोड़ बाकी सब हैं DS4". डीएसफोर को किसी ने चोर कर दिया. लेकिन इस नारे ने काफी कुछ बदल दिया. इस नारे के बाद काफी परिवर्तन आया. काफी लोग हमसे जुड़ने लगे. कांशीराम इससे कभी भी सहमत नहीं थे. हम भी सहमत नहीं थे. इस नारे को समझाने में काफी समझ लग गया. इस नारे के माध्यम से हम किसी को टारगेट नहीं करना चाहते थे, ना कि यह कोई सांप्रदायिक नारा था. हम बहुजन समाज को जोड़ना चाहते थे. यही हमारा एक लक्ष्य था.

सवाल: पहले बामसेफ फिर DS4 संगठन बना. कांशीराम और आप लोगों को कब लगा कि इसे एक राजनीतिक पार्टी का रूप देना चाहिए?


जवाब: DS4 की ख्याति बढ़ रही थी. लोग हमसे जुड़ रहे थे. लेकिन अब हमें जरूरत और आगे जाने की महसूस होने लगी. DS4 के बाद हमने सोचा कि वास्तव में बदलाव लाना है, तो हमें सत्ता में आना होगा. तब तक दलित समाज का उद्धार नहीं हो सकता है. DS4 से भी हमने एक चुनाव लड़ा. उस समय हरियाणा के विधानसभा में चुनाव लड़े, लेकिन तब पार्टी का कोई रजिस्ट्रेशन नहीं था. इसके बाद हमें महसूस हुआ कि एक पार्टी रजिस्टर्ड करना चाहिए. ताकि हमारे नाम और काम का कोई दुरुपयोग ना करें.

कांशीराम जी ने सबसे सुझाव लिया. किसी ने कहा पार्टी का नाम रिपब्लिकन कांशीराम रखा जाए, क्योंकि उस समय तत्कालीन रिपब्लिकन पार्टी को ही कांशीराम आगे बढ़ना चाहते थे. जिसमें उन्होंने 8 साल काम भी किया लेकिन फिर उन्होंने देखा कि रिपब्लिकन पार्टी के नेता भी कई गुटों में बंट गए. फिर उन्होंने सोचा कि हम एक स्वतंत्र पार्टी बनाना है. मैंने भी सुझाव दिया कि बहुजन रिपब्लिकन ऐसा कुछ शब्द हमने इजाद किया था. लेकिन अंत में यह तय हुआ कि हम बहुजन समाज पार्टी के नाम से पार्टी बनाएंगे. लेकिन नीला झंडा, हाथी छाप यह सभी रिपब्लिकन पार्टी का ही कॉन्सेप्ट था. 1984 में हमने इसकी घोषणा की. तब दाऊराम रत्नाकर के साथ ऐसे कई लोग हमारे साथ आये. हम 16 संस्थापक सदस्य थे. जिसमें मैं भी शामिल था.नेशनल लेवल पर मैं मीडिया और प्रचार प्रसार का काम करने लगा.

सवाल: इसकी स्थापना कोरबा जिले में हुई. पहली सभा कहां हुई.

जवाब: कोरबा में ही पार्टी बनी. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जो चुनाव हुआ. कांशीराम जी ने बसपा के टिकट से अपना पहला चुनाव जांजगीर लोकसभा से ही लड़ा था. उस समय इंदिरा गांधी की मौत के बाद कांग्रेस के पक्ष में लहर थी. बहुत बड़े पैमाने पर कांग्रेस को सीटें मिली थी. इसलिए कांशीराम चुनाव हार गए थे.

सवाल: जांजगीर लोकसभा से चुनाव हारने के बाद उनका क्या हृदय परिवर्तन हुआ. कोरबा छोड़कर कहीं और चले गए.

जवाब: चुनाव हारने के बाद कांशीराम जी ने गहरा मंथन किया. उन्होंने सोचा कि छत्तीसगढ़ में जो जमीन तैयार करने की कोशिश उन्होंने की. उसमें वह सफल नहीं हुए. उनका हर कार्यक्रम एक टाइम बॉन्ड के अनुसार चलता था. मैंने भी कसम खा ली थी कि जब तक कांशीराम को प्रधानमंत्री नहीं बनाएंगे शादी नहीं करुंगा. यह मेरा संकल्प है. उनके प्रति मैं भी काफी समर्पित था. कांशीराम जी अपनी मां और पिता के अंतिम संस्कार में भी नहीं गए थे. वह इतने समर्पित थे. इस तरह से मैंने भी सारे सामाजिक कार्यक्रमों को त्याग दिया था. मैं छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के साथ ही सारे भारत में घूमता था. बसपा का काम करता था. पूरा आंकलन किया कि मुझे जो कार्यक्षेत्र बनाना था. वह क्यों नहीं बन पाया. पहले उन्होंने महाराष्ट्र में कोशिश की फिर छत्तीसगढ़ आए लेकिन छत्तीसगढ़ में असफल होने के बाद हताश होने के बाद फिर वह उत्तर प्रदेश की तरफ उन्होंने अपना रुख किया.

सवाल: क्या कारण था कि पार्टी की स्थापना छत्तीसगढ़ में हुई लेकिन यहां पार्टी का जनाधार नहीं रहा और यूपी के लोगों ने हाथोंहाथ लिया?


जवाब: उत्तरप्रदेश में दबंगई, जमींदारी और सामंतवादी शक्तियों का अधिक प्रकोप है. वैसा छत्तीसगढ़ में नहीं है. बाहरी लोगों की संख्या यहां काम है. छत्तीसगढ़ में ज्यादा लोग भी नहीं थे, अभी भले ही आगमन हो रहा है. लेकिन तब यहां पर उतनी संख्या नहीं थी. दूसरी बात छत्तीसगढ़ में यह भी थी कि संत महापुरुषों का ऐसा चलन था कि निचलों का शोषण करो और उस पर धर्म का लेबल लगा दो. छत्तीसगढ़ में हमने बड़े पैमाने पर काम करने का संकल्प लिया था लेकिन सफल नहीं हुआ इस वजह से कांशीराम को उत्तर प्रदेश जाना पड़ा.

सवाल: आप छत्तीसगढ़ में ही रह गए. कांशीराम उत्तर प्रदेश चले गए. मायावती से वह कैसे जुड़े, सता भी बनाई?

जवाब: जब कांशीराम, मुलायम यादव से मिले तब भी किसी ने एक नारा दिया कि "मिले मुलायम कांशीराम हवा हो गए जय श्री राम" यह नारा यूपी में काफी प्रचलित हुआ. किसी ने उत्तेजित होकर ही दिया था. लेकिन इस नारे का भी ऐसा असर हुआ कि बड़े पैमाने पर वहां, उस समय अयोध्या में भी भारतीय जनता पार्टी नहीं जीत पाती थी. ऐसी बुरी स्थिति थी. भाजपा को चिंता हो गई कि अगर यही हालत रहा तो भाजपा की पार्टी खत्म हो जाएगी. अटल बिहारी बाजपेई का भी इसमें योगदान रहा. भाजपा तब भी सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती थी. उनके कारण ही सपा-बसपा का गठबंधन उत्तर प्रदेश में टूटा था.

सपा और बसपा का गठबंधन टूटने में भाजपा का बड़ा हाथ था. लेकिन इसके पहले ही मुलायम यादव के साथ मिलकर कांशीराम ने वहां सरकार भी बनाई सपा और बसपा का गठबंधन भी था. मुलायम जी की जो सत्ता थी. उस समय में हमारा गठबंधन वैचारिक आधार पर हुआ था. गठबंधन में ही चुनाव लड़कर हमने वहां चुनाव जीते थे. मायावती तब तक काशीराम के बाद दूसरे नंबर पर आ चुकी थी. उनका प्रचार प्रसार काफी हुआ और मायावती को उस समय सीएम बनाया गया. बाद में बहुजन समाज पार्टी ने अपने दम पर भी यूपी में सरकार बनाई. सवर्ण समाज के लोग भी बड़े तादाद में जुड़ने लग गए थे. तब सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का नारा भी बना.

सवाल: बाबा साहेब अंबेडकर के सिद्धांतों पर बनी, यूपी में सरकार भी बनाई. कांशीराम के देहांत के बाद और मायावती के सरकार से जाने के बाद ये पार्टी हाशिए पर क्यों चली गई ?

जवाब: कांशीराम के देहांत के बाद पार्टी टुकड़ों में बंटने लगी. जितने संस्थापक सदस्य थे. वह सभी टुकड़ों में बंट गए. सारे संस्थापक सदस्यों ने बहुजन समाज को टारगेट करने के लिए अपनी अपनी पार्टी बना ली. आज देश में बहुजन समाज के नाम पर 150 पार्टियां रजिस्टर्ड हो चुके हैं. अब हम अपने स्तर पर यह भी प्रयास कर रहे हैं कि इन सभी पार्टियों को जोड़ा जाए. जब भाजपा और कांग्रेस गठबंधन कर सकती है. तो हम गठबंधन क्यों नहीं कर सकते.

पार्टी का विजन है बाबा साहेब अंबेडकर. मैं दावा करता हूं कि आज भी अगर बहन मायावती ठान लें और वास्तव में जिस बहुजन समाज पार्टी का गठन हुआ था. उन सभी संस्थापक सदस्यों के जो उत्तराधिकारी आज अलग-अलग पार्टियों में बंट गए हैं. वह एकजुट हो जाएं, तो मायावती को हम आज भी प्रधानमंत्री बना सकते हैं. हमारी पार्टी बहुजन समाज की बात करती है. जो इस देश का बहुसंख्यक वर्ग है. यह पार्टी कभी भी खड़ी की जा सकती है. किसी तैयारी की जरूरत नहीं है. अभी चुनाव के ठीक पहले भी यदि हम ठान लें, तो इस पार्टी को ताकत दे सकते हैं.

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