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पद्मश्री रामलाल बरेठ की कहानी, रायगढ़ को बनाया कत्थक नृत्य का चौथा घराना

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 27, 2024, 7:36 PM IST

Updated : Jan 27, 2024, 7:54 PM IST

Story of Padmashree Ramlal Bareth पद्मश्री सम्मान की घोषणा हो चुकी है. यह सम्मान समाज, कला और चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाले छत्तीसगढ़ के तीन विभूतियों को दिया जा रहा है. इन विभूतियों में रायगढ़ घराने के गुरू पंडित रामलाल बरेठ जो रायगढ़ घराने के विख्यात नृत्य सम्राट स्वर्गीय पंडित कार्तिक रामजी के पुत्र हैं. उनको यह सम्मान दिया जा रहा है. रामलाल बरेठ का जन्म उस समय हुआ, जब रायगढ़ दरबार का कत्थक अपने उभार पर था. उस वक्त कार्तिक कल्याण की जोड़ी पूरे देश में धूम मचा रही थी.

Story of Padmashree Ramlal Bareth
पद्मश्री रामलाल बरेठ की कहानी
रायगढ़ को बनाया कत्थक नृत्य का चौथा घराना

बिलासपुर : पद्मश्री का सम्मान पाने वाले रामलाल बरेठ कत्थक नर्तक हैं. जिन्हें रायगढ़ के महाराज चक्रधर अपने दरबार के नर्तकों में कोहिनूर हीरा मानते थे. रामलाल ने अपनी पूरी जिंदगी कत्थक नृत्य को दी है. जब रामलाल बरेठ का नाम पद्मश्री के लिए आया तो उन्हें अपने पुराने दिन याद आए. जब वो नृत्य के लिए जी तोड़ मेहनत किया करते थे.रामलाल बरेठ को साल 2024 के पद्मश्री सम्मान के लिए शामिल किया गया है.

पद्मश्री सम्मान मिलने पर परिवार खुश : पद्मश्री से सम्मानित रामलाल बरेठ 88 साल की उम्र में आज भी उतना ही अच्छा नृत्य करते हैं. जितना वो अपने जवानी के दिनों में किया करते थे.रामलाल बरेठ ने ईटीवी भारत से बात करते हुए अपने बचपन से लेकर अब तक के सफर को याद करते हुए कहा कि मेहनत और लगन के साथ ही नृत्य की साधना ही उनकी सफलता का मूल मंत्र है. रामलाल बरेठ को पद्मश्री सम्मान मिलने की जानकारी के बाद उनका पूरा परिवार खुश तो है ही साथ ही इस बात की खुशी है कि वे आज भी अपनी इस कला को नई पीढ़ी को सिखाकर अपने पिता और गुरुओं को श्रद्धांजलि दे रहे हैं.


कौन है पद्मश्री रामलाल बरेठ ? : पंडित रामलाल बरेठ का जन्म 6 मार्च सन 1936 को हुआ था. उनका जन्म संगीत परिवार में हुआ था. पंडित रामलाल की कत्थक नृत्य शिक्षा 5 साल की उम्र में अपने पिता के सानिध्य में शुरू हो गई थी. 10 वर्ष की छोटी आयु में ही वे रायगढ़ दरबार में कला के शौकीन लोगों के सामने नृत्य का प्रदर्शन करने लगे. जिसे देखकर महाराजा चक्रधर सिंह बहुत खुश हुए. इसके बाद महाराजा ने जयपुर के गुरू पंडित जयलाल महाराज से उनकी नृत्य शिक्षा की व्यवस्था करवाई. राजा चक्रधर सिंह खुद गायन, वादन एवं नृत्य के विद्वान भी थे.

वाद्य यंत्र और गायन में भी महारथी : पंडित रामलाल नृत्य के अलावा तबला वादन और गायन में भी पारंगत हैं. तबला की शिक्षा अपने पिता पंडित कार्तिकराम और पंडित जयलाल महाराज से ली और गायन की शिक्षा अपने पिता और उस्ताद हाजी मोहम्मद खां बांदावाले से ली है. पंडित रामलाल सन् 1949 में लखनऊ सम्मेलन में पहली बार मंच पर आए थे. जहां से इन्हें ख्याति मिलनी शुरू हुई. साल 1950 में संगीत सम्मेलन बुलंदशहर, 1962 में इटावा के संगीत सम्मेलन में उन्होंने सफल प्रदर्शन किया. जिसके बाद अपने नृत्य का प्रदर्शन कलकत्ता, इलाहाबाद, कटक, नागपुर, भिलाई, रायपुर, इंदौर, स्वर साधना समिति बंबई, संकट मोचन बनारस, दिल्ली, छिंदवाड़ा, पुरुषदेह भारत भवन भोपाल, हैदराबाद जैसे अनेक शहरों में किया.



पंचायत विभाग में दी सेवा : पंडित रामलाल 1956 से 1980 तक रायगढ़ में शासकीय सेवा पंचायत विभाग में दी. इसी दौरान रायगढ़ में चक्रधर संगीत विद्यालय की स्थापना कर गायन, वादन और नृत्य की भी शिक्षा देते रहे.इसके साथ-साथ बेलपहाड़, राउलकेला और रायपुर में नृत्य की शिक्षा देकर उन्होंने कई शिष्य भी तैयार किए. 1981 में मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग ने उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी के अंतर्गत चक्रधर नृत्य केन्द्र की स्थापना की. जहां शासन के अनुरोध पर रायगढ़ घराने के कत्थक नृत्य शैली की शिक्षा देने के लिए इनके पिता पंडित कार्तिकराम को गुरू और पंडित रामलाल को सहायक गुरू के पद पर बुलाया गया.

कई कलाकारों की पीढ़ी को किया तैयार : रामलाल बरेठ का मानना था कि रायगढ़ शैली के सैंकड़ों कलाकार तैयार हो,ताकि रायगढ़ घराना और छत्तीसगढ़ का नाम युग-युग के लिये गौरवान्वित हो सके. पंडित रामलाल ने 1990 से 1992 तक इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में नृत्य रीडर के पद पर रहकर अनेकों शिष्य तैयार किये. रायगढ़ कत्थक शैली के प्रचार के लिए कई वर्कशॉप किए. इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, जयपुर कत्थक केन्द्र और कत्थक केन्द्र दिल्ली से भी जुड़े रहे.

रायगढ़ घराने की रखीं नींव : पद्मश्री पंडित रामलाल ने अपनी परंपरा को आगे बढ़ाने में अपने बेटे बेटियों को भी विधिवत शिक्षा दी है. उन्होंने रायगढ़ कत्थक शैली को विकसित करने और कत्थक को घराने के रूप में स्थापित करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है. रायगढ़ कत्थक शैली को लोकप्रिय बनाने में पंडित रामलाल बरेठ का बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने रायगढ़ कत्थक शैली दी. उनके अथक प्रयास से रायगढ़ कत्थक शैली को रायगढ़ घराना के नाम से जाना जाता है. रायगढ़ घराना पूरी दुनिया में चौथे कत्थक घराने के रूप में प्रसिद्ध है. पंडित रामलाल को 1996 में भारत के माननीय राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भारत के राष्ट्रीय सम्मान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया है.

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रायगढ़ को बनाया कत्थक नृत्य का चौथा घराना

बिलासपुर : पद्मश्री का सम्मान पाने वाले रामलाल बरेठ कत्थक नर्तक हैं. जिन्हें रायगढ़ के महाराज चक्रधर अपने दरबार के नर्तकों में कोहिनूर हीरा मानते थे. रामलाल ने अपनी पूरी जिंदगी कत्थक नृत्य को दी है. जब रामलाल बरेठ का नाम पद्मश्री के लिए आया तो उन्हें अपने पुराने दिन याद आए. जब वो नृत्य के लिए जी तोड़ मेहनत किया करते थे.रामलाल बरेठ को साल 2024 के पद्मश्री सम्मान के लिए शामिल किया गया है.

पद्मश्री सम्मान मिलने पर परिवार खुश : पद्मश्री से सम्मानित रामलाल बरेठ 88 साल की उम्र में आज भी उतना ही अच्छा नृत्य करते हैं. जितना वो अपने जवानी के दिनों में किया करते थे.रामलाल बरेठ ने ईटीवी भारत से बात करते हुए अपने बचपन से लेकर अब तक के सफर को याद करते हुए कहा कि मेहनत और लगन के साथ ही नृत्य की साधना ही उनकी सफलता का मूल मंत्र है. रामलाल बरेठ को पद्मश्री सम्मान मिलने की जानकारी के बाद उनका पूरा परिवार खुश तो है ही साथ ही इस बात की खुशी है कि वे आज भी अपनी इस कला को नई पीढ़ी को सिखाकर अपने पिता और गुरुओं को श्रद्धांजलि दे रहे हैं.


कौन है पद्मश्री रामलाल बरेठ ? : पंडित रामलाल बरेठ का जन्म 6 मार्च सन 1936 को हुआ था. उनका जन्म संगीत परिवार में हुआ था. पंडित रामलाल की कत्थक नृत्य शिक्षा 5 साल की उम्र में अपने पिता के सानिध्य में शुरू हो गई थी. 10 वर्ष की छोटी आयु में ही वे रायगढ़ दरबार में कला के शौकीन लोगों के सामने नृत्य का प्रदर्शन करने लगे. जिसे देखकर महाराजा चक्रधर सिंह बहुत खुश हुए. इसके बाद महाराजा ने जयपुर के गुरू पंडित जयलाल महाराज से उनकी नृत्य शिक्षा की व्यवस्था करवाई. राजा चक्रधर सिंह खुद गायन, वादन एवं नृत्य के विद्वान भी थे.

वाद्य यंत्र और गायन में भी महारथी : पंडित रामलाल नृत्य के अलावा तबला वादन और गायन में भी पारंगत हैं. तबला की शिक्षा अपने पिता पंडित कार्तिकराम और पंडित जयलाल महाराज से ली और गायन की शिक्षा अपने पिता और उस्ताद हाजी मोहम्मद खां बांदावाले से ली है. पंडित रामलाल सन् 1949 में लखनऊ सम्मेलन में पहली बार मंच पर आए थे. जहां से इन्हें ख्याति मिलनी शुरू हुई. साल 1950 में संगीत सम्मेलन बुलंदशहर, 1962 में इटावा के संगीत सम्मेलन में उन्होंने सफल प्रदर्शन किया. जिसके बाद अपने नृत्य का प्रदर्शन कलकत्ता, इलाहाबाद, कटक, नागपुर, भिलाई, रायपुर, इंदौर, स्वर साधना समिति बंबई, संकट मोचन बनारस, दिल्ली, छिंदवाड़ा, पुरुषदेह भारत भवन भोपाल, हैदराबाद जैसे अनेक शहरों में किया.



पंचायत विभाग में दी सेवा : पंडित रामलाल 1956 से 1980 तक रायगढ़ में शासकीय सेवा पंचायत विभाग में दी. इसी दौरान रायगढ़ में चक्रधर संगीत विद्यालय की स्थापना कर गायन, वादन और नृत्य की भी शिक्षा देते रहे.इसके साथ-साथ बेलपहाड़, राउलकेला और रायपुर में नृत्य की शिक्षा देकर उन्होंने कई शिष्य भी तैयार किए. 1981 में मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग ने उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी के अंतर्गत चक्रधर नृत्य केन्द्र की स्थापना की. जहां शासन के अनुरोध पर रायगढ़ घराने के कत्थक नृत्य शैली की शिक्षा देने के लिए इनके पिता पंडित कार्तिकराम को गुरू और पंडित रामलाल को सहायक गुरू के पद पर बुलाया गया.

कई कलाकारों की पीढ़ी को किया तैयार : रामलाल बरेठ का मानना था कि रायगढ़ शैली के सैंकड़ों कलाकार तैयार हो,ताकि रायगढ़ घराना और छत्तीसगढ़ का नाम युग-युग के लिये गौरवान्वित हो सके. पंडित रामलाल ने 1990 से 1992 तक इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में नृत्य रीडर के पद पर रहकर अनेकों शिष्य तैयार किये. रायगढ़ कत्थक शैली के प्रचार के लिए कई वर्कशॉप किए. इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, जयपुर कत्थक केन्द्र और कत्थक केन्द्र दिल्ली से भी जुड़े रहे.

रायगढ़ घराने की रखीं नींव : पद्मश्री पंडित रामलाल ने अपनी परंपरा को आगे बढ़ाने में अपने बेटे बेटियों को भी विधिवत शिक्षा दी है. उन्होंने रायगढ़ कत्थक शैली को विकसित करने और कत्थक को घराने के रूप में स्थापित करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है. रायगढ़ कत्थक शैली को लोकप्रिय बनाने में पंडित रामलाल बरेठ का बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने रायगढ़ कत्थक शैली दी. उनके अथक प्रयास से रायगढ़ कत्थक शैली को रायगढ़ घराना के नाम से जाना जाता है. रायगढ़ घराना पूरी दुनिया में चौथे कत्थक घराने के रूप में प्रसिद्ध है. पंडित रामलाल को 1996 में भारत के माननीय राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भारत के राष्ट्रीय सम्मान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया है.

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Last Updated : Jan 27, 2024, 7:54 PM IST
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