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एक चुनाव ऐसा भी, मध्य प्रदेश की तीन सीटें जहां से एक नहीं दो-दो लोकसभा सांसद चुने गए, फिर अचानक क्यों खत्म की गई यह व्यवस्था - two MP from one lok sabha seat

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 8, 2024, 8:21 PM IST

Updated : Apr 8, 2024, 11:06 PM IST

इस समय लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है. इस महापर्व पर हम आपको वर्तमान राजनीति से लेकर इतिहास की राजनीति से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से और कहानियां बता रहे हैं. आज हम एक ऐसे चुनाव की बात करेंगे, जहां एमपी की एक लोकसभा सीट से दो सांसद चुने गए थे. यहां प्रत्याशी अपने विरोधी को हराकर नहीं बल्कि साथ संसद पहुंचे थे. पढ़िए पूरी कहानी...

TWO MP FROM ONE LOK SABHA SEAT
एक चुनाव ऐसा भी, मध्य प्रदेश की तीन सीटें जहां से एक नहीं दो-दो लोकसभा सांसद चुने गए, फिर अचानक क्यों खत्म की गई यह व्यवस्था

भोपाल। जब एक देश एक चुनाव की बहस छिड़ी हुई है. तब भारत ने ऐसे आम चुनाव भी देखे, जिसमें एक लोकसभा सीट से एक ही चुनाव में मतदाताओं ने दो सांसदों का चुनाव किया. मध्य प्रदेश में हुए 1951 और 1957 के आम चुनाव मध्य प्रदेश के इतिहास के वो चुनाव हैं. जिनमें आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर वोटर एक साथ दो उम्मीदवारों को चुनकर लोकसभा पहुंचा रहे थे. इनमें सागर, खजुराहो, छिंदवाड़ा, शहडोल, मंडला, जबलपुर और मध्य प्रदेश में ही शामिल छत्तीसगढ के रायपुर, बिलासपुर और सरगुजा लोकसभा सीटें शामिल थी. आखिर एमपी की स्थापना के पहले और बाद के इन चुनावों में आखिर इन सीटों पर दो सांसद चुने जाने का ये प्रयोग क्यों किया गया. बाद में ये क्यों नहीं चल पाया. कौन थे वो उम्मीदवार जो अपने विरोधी को हराकर नहीं साथ-साथ संसद पहुंचे, पढ़िए इस खबर में...

1951 में वो सीटें जहां दो सांसद जीते

1951 के लोकसभा चुनाव के समय ना केवल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ एक था बल्कि महाराष्ट्र का भी कुछ हिस्सा एमपी में ही शामिल था. तब मंडला, जबलपुर की लोकसभा सीट पर गोविंददास महेश्वरी और मंगरू ये दो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार थे. जो एक साथ जीतकर संसद में पहुंचे. इसी तरह भंडारा लोकसभा सीट जो मध्य प्रदेश के ही अंतर्गत आती थी. इस सीट पर भी कांग्रेस के चतुर्भुज विट्ठल दास और तुलाराम चंद्रभान सखारे सांसद साथ साथ सांसद चुने गए. बुलढाना अकोला लोकसभा सीट भी तब एमपी का ही हिस्सा थी. यहां से गोपाल राव बाजीराव खेडकर और लक्ष्मण शेरवन भाटकर एक ही सीट से सांसद चुने गए थे. बिलासपुर दुर्ग सीट से अगमदास और भूपेन्द्र नाथ एक साथ सांसद चुने गए. बिलासपुर सीट से रेशमलाल सरदार अमर सिंह सहगल दो-दो नेता एक साथ चुनकर संसद में पहुंचे, दोनों ही कांग्रेस से थे. इसी तरह से सरगुजा राजगढ़ सीट से बाबूनाथ सिंह और महाराज कुमार चंद्रकेश्वर शरण सिंह जूदेव दोनों ही कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव लड़े और जीत कर संसद पहुंचे.

1957 में छिंदवाड़ा, सागर, खजुराहो ने चुने दो सांसद

इसी तरह 1957 के आमचुनाव में एमपी के सागर, छिंदवाड़ा, रायपुर, बलौदा बाजार, सरगुजा, बालाघाट और खजुराहो सीट पर एक साथ दो दो सांसद चुने गए. सागर सीट पर कांग्रेस के ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी और सहोदरा बाई मुरलीधर चुनी गई. जबकि छिंदवाड़ा में भिकूलाल लक्खमीचंद और नारायण राव वाडिवा को एसटी वर्ग से चुना गया. इसी तरह शहडोल लोकसभा सीट से आनंद चंद्र जोशी कमलनारायण सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते और खजुराहो सीट से मोतीलाल मालवीय (एसटी) वर्ग से और राम सहाय सामान्य वर्ग से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे. दोनों ही कांग्रेस के उम्मीदवार थे.

आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधत्व के लिए ये प्रयोग

मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवानदेव इसरानी बताते हैं असल में 1951 और 1957 के जो आम चुनाव हुए थे. उस समय कुछ चुनिंदा लोकसभा सीटों पर आरक्षित वर्ग को प्रतिनिधत्व देने के लिए ये प्रयोग किया गया था. इसमें एक सामान्य वर्ग और दूसरा उम्मीदवार एसटी वर्ग का रहता था. जिससे उनको भी बराबर से मौका मिल सके, लेकिन 1962 के चुनाव में ये प्रयोग खत्म कर दिया गया.

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कैसे होते थे ये चुनाव

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश गुप्ता बताते हैं 1951 और 1957 के ये जो चुनाव थे. इनमें एक लोकसभा सीट पर हर एक मतदाता को दो मत का अधिकार था. एक ही पार्टी से दो उम्मीदवार खड़े हो सकते थे, लेकिन उनमें एक आरक्षित वर्ग से होता था ये निश्चित था. उसमें भी ये देखा जाता था कि किसको कितना समर्थन या वोट मिला है. जिसे ज्यादा वोट मिलते थे. अलग-अलग वर्ग से ऐसे दो उम्मीदवार चुन लिए जाते थे. एमपी में 1956 के चुनाव में खजुराहो, छिंदवाड़ा और सागर की सीट पर ये हुआ. फिर उसके बाद 1961 तक बंद हो गया.

साल 1961 में बंद कर दी गई यह व्यवस्था

आपको बता दें दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में सीटों के आक्षण की व्यवस्था को लेकर उस वक्त काफी विरोध हुआ था. जिसके बाद यह कहा जाने लगा कि एससी-एसटी के लिए आरक्षित सभी सीट एक संसद सदस्य निर्वाचन क्षेत्र में शामिल किया जाना चाहिए. जिसके बाद साल 1961 में दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र अधिनियम लाया गया और एस सीट पर दो सांसदो के चुनाव की प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया. लिहाजा यह कानून आने के बाद एक सीट पर दो सांसद को चयनित किए जाने की व्यवस्था खत्म हो गई.

Last Updated : Apr 8, 2024, 11:06 PM IST
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