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उत्तरायणी मेले में लोग हिमालयी जड़ी-बूटियों की जमकर कर रहे खरीदारी, कई बीमारियों में रामबाण

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 19, 2024, 8:12 AM IST

Updated : Jan 19, 2024, 9:11 AM IST

Bageshwar Uttarayani Fair बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. साथ ही लोगों को हिमालयी जड़ी-बूटियों का बेसब्री से इंतजार रहता है. जिसका उपयोग लोग रोजमर्रा की बीमारियों में दवा के रूप में करते हैं. हिमालयी जड़ी-बूटियों को स्वास्थ्य के लिहाज से लोग काफी फायदेमंद मानते हैं.

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लोग हिमालयी जड़ी-बूटियों की जमकर कर रहे खरीदारी

बागेश्वर:ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले में जड़ी बूटी के उत्पादों को खरीदने लोग दूर-दूर से आते हैं. वहीं मेले में धारचूला, मुनस्यारी के दारमा, जोहार, व्यास, चौंदास, और बागेश्वर के दानपुर से आए जड़ी बूटी के व्यापारियों के सामानों की जबरदस्त मांग है. पेट, सिर, घुटने आदि दर्द के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली गंदरैणी, जम्बू, कुटकी, डोला, गोकुलमासी, ख्यकजड़ी आदि जड़ी बूटियों का अचूक इलाज माना जाता है. जिसकी लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं.

बागेश्वर उत्तरायणी मेले में पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, मुनस्यारी, जोहार, दारमा, व्यास और चौंदास आदि क्षेत्रों के व्यापारी तिब्बत व्यापार के समय से हर साल यहां व्यापार के लिए पहुंचते हैं. वहीं हिमालय क्षेत्रों से पहुंचने वाली जड़ी-बूटियां दवा और रोजमर्रा के उपयोग के साथ ही बीमारियों में दवा का भी काम करती हैं. धारचूला के बोन गांव के किशन सिंह बोनाल बताते हैं कि जंबू की तासीर गर्म होती है. इसे दाल में डाला जाता है. गंदरैणी भी बेहतरीन दाल मसाला है, जिसे पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद माना जाता है. कुटकी , पीलिया, बुखार, निमोनिया, मधुमेह में, डोलू का उपयोग गुम चोटों, मुलेठी का उपयोग खांसी में, अतीस पेट दर्द में, सालमपंजा दुर्बलता में फायदेमंद माना जाता है.
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उत्तरायणी मेले में जंबू 40 रुपए प्रति ग्राम तोला, गंदरैणी 30 रुपए प्रति ग्राम तोला है. डोलू 50 रुपए प्रति तोला, मुलेठी आदि दस ग्राम 60 रुपये में, कुटकी 80 रुपये तोला के हिसाब से बिक रही है. साथ ही मेले में भोज पत्र और धूप गंध वाली जड़ी बूटियां लोग खरीद रहे हैं. वहीं दारमा की मनीषा बोनाल ने बताया कि उनके पूर्वज इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं हम भी इसी व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. वो इन जड़ी बूटियों को पहले हिमालय की तलहटी में लेने जाते थे, लेकिन अब वो उनकी खेती करते हैं. ये जड़ी बूटियां स्वास्थ्य वर्धक होती हैं.
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उन्होंने बताया की कि वह हर साल स्थानीय मेलो में आते है और अपने उत्पादों को बेचते हैं. हम भी अपने पूर्वजों के व्यवसाय को बचाने जुटे हैं. स्थानीय मेलार्थी दीपक सिंह खेतवाल ने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों से जड़ी बूटी लाने वाले व्यापारियों का साल भर बेसब्री से इंतजार करते हैं. माघ माह की उत्तरायणी में यहां व्यापारियों और खरीदारों का तांता लगा रहता है. जड़ी-बूटियां इस मेले की असली पहचान हैं. आज भी स्थानीय व बाहर से आने वाले मेलार्थी इन उत्पादों को विश्वसनीयता की नजर से देखते हैं.

Last Updated : Jan 19, 2024, 9:11 AM IST

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