ETV Bharat / bharat

लोकसभा चुनाव : पश्चिम बंगाल में वंशवादी राजनीति, लेफ्ट भी नहीं रहा अछूता, ये हैं प्रमुख चेहरे - LOK SABHA ELECTION 2024

author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 22, 2024, 5:22 PM IST

Dynasty Politics in West Bengal: पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव में इस बार राजनीतिक घरानों का दबदबा दिख रहा है. 42 लोकसभा सीटों में से 13 सीटों पर ऐसे नेताओं को टिकट मिला है, जिनका किसी न किसी राजनीतिक परिवार से संबंध है. इनमें टीएमसी के पांच, कांग्रेस के चार, भाजपा और सीपीआईएम के दो-दो उम्मीदवार हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट.

Dynasty Politics in West Bengal
बंगाल में वंशवादी राजनीति

हैदराबाद: भारतीय लोकतंत्र में वंशवादी राजनीति का प्रभाव लंबे समय से रहा है. आजादी के बाद जहां कई राजघरानों का राजनीति पर कब्जा हो गया था, वहीं कई क्षेत्रीय दलों की सत्ता में भागीदारी बढ़ने के साथ उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में परिवार आधारित राजनीति फलने-फूलने लगी. इस लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में भी वंशवादी राजनीति की परंपरा का नया स्तर सामने आया है. राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 13 पर राजनीतिक परिवारों के उम्मीदवार मैदान में हैं. इनमें राज्य में सत्तारूढ़ टीएमसी के पांच, कांग्रेस के चार, भाजपा के दो और सीपीआईएम के दो उम्मीदवार हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक वंशवाद सिर्फ तीन सीटों तक ही सीमित था.

परंपरागत रूप से जीवंत छात्र राजनीति के लिए जाना जाने वाला बंगाल एक महत्वपूर्ण बदलाव का अनुभव कर रहा है, क्योंकि चुनावों में प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों को प्रमुखता दी जा रही है. कोलकाता स्थित सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र के राजनीतिक विज्ञानी मैदुल इस्लाम न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात कहते हैं कि बंगाल की राजनीति में यह नया चलन या विकास है कि हम वर्ग-आधारित राजनीति से वंशवाद की राजनीति की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि चुनावों में कभी भी राजनीतिक परिवारों से इतने उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिला था. उन्होंने कहा कि बंगाल में जहां राजनीति जन नेताओं के करिश्मे, पार्टी प्रतीकों और मुद्दों से तय होती है. अब यह देखना बाकी कि लोग इन राजनीतिक राजवंशों को कैसे स्वीकार करते हैं.

वंशवादी राजनीति का दबदबा
टीएमसी, भाजपा और कांग्रेस नेताओं का मानना है कि राजनीतिक परिवारों के सदस्यों को उनकी वफादारी और विश्वसनीयता के लिए महत्व दिया जाता है, जिससे उनकी दावेदारी मजबूत होती है. टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राजनीति में स्थापित घरानों के नामों की सफलता का श्रेय दो मुख्य कारकों को दिया जाता है - पहचान और नेटवर्किंग (लोगों के बीच पकड़), जो उनके लिए चुनावी समर्थन हासिल करना आसान बनाते हैं.

अभिषेक बनर्जी
अभिषेक बनर्जी

अभिषेक बनर्जी सूची में सबसे ऊपर
टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी इस सूची में सबसे ऊपर हैं. दो बार के सांसद अभिषेक बनर्जी डायमंड हार्बर लोकसभा सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. वहीं, कांथी लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार सौमेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर के प्रभावशाली अधिकारी परिवार से आते हैं. उनके पिता सिसिर अधिकारी इस सीट से तीन बार सांसद रहे हैं, और उनके भाई शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं.

गनी खान चौधरी के परिवार से हैं ईशा खान चौधरी
मालदा दक्षिण सीट से कांग्रेस ने इस बार अस्वस्थ चल रहे अबू हासेम खान चौधरी की जगह उनके बेटे ईशा खान चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस के संरक्षक एबीए गनी खान चौधरी के भाई अबू हासिम 2006 से इस सीट का संसद में प्रतिनिधत्व कर रहे हैं. ईशा खान कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं.

राजनीतिक परिवार से आती हैं सायरा शाह हलीम
दक्षिण कोलकाता से सीपीआईएम उम्मीदवार सायरा शाह हलीम भी राजनीतिक परिवार से हैं. उनके ससुर हाशिम अब्दुल हलीम पश्चिम बंगाल विधानसभा के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे थे, और उनके पति फुआद हलीम सीपीआईएम की राज्य समिति के सदस्य हैं.

सीपीआईएम उम्मीदवार सायरा शाह हलीम
सीपीआईएम उम्मीदवार सायरा शाह हलीम

साजदा अहमद के पति सांसद रह चुके हैं
टीएमसी ने उलुबेरिया से अपने मौजूदा सांसद साजदा अहमद को फिर से मैदान में उतारा है. साजदा पूर्व टीएमसी सांसद सुल्तान अहमद की पत्नी हैं. इसके अलावा राज्य में सत्तारूढ़ टीएमसी ने जयनगर से प्रतिमा मंडल को मैदान में उतारा है, जो पार्टी के पूर्व सांसद गोबिंदा चंद्र नस्कर की बेटी हैं. बर्धमान-दुर्गापुर सीट से टीएमसी ने पूर्व क्रिकेटर और पूर्व सांसद कीर्ति आजाद को मैदान में उतारा है, जो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे हैं.

टीएमसी उम्मीदवार कीर्ति आजाद
टीएमसी उम्मीदवार कीर्ति आजाद

राजनीतिक परिवारों से अन्य उम्मीदवार

  • कांग्रेस ने पुरुलिया से अपने दिग्गज नेता नेपाल महतो को मैदान में उतारा है, जो पूर्व सांसद देबेंद्र महतो के बेटे हैं.
  • कांग्रेस ने जंगीपुर सीट से पूर्व मंत्री अब्दुस सत्तार के पोते मुर्तजा हुसैन को मैदान में उतारा है.
  • रायगंज से कांग्रेस ने अली इमरान रम्ज को उम्मीदवार बनाया है, जो अनुभवी फॉरवर्ड ब्लॉक नेता मोहम्मद रमजान अली के बेटे और पूर्व में सीपीआईएम की सरकार में मंत्री रहे हाफिज आलम सैरानी के भतीजे हैं. हालांकि, उनका कहना है कि उन्हें सिर्फ उनके परिवार के कारण टिकट नहीं मिला है. वह यहां विधायक रह चुके हैं और पिछले 15 वर्षों से लोगों की सेवा कर रहे हैं.
    भाजपा उम्मीदवार शांतनु ठाकुर
    भाजपा उम्मीदवार शांतनु ठाकुर
  • बोनगांव सीट से भाजपा उम्मीदवार शांतनु ठाकुर उनके पिता मंजुल कृष्ण ठाकुर टीएमसी सरकार में मंत्री रहे हैं और उनकी चाची ममता बाला ठाकुर टीएमसी सांसद हैं. शांतनु ठाकुर मतुआ-ठाकुरबारी परिवार से आते हैं.
  • सीपीआईएम की सेरामपुर उम्मीदवार दिप्सिता धर तीन बार के पूर्व विधायक पद्म निधि धर की पोती हैं.

भाजपा-सीपीआईएम ने किया अपने फैसले का बचाव
भाजपा और सीपीआईएम ने राजनीतिक परिवार से संबंधित उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के अपने फैसले का बचाव किया है. इनका कहना है कि इन नेताओं की उम्मीदवारी का उनके परिवारों से कोई लेना-देना नहीं है. सीपीआईएम नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा कि सायरा शाह हलीम और दिप्सिता धर दोनों अच्छी नेता और वक्ता हैं. इसका वंशवाद से कोई लेना-देना नहीं है. वहीं, पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि उनकी पार्टी वंशवाद की राजनीति के खिलाफ मुखर रही है. शांतनु ठाकुर और सौमेंदु अधिकारी दोनों जाने-माने नेता हैं. उन्हें अपनी जीत की क्षमता के आधार पर पार्टी का टिकट मिला है.

ये भी पढ़ें- कौन हैं भाजपा के एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार अब्दुल सलाम, अपने ही समाज के लोग कर रहे अपमानित

हैदराबाद: भारतीय लोकतंत्र में वंशवादी राजनीति का प्रभाव लंबे समय से रहा है. आजादी के बाद जहां कई राजघरानों का राजनीति पर कब्जा हो गया था, वहीं कई क्षेत्रीय दलों की सत्ता में भागीदारी बढ़ने के साथ उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में परिवार आधारित राजनीति फलने-फूलने लगी. इस लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में भी वंशवादी राजनीति की परंपरा का नया स्तर सामने आया है. राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 13 पर राजनीतिक परिवारों के उम्मीदवार मैदान में हैं. इनमें राज्य में सत्तारूढ़ टीएमसी के पांच, कांग्रेस के चार, भाजपा के दो और सीपीआईएम के दो उम्मीदवार हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक वंशवाद सिर्फ तीन सीटों तक ही सीमित था.

परंपरागत रूप से जीवंत छात्र राजनीति के लिए जाना जाने वाला बंगाल एक महत्वपूर्ण बदलाव का अनुभव कर रहा है, क्योंकि चुनावों में प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों को प्रमुखता दी जा रही है. कोलकाता स्थित सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र के राजनीतिक विज्ञानी मैदुल इस्लाम न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात कहते हैं कि बंगाल की राजनीति में यह नया चलन या विकास है कि हम वर्ग-आधारित राजनीति से वंशवाद की राजनीति की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि चुनावों में कभी भी राजनीतिक परिवारों से इतने उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिला था. उन्होंने कहा कि बंगाल में जहां राजनीति जन नेताओं के करिश्मे, पार्टी प्रतीकों और मुद्दों से तय होती है. अब यह देखना बाकी कि लोग इन राजनीतिक राजवंशों को कैसे स्वीकार करते हैं.

वंशवादी राजनीति का दबदबा
टीएमसी, भाजपा और कांग्रेस नेताओं का मानना है कि राजनीतिक परिवारों के सदस्यों को उनकी वफादारी और विश्वसनीयता के लिए महत्व दिया जाता है, जिससे उनकी दावेदारी मजबूत होती है. टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राजनीति में स्थापित घरानों के नामों की सफलता का श्रेय दो मुख्य कारकों को दिया जाता है - पहचान और नेटवर्किंग (लोगों के बीच पकड़), जो उनके लिए चुनावी समर्थन हासिल करना आसान बनाते हैं.

अभिषेक बनर्जी
अभिषेक बनर्जी

अभिषेक बनर्जी सूची में सबसे ऊपर
टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी इस सूची में सबसे ऊपर हैं. दो बार के सांसद अभिषेक बनर्जी डायमंड हार्बर लोकसभा सीट से तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. वहीं, कांथी लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार सौमेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर के प्रभावशाली अधिकारी परिवार से आते हैं. उनके पिता सिसिर अधिकारी इस सीट से तीन बार सांसद रहे हैं, और उनके भाई शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं.

गनी खान चौधरी के परिवार से हैं ईशा खान चौधरी
मालदा दक्षिण सीट से कांग्रेस ने इस बार अस्वस्थ चल रहे अबू हासेम खान चौधरी की जगह उनके बेटे ईशा खान चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस के संरक्षक एबीए गनी खान चौधरी के भाई अबू हासिम 2006 से इस सीट का संसद में प्रतिनिधत्व कर रहे हैं. ईशा खान कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं.

राजनीतिक परिवार से आती हैं सायरा शाह हलीम
दक्षिण कोलकाता से सीपीआईएम उम्मीदवार सायरा शाह हलीम भी राजनीतिक परिवार से हैं. उनके ससुर हाशिम अब्दुल हलीम पश्चिम बंगाल विधानसभा के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे थे, और उनके पति फुआद हलीम सीपीआईएम की राज्य समिति के सदस्य हैं.

सीपीआईएम उम्मीदवार सायरा शाह हलीम
सीपीआईएम उम्मीदवार सायरा शाह हलीम

साजदा अहमद के पति सांसद रह चुके हैं
टीएमसी ने उलुबेरिया से अपने मौजूदा सांसद साजदा अहमद को फिर से मैदान में उतारा है. साजदा पूर्व टीएमसी सांसद सुल्तान अहमद की पत्नी हैं. इसके अलावा राज्य में सत्तारूढ़ टीएमसी ने जयनगर से प्रतिमा मंडल को मैदान में उतारा है, जो पार्टी के पूर्व सांसद गोबिंदा चंद्र नस्कर की बेटी हैं. बर्धमान-दुर्गापुर सीट से टीएमसी ने पूर्व क्रिकेटर और पूर्व सांसद कीर्ति आजाद को मैदान में उतारा है, जो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे हैं.

टीएमसी उम्मीदवार कीर्ति आजाद
टीएमसी उम्मीदवार कीर्ति आजाद

राजनीतिक परिवारों से अन्य उम्मीदवार

  • कांग्रेस ने पुरुलिया से अपने दिग्गज नेता नेपाल महतो को मैदान में उतारा है, जो पूर्व सांसद देबेंद्र महतो के बेटे हैं.
  • कांग्रेस ने जंगीपुर सीट से पूर्व मंत्री अब्दुस सत्तार के पोते मुर्तजा हुसैन को मैदान में उतारा है.
  • रायगंज से कांग्रेस ने अली इमरान रम्ज को उम्मीदवार बनाया है, जो अनुभवी फॉरवर्ड ब्लॉक नेता मोहम्मद रमजान अली के बेटे और पूर्व में सीपीआईएम की सरकार में मंत्री रहे हाफिज आलम सैरानी के भतीजे हैं. हालांकि, उनका कहना है कि उन्हें सिर्फ उनके परिवार के कारण टिकट नहीं मिला है. वह यहां विधायक रह चुके हैं और पिछले 15 वर्षों से लोगों की सेवा कर रहे हैं.
    भाजपा उम्मीदवार शांतनु ठाकुर
    भाजपा उम्मीदवार शांतनु ठाकुर
  • बोनगांव सीट से भाजपा उम्मीदवार शांतनु ठाकुर उनके पिता मंजुल कृष्ण ठाकुर टीएमसी सरकार में मंत्री रहे हैं और उनकी चाची ममता बाला ठाकुर टीएमसी सांसद हैं. शांतनु ठाकुर मतुआ-ठाकुरबारी परिवार से आते हैं.
  • सीपीआईएम की सेरामपुर उम्मीदवार दिप्सिता धर तीन बार के पूर्व विधायक पद्म निधि धर की पोती हैं.

भाजपा-सीपीआईएम ने किया अपने फैसले का बचाव
भाजपा और सीपीआईएम ने राजनीतिक परिवार से संबंधित उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के अपने फैसले का बचाव किया है. इनका कहना है कि इन नेताओं की उम्मीदवारी का उनके परिवारों से कोई लेना-देना नहीं है. सीपीआईएम नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा कि सायरा शाह हलीम और दिप्सिता धर दोनों अच्छी नेता और वक्ता हैं. इसका वंशवाद से कोई लेना-देना नहीं है. वहीं, पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि उनकी पार्टी वंशवाद की राजनीति के खिलाफ मुखर रही है. शांतनु ठाकुर और सौमेंदु अधिकारी दोनों जाने-माने नेता हैं. उन्हें अपनी जीत की क्षमता के आधार पर पार्टी का टिकट मिला है.

ये भी पढ़ें- कौन हैं भाजपा के एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार अब्दुल सलाम, अपने ही समाज के लोग कर रहे अपमानित

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.