देहरादून:इस आधुनिक दौर में खुशी जाहिर करने की एक परंपरा तेजी से बनती जा रही है. वो है पटाखे जलाकर और आतिशबाजी कर अपनी खुशी जाहिर करना. वर्तमान समय में खुशी जाहिर करने के लिए लोग दीपावली, शादी या फिर बड़े समारोह में पटाखे जलाकर अपनी खुशी जाहिर करते हैं. आखिर क्या है पटाखों का इतिहास ? कब से भारत में शुरू हुआ पटाखों का इस्तेमाल ? इसका क्या असर होता है पर्यावरण पर?
सनातन धर्म में दीपावली पर्व का विशेष महत्व है. रामायण के अनुसार दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने 14 वर्ष के वनवास के बाद लौटे थे. राजा राम के लौटने पर अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आने से प्रफुल्लित हो उठा था. तब भगवान राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए. तब से आज तक पूरे देश में यह दिन दीपोत्सव के नाम से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. दीपावली पर्व का मुख्य उद्देश्य आपसी मतभेद को भूलकर हृदय में रोशनी भरना और समाज से जुड़ना है, लेकिन दीपावली का त्योहार मात्र आतिशबाजी तक ही सीमित रह गया है. ऐसे में हम अपनी प्राचीन दीये वाली दीपावली भी भूलते जा रहे हैं.
10वीं शताब्दी में हुई थी विस्फोटक पदार्थों की खोज
इतिहासकार प्रोफेसर गोसाईं की मानें तो विस्फोटक पदार्थ की खोज 10वीं शताब्दी के आसपास चीन से ब्लैक पाउडर के रूप में मिलती है और भारत में इस विस्फोटक पदार्थ को लाने का श्रेय मंगोलों को जाता है. उस दौरान मंगोल सभ्यता के लोग जब किसी अन्य राज्य को जीतते थे तो वह अपनी खुशी को पटाखे जलाकर और आतिशबाजी कर जताते थे. लेकिन साल 1667 में औरंगजेब शासनकाल में दीये जलाने और पटाखे जलाने पर पाबंदी लगा दी थी. इसके साथ ही ब्रिटिश काल में भी ब्रिटिश सरकार ने पटाखे के कानून को बहुत सख्त कर दिया था कि किसी भी तरह से पटाखे जलाना संभव नहीं था.
1940 के बाद भारत में शुरू हुआ पटाखों का प्रचलन
प्रो. गोसाईं की मानें तो देश में साल 1940 के बाद पटाखों का प्रचलन शुरू हुआ और विस्फोटक पदार्थों के कानून को सरल किया गया. इसके बाद देश में बहुतायत रूप में पटाखों का इस्तेमाल शुरू हुआ. ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार देश में सबसे पहले शिव काशी निर्माता नाम से पटाखों की फैक्ट्री खोली गयी, लेकिन साल 1940 से पहले दीपावली में मात्र दीपोत्सव का प्रचलन था.