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मद्रास HC ने आत्मसमर्पण याचिकाओं से निपटने के लिए निर्देश जारी किए

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 9, 2024, 8:37 AM IST

Magistrate Jurisdiction In Surrender Case
प्रतीकात्मक तस्वीर.

Magistrate Jurisdiction In Surrender Case : न्यायाधीश ने कहा कि यहां की गई चर्चा भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों से उत्पन्न मामलों से संबंधित है. यह स्पष्ट किया गया कि इस न्यायालय ने सीमा शुल्क अधिनियम, 1962, फेमा, 1999 जैसे विशेष अधिनियमों के तहत आर्थिक अपराधों के संबंध में इस मामले में उत्पन्न कानूनी स्थिति पर कोई राय व्यक्त नहीं की है.

चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को माना कि जिन आरोपियों ने स्वेच्छा से ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष आत्मसमर्पण किया है जिनके पास मामले की सुनवाई का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था, उनकी ओर से दायर आत्मसमर्पण याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं. फैसला सुनाने वाले न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आलोक में, ऐसी याचिकाओं पर सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत मजिस्ट्रेट की ओर से रिमांड का कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता है.

भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों से संबंधित मामलों के संदर्भ में, किसी अपराध का आरोपी व्यक्ति जिसे सीआरपीसी की धारा 167 (1) के तहत अग्रेषित नहीं किया गया है, और जो सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत स्वेच्छा से मजिस्ट्रेट के समक्ष आत्मसमर्पण याचिका दायर करता है, उस पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है.

नतीजतन, धारा 167(2) के प्रावधान के प्रयोजन के लिए, 15 दिनों की पुलिस हिरासत या 60/90 दिनों की हिरासत की अवधि केवल उस तारीख से शुरू होगी जिस दिन वह पुलिस द्वारा सीआरपीसी की धारा 167(1) के तहत अग्रेषित होने पर न्यायालय की हिरासत में आता है. न्यायाधीश ने तमिलनाडु सरकार की ओर से दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए ये निर्देश दिए. इस याचिका में न्यायिक मजिस्ट्रेट, सत्यमंगलम के एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें चार आरोपियों के आत्मसमर्पण को स्वीकार करते हुए उन्हें सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.

न्यायाधीश ने कहा कि यदि कोई आरोपी स्वेच्छा से मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होता है, जिसके पास मामले की सुनवाई का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, तो मजिस्ट्रेट के पास अपने अधिकार क्षेत्र के तहत निकटतम पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस अधिकारी को आरोपी को हिरासत में लेने का निर्देश देने का अधिकार होगा.

न्यायाधीश ने कहा कि यहां की गई चर्चा भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों से उत्पन्न मामलों से संबंधित है. यह स्पष्ट किया गया कि इस न्यायालय ने सीमा शुल्क अधिनियम, 1962, फेमा, 1999 जैसे विशेष अधिनियमों के तहत आर्थिक अपराधों के संबंध में इस मामले में उत्पन्न कानूनी स्थिति पर कोई राय व्यक्त नहीं की है. अदालत ने कहा कि उपरोक्त निर्देशों का तमिलनाडु और पुडुचेरी के सभी मजिस्ट्रेटों की ओर से ईमानदारी से पालन किया जाये.

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