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Joshimath Disaster: क्या शोध रिपोर्ट लेकर सो जाता है आपदा प्रबंधन विभाग? नहीं तो बच जाता जोशीमठ

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Published : Jan 19, 2023, 12:27 PM IST

Updated : Jan 19, 2023, 3:08 PM IST

Joshimath Disaster

आपदाओं से घिरे उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन विभाग सहित हिमालय क्षेत्र से जुड़े तमाम शोधकर्ता, वैज्ञानिक समय समय पर सतर्क करने के लिए अपनी रिपोर्ट देते हैं. लेकिन खुद आपदा प्रबंधन विभाग इन रिपोर्ट को नजर अंदाज कर देता है. इसी के खामियाजे का उदाहरण आज जोशीमठ भी है.

REPORTS पर जानकारी देते आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा.

देहरादून: उत्तराखंड में आपदाओं का इतिहास बेहद पुराना है. हिमालय पर रिसर्च करने वाले तमाम शोध संस्थान दुनिया के इस सबसे कच्चे फ्रेजाएल हिमालय पर शोध करते रहते हैं. इन शोध के बाद तैयार होने वाली रिपोर्ट को उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के माध्यम से सरकार को चेताने के लिए भी दिया जाता है. लेकिन आलम यह है कि इन तमाम रिपोर्ट्स से खुद आपदा प्रबंधन विभाग की कान में जूं तक नहीं रेंगती है. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग की इन लापरवाहियों का इतिहास बेहद पुराना है. हालांकि, वर्तमान आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने इस बाबत अपनी सफाई दी है और पिछली रिपोर्ट्स में डिटेल इन्वेस्टिगेशन न होने की बात कही है.

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग में उत्तराखंड के बेहद संवेदनशील विषयों पर किस तरह से लापरवाही की जाती है और रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है, इसकी बानगी 2020 में देखने को मिली. हाईकोर्ट ने आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों को लेकर सख्त टिप्पणी में लिखा था कि जिम्मेदार लापरवाह अधिकारी को नौकरी करने तक का अधिकार नहीं है.

वैज्ञानिक उपमिता की रिपोर्ट की अनदेखी की गई

गंगोत्री ग्लेशियर की स्थिति को लेकर छुपाई गई थी रिपोर्ट: दरअसल दिल्ली के एक याचिकाकर्ता द्वारा हाईकोर्ट में गंगोत्री ग्लेशियर में बन रही झील और वहां पर लगातार फैल रहे कूड़े को लेकर शिकायत की गई थी. इस पर आपदा प्रबंधन सचिव ने गंगोत्री ग्लेशियर में हो रहे तमाम बदलाव को लेकर रिपोर्ट तैयार करने के लिए तत्कालीन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर को निर्देश दिए थे. लेकिन गंगोत्री ग्लेशियर पर शोधकर्ताओं द्वारा की गई जांच को एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर द्वारा कार्रवाई में नहीं लाया गया. इस रिपोर्ट को दबा दिया गया. जिसके बाद एक बार फिर जब याचिकाकर्ता अपील करते हुए हाईकोर्ट गया तो उच्च न्यायालय ने जवाब तलब किया. जिस पर बाद में खुलासा हुआ कि किस तरह से लापरवाही की गई थी. उसके बाद एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर को 15 महीनों तक निलंबित रखा गया था.

जोशीमठ को लेकर 2006 की रिपोर्ट

जोशीमठ को लेकर भी दबाई गई थी रिपोर्ट:चमोली जिले के जोशीमठ में हुए ताजा हालातों के पीछे भी उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा की गई लापरवाही एक बड़ी वजह है. ईटीवी भारत को मिली जानकारी के अनुसार जोशीमठ के इन हालातों को लेकर वर्ष 2006 में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग की ही वैज्ञानिक स्वप्नमिता भोनू ने एक डिटेल रिपोर्ट तैयार की थी. रिपोर्ट में आज जो स्थिति पैदा हुई है, इसको लेकर के स्पष्ट चेताया गया था. हालांकि उस वक्त हालात इतने बुरे नहीं थे.

दरारों को लेकर आगाह किया गया था.

शोधकर्ता ने किया बड़ा खुलासा: वैज्ञानिक स्वप्नमिता भोनू उस वक्त आपदा प्रबंधन विभाग में एक शोधकर्ता के रूप में कार्य करती थीं. उन्होंने अपनी एक्सपर्टीज का बेहतर इस्तेमाल करते हुए आपदा प्रबंधन विभाग को जोशीमठ में लगातार हो रहे भूस्खलन को लेकर विस्तृत रिपोर्ट दी थी. उस दौरान यह रिपोर्ट जोशीमठ से जुड़े अन्य कार्यदाई संस्थाओं से भी साझा की गई थी. इस रिपोर्ट पर वैज्ञानिक स्वप्नमिता भोनू कहती हैं कि उनके द्वारा बनाई गई इस रिपोर्ट के आधार पर बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने अपने सड़कों का एलाइनमेंट चेंज किया था. जोशीमठ में मौजूद सेना के अधिकारियों ने भी इस रिपोर्ट का संज्ञान लिया और अपनी रणनीति तैयार की. लेकिन उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग ने इस रिपोर्ट पर आगे किसी भी तरह से कार्रवाई नहीं की और रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में रख दिया.

लामबगड़ स्लाइड को लेकर चेताया गया था

2006 में ही जाग जाता आपदा प्रबंधन विभाग तो बच जाता जोशीमठ: बतौर आपदा प्रबंधन DMMC की वैज्ञानिक 2006 में तैयार की गई अपनी इस रिपोर्ट के बारे में स्वप्नमिता भोनू बताती हैं कि तब भी जोशीमठ के लोगों द्वारा इस तरह की शिकायतें की जा रही थी. जिसके बाद उन्होंने तकरीबन 2 हफ्ते ग्राउंड पर रहकर इस रिपोर्ट को तैयार किया था. लेकिन जो परिस्थितियां और समय 2006 में थे, वह अब काफी ज्यादा बदल गए हैं.

रिपोर्ट में सड़क बनाने के लिए किए जा रहे ब्लास्ट रोकने का सुझाव

वैज्ञानिक स्वप्नमिता ने क्या कहा: स्वप्नमिता ने बताया कि उस समय समस्या कम थी. शहर का विस्तारीकरण भी इतना नहीं हुआ था. उसकी तुलना में अब समस्या बढ़ गई है. शहर भी विस्तार पा चुका है. वैज्ञानिक बताते हैं कि यदि उस समय इस विषय को गंभीरता से लिया गया होता, तो आज इतना ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती. हो सकता है कि लोगों का विस्थापन भी ना करना पड़ता. वैज्ञानिक स्वप्नमिता भोनू बताती हैं कि जब उन्होंने 2006 में जोशीमठ पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के बाद डीएमएमसी से नौकरी छोड़ी थी, तो जोशीमठ और गंगोत्री ग्लेशियर पर अपनी रिपोर्ट अधिकारियों को दी थी. लेकिन उसके बाद उस रिपोर्ट का क्या हुआ कोई नहीं जानता.
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क्या कह रहे हैं आपदा प्रबंदन सचिव रंजीत कुमार:उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग में होने वाले तमाम शोध और एक्सपर्ट की तमाम रिपोर्ट्स के साथ इस तरह से लापरवाही को लेकर वर्तमान आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि ऐसी कार्यशैली अच्छी नहीं है. उन्होंने कहा कि बात जहां तक जोशीमठ की है तो उन्हें बताया गया कि पहले भी कई रिपोर्ट तैयार की गई थी. लेकिन उन्हें कोई भी रिपोर्ट आधिकारिक रूप से स्पष्ट नहीं मिली जिसमें गंभीर इन्वेस्टिगेशन हुए हों. उन्होंने कहा कि जब उनके संज्ञान में यह मामला आया तो उसके बाद उन्होंने तत्काल ही इस पर डिटेल इन्वेस्टिगेशन शुरू की है. इस इन्वेस्टिगेशन को वह निर्णायक भूमिका तक लेकर जाएंगे.

Last Updated :Jan 19, 2023, 3:08 PM IST

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